पेच जब फंसता है तो कुर्सी के प्रबल से प्रबल दावेदार को भी कुर्सी पर बैठने में बाधा खड़ी कर देता है। और सब तो छोड़िए, पेच जब फंसता है तो बाधा तक में भी बाधा खड़ी कर देता है।
जीव जगत में बुरों में सबसे बुरा कोई होता है तो बस, ये पेच होता है। कोई आदमी बुरा नहीं होता, उसके पास जो पेच होता है, वह होता है। और भी मजे की बात! हर गरीब से गरीब आदमी के पास और कुछ हो या न, पर एक अदद पेच जरूर होता है, किसी को भी कहीं भी अड़ाने को, फंसाने को। जब उसको किसी को अड़ाने को अपने पेच का इस्तेमाल होता नहीं दिखता तो वह अपने पेच से बहुधा अपने को भी अड़ा लेता है ताकि आदमी के पेच की सार्थकता बनी रहे।
शरीफ से शरीफ आदमी कहीं नहीं फंसता। उसको फंसाता है तो किसी का पेच। और जब किसी का पेच वजह बिन वजह कहीं फंसता है तो बड़े-बड़े पेच फंसाने वाले माहिरों को भी बुरी तरह फंसा कर रख देता है।
पेच जब फंसता है तो अपनों को पुरस्कार देने में बाधाएं खड़ी कर देता है। पेच जब फंसता है तो अपनों को चुनावी टिकट देने में बाधा खड़ी कर देता है। पेच जब फंसता है तो नौकरी में अपनों को रखने में टांग अड़ा देता है। टांग भी ऐसी कि उसे तोड़कर रख देता है। पेच जब फंसता है तो कुर्सी के प्रबल से प्रबल दावेदार को भी कुर्सी पर बैठने में बाधा खड़ी कर देता है। और सब तो छोड़िए, पेच जब फंसता है तो बाधा तक में भी बाधा खड़ी कर देता है।
जिस तरह आदमी के अंदर कई आदमी होते हैं, जिस तरह घरों के अंदर कई घर होते हैं, जिस तरह दफ्तर के अंदर कई दफ्तर होते हैं, उसी तरह पार्टी के अंदर भी कई पार्टियां हुआ करती हैं। जो मौका आने पर जहां तहां मौका मिले, वहीं अपने-अपने पेच फंसाती रहती हैं। चुनाव आने पर टिकटों को लेकर कदम-कदम पर पेच फंस रहा है। हर पार्टी तय नहीं कर पा रही है कि अपने चहेतों को टिकट दे तो कैसे दे?
इस पेच ने मेरे घर में मेरा जीना भी उसी दिन से मुहाल कर दिया है जिस दिन से मैंने घर बसाने की सोची थी।
नेताओं की तर्ज पर जनहित की तरह घरहित में कुछ करना चाहता हूं तो बीवी अपनी टांग ऊपर रखने के नेक इरादे से पेच अड़ा देती है। वह घरहित में नेताओं की जनहिती तर्ज पर कुछ करना चाहती है तो मैं अपनी टांग ऊपर रखने को उसके घरहिती फैसले में पेच अड़ा देता हूं। और बच्चे हैं कि वे तो बात बात पर, बात बात में जहां उनका मन पेच अड़ाने को करे, पेच अड़ाते रहते हैं। हमारे पास घर में अपना कुछ हो या नहीं, पर सबके पास अपने-अपने पेच हैं अड़ाने को। अगर किसी के पास अपना पेच खराब हो गया हो और उसकी दिली इच्छा हो कि किसी काम में पेच अड़ाए बिना उसका गुजारा नहीं होने वाला तो वह पास पड़ोस से पेच उधार में ले आता है अड़ाने को।