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बादल का कहर और डूब के जाना है

तिरछी नज़र
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बादल अब बरसते नहीं। फटते हैं। ऊपर वाले को कोई बता दे यार कि दुनिया में बमों की कमी है क्या, जो बादल भी फटने लगे। उन्हें प्यार की बौछारों के लिए रखो न यार। बादलों का काम मौसम को सुहाना करने का है।

पंजाब डूब गया जी। हरियाणा में भी आसन्न संकट है। दिल्ली पर भी खतरा है। यमुना का पानी ऐसे चला आ रहा है, जैसे उसे बस को डुबोने का ही काम करना है। रास्ता उसे पता ही है। आइटीओ पर आते ही मैया कहेगी- अरे यह तो जाना-पहचाना-सा रास्ता है। हिमाचल दरक रहा है। छुट्टियां मनाने और घूमने-फिरने के लिए शिमला और मनाली जाने वालों ने दरकते पहाड़ देखे हैं। खूबसूरत नजारे तो बहुत देखे होंगे, अब तबाही के नजारे भी। उत्तराखंड बह रहा है। वहां बादल ऐसे फट रहे हैं जैसे होली पर कोई बदमाश बच्चा सड़क चलतों के सिर पर गुब्बारे फोड़ रहा हो।

बादल अब बरसते नहीं। फटते हैं। ऊपर वाले को कोई बता दे यार कि दुनिया में बमों की कमी है क्या, जो बादल भी फटने लगे। उन्हें प्यार की बौछारों के लिए रखो न यार। बादलों का काम मौसम को सुहाना करने का है, रंगीन बनाने का है, रोमांटिक बनाने का है, डराने का थोड़े ही है। अब हर तरफ बारिश है, बाढ़ है। वो कहते हैं न कि सब ऊपर वाले की माया है, वैसे ही अब कहा जा रहा है कि सब प्रकृति का प्रकोप है। प्रकृति को आपने क्या, मजबूर-सी बूढ़ी मां समझ लिया था।

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खैर जी, पंजाब तो है ही पंज पाणियां दी धरती। लेकिन अब धरती कहीं नहीं दिखती। बस पाणी ही पाणी है। जब हरियाणा को पानी देने की बात होती है, तब पंजाब कहता है कि हमारे पास पानी कहां है, एक बंूद भी नहीं। अब पानी ही पानी है। कभी पंजाब को उड़ता पंजाब कहा गया था। अब वह डूबता पंजाब है। वैसे तो उधर पाकिस्तान भी डूब ही रहा है। लेकिन अभी उस पर खुश नहीं हुआ जा सकता। तालियां नहीं बजायी जा सकती। हरियाणा में लोग तीस साल पहले की बाढ़ की त्रासदी को याद कर रहे हैं।

लेकिन गुड़गांव को तो यह शिकायत नहीं होनी चाहिए। वहां तो हर साल यही होता है। शहर पानी में डूब जाता है। चमचमाता शहर बारिश से धुलकर और चमचमाने की बजाय कीचड़-कीचड़ हो जाता है। करोड़ों रुपये के फ्लैट और कोठियां आंसू बिसूरने लगते हैं। कल तक वहां सफाई नहीं हो रही थी, कूड़ा नहीं उठ रहा था, बर्तन नहीं धुल रहे थे। क्योंकि बंगलादेशी करार दिए जाने के डर से साफ-सफाई करने वाले भाग गए थे। अब वहां पानी है और कीचड़ है। अगर देश के दो चमचमाते शहरों- मुंबई और गुड़गांव की तुलना की जाए तो वे यही कहेंगे कि मानसून के दिनों में मत करना। उन दिनों हम दोनों ही डूबते हैं। वैसे डूबने में पीछे कौन है। जम्मू-कश्मीर तक नहीं। सबमें होड़ मची है। पहले मैं-पहले मैं...।

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