पता नहीं क्यों सरकार गाड़ी के पीछे हाथ धोकर पड़ी है। दोष तो सड़कों का है। ठेकेदारों, नेताओं का है। गिट्टी, सीमेंट, रेत और तारकोल का है। पर इतनों को एक साथ दोष देना भारी पड़ सकता है। नतीजा ठेकेदार, नेता और दलालों के बीच एक खाई का खुदना हो सकता है। इसलिए दोष गाड़ियों पर मढ़ा जा रहा है। नाच न जाने आंगन टेढ़ा वाली बात हुई न। दिल्ली से चली खबर तुरंत दूसरी राजधानियों में फैल जाती है। इसलिए कोई दस बरस तो कोई बीस बरस पुरानी कार को कबाड़ बना रहा है। जनता की धुलाई मची है। अच्छी-खासी बिना आवाज और धुएं के चलने वाली फरारी कहीं और फरार होने की जुगत में है।
बिना वेल्यू दिल्ली किसी काम की न है। हमारे घर पर काम वाली बाई ने सैकिण्ड हैण्ड कार के लिए एक-एक पैसा जोड़ा है। मगर बड़ी-बड़ी कारों के बेकार होने की खबर सुनते आसमान से गिरी। हमने कहा यह टाइम तो खुशी मनाने का है बहनजी। फरारी और एसयूवी मिट्टी के मोल हो गयी हैं। अब तो एसयूवी के साथ ऑफर में विदेशी नस्ल वाला डॉगी भी मिल सकता है। उसके साथ बैठने का स्वार्गिक आनंद ले लो।
दरअसल, सरकार के जेहन में तो डबल इंजिन है। इसलिए शर्म के मारे हवाई जहाज अचानक पेड़ से सेव फल की तरह टपकने लगे। और एयर इंडिया पर तो मानो किसी बुरी आत्मा का साया पड़ गया। कहीं भी टपक जाते हैं, कभी टायर फट जाते हैं या तकनीकी खामी आ जाती है। विमान कम्पनी को किसी ओझा या फकीर को बुलाकर पूजा-पाठ करवाने की जरूरत है। अब किसी गरीब, गुरबा का हवाई यात्रा करने का सपना सपना ही रहेगा। यदि किसी को अपनी जान प्यारी है तो वह बैलगाड़ी या साइकिल से निरापद सैर कर सकता है। कारण कि रेलगाड़ियां भी अपनी पटरी छोड़ दूसरी पर कूद रही हैं। सवाल यह है कि दुनिया में और भी शै हैं।
आजकल संसद में भी चिंतन मनन न हो रहा। हलवा खाकर हुड़दंग मचा रहे हैं लोग। वैसे तो भजियों का टाइम है। मगर अर्थव्यवस्था की लम्बी छलांग के बाद भजिए खाना ठीक नहीं वरना दुनियाभर के लोग क्या सोचेंगे? अमेरिकन स्वयंभू डैडी का मुंह तो कोई पकड़ने से रहा। खुसुर-फुसुर कर लो बस। इस कान से सुनकर उस कान से निकाल भी नहीं सकते। टैरिफ के डर से दोनों कानों के बीच घुन्न घुन्न होती रहती है। बहरहाल आम आदमी के चिंतन में तो इंजन आ रहा है। कारण कि देश की राजधानी में ट्रिपल इंजन की चर्चा चल रही है। इसलिए कार छोड़ शंटिंग पर खड़े इंजन की सीटी ध्यान से सुनना चाहिए।