दो साल से ज्यादा हो चुके हैं दुनिया को कोविड-19 महामारी की शुरुआत देखे, यह मानव जाति को बुरी तरह प्रभावित करने वाले स्पेनिश फ्लू के 100 साल बाद आई है। भारत में सार्स-कोव-2 के विभिन्न रूपांतरों की वजह से इसकी लहरें बार-बार आई हैं, जिसमें डेल्टा वेरिएंट अब तक सबसे घातक रहा। अनेक देशों में पुनः नए मामले बढ़ने की खबरें हैं, जिसके पीछे डेल्टा और ओमीक्रॉन का संकरित रूपांतर बताया जा रहा है। भारत में भी कोविड की अगली लहर आने की संभावना है, लेकिन उम्मीद है, बड़े पैमाने पर हुए टीकाकरण से शायद हम पिछले साल जैसे हाल से बच सकेंगे।
सार्स-कोव-2 वायरस से प्रभावित जिन लोगों में बीमारी अति गंभीर थी, उनके अंदर लक्षण संक्रमित होने के 4-5 दिनों बाद विकसित हुए थे। जैसे कि, बुखार, गले में दर्द, खांसी, शरीर दर्द, स्वाद या गंध हीनता और दस्त मुख्य थे। आमतौर पर प्रभावित व्यक्ति लक्षण प्रकट होने के 7-10 दिनों के अंदर ठीक हो जाता था, बहुत ज्यादा बीमार या अति गंभीर बने लोगों को ठीक होने में 3-6 हफ्ते लगते थे। फिर भी, भुक्तभोगियों में एक खासी संख्या उनकी है जिसे ‘लंबा-कोविड’ (लॉन्ग कोविड) कहते हैं। इसको पोस्ट कोविड सिंड्रोम भी कहा जाता है। इनकी प्रवृत्ति निरंतर बने रहने या अंतरालों के बाद पुनः उभरने वाली हो सकती है। लॉन्ग-कोविड की परिभाषा पहली बार सोशल मीडिया पर इस्तेमाल हुई थी, जिसका भावार्थ सार्स-कोव-2 संक्रमण शुरू होने के बाद हफ्तों या महीनों तक लक्षण बने रहना है। इस अवस्था के लिए पहली मर्तबा, छोटे बच्चों के अध्यापक एमी वाटसन और विज्ञान पत्रकार एड योंग ने नया शब्द लॉन्ग-हॉलर यानी लंबे समय तक तंग करने वाला, इस्तेमाल किया था।
पोस्ट कोविड सिंड्रोम से पीड़ित अधिकतर मरीजों की पीसीआर रिपोर्ट निगेटिव आती है, जो कि उनकी माइक्रोबायोलॉजी ठीक होना बताती है। लक्षणों की अवधि के आधार पर पोस्ट कोविड या लॉन्ग कोविड को दो चरणों में बांटा जा सकता है। पहला, पोस्ट एक्यूट कोविड जहां लक्षण तीन हफ्ते से अधिक किंतु 12 सप्ताह से कम होते हैं, और दूसरा क्रॉनिक कोविड जहां लक्षण 12 सप्ताह से अधिक चलें। खबरें हैं कि कोविड झेल चुके 50-80 प्रतिशत लोगों में अस्थिर अवधि वाले लॉन्ग टर्म सिंपटम्स हो सकते हैं, कुछ को प्रभाव ज्यादा सता सकते हैं और उनकी जीवन-गुणवत्ता प्रभावित होती है। ऐसे 50 से अधिक लक्षणों की शिनाख्त हो चुकी है, लगातार थकावट रहना सबसे आम चिन्ह है। इसके बाद नंबर आता है, सिरदर्द, ध्यान में कमी, गंध या स्वाद का पता न चलना, सांस लेने में कठिनाई और खांसी। जिन मरीजों के फेफड़े प्रभावित हुए हों, उनमें परिणाम स्वरूप पैदा हुई फाइब्रोसिस (तंतु कड़े होना) सांस संबंधी क्षमता सीमित कर देती है।
हृदय-धमनियों की जटिलता के मामले न सिर्फ कोविड प्रभावित मरीजों में देखे गए बल्कि लक्षण रहित व्यक्ति में भी। अति गंभीर कोविड स्थिति के साथ अस्पताल में भर्ती होने वालों में 20-30 प्रतिशत में मायओकार्डियल अलग से होने के सबूत मिले हैं। लंबी अवधि के कोविड लक्षण वालों में कार्डियो मेटाबॉलिक डिमांड, मायओकार्डियल फाइब्रोसिस या मायओकार्डियल स्कार, पर्सिस्टेंट लेफ्ट वेंट्रिकुलर डिस्फंक्शन, हार्ट फेल्योर, एर्रिथाइमियस और ऑटोनॉमिक डिस्फंक्शन में इजाफा देखने को मिला है। ऐसे मरीजों में ठीक होने के बाद भी लंबे समय तक छाती दर्द, श्वास प्रक्रिया में बदलाव और थकावट रहना बार-बार पाया गया है। लंबी अवधि तक कोविड लक्षणों से एक बड़ी चिंता मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ना है, जैसे कि, अवसाद, तनाव, चिंता और निद्रा-भंग। कोविड से ठीक हुए लोगों में अत्यधिक थकावट, पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर, सब्सटांस-ड्रग एब्यूस और अनिश्चितता भरे जीवन, लाचारी और डर– खासकर ठीक हो पाऊंगा या नहीं- पाया गया है। जिन्होंने लहर के दौरान किसी तरह अस्पताल में बिस्तर या दवाएं पा ली थीं या भीड़ भरे सघन चिकित्सा वार्ड में इलाज की मुश्किलों को भुगता है, उनके दिलो-दिमाग पर लंबे वक्त तक इनका असर बना रहता है। कुछेक में कोविड संक्रमण के दौरान या उपरांत थ्रॉम्बोएब्रोलिक जटिलताएं बनी हैं जिसके नतीजे में मस्तिष्क आघात या हार्ट अटैक आए, इससे थक्कारोधक दवाओं के प्रोफाइलैक्टिक इस्तेमाल की जरूरत को लेकर बहस चली।
कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद डायबिटिक्स का उद्भव एक अन्य चिंता है। कोविड रोगियों में टाईप-2 डायबिटिस के नए मामले आने की खबरें हैं। इसका संबंध पेनक्रियास पर वायरस के प्रभाव से हो सकता है या इलाज के दौरान स्टेरॉयड जैसी दवाओं की वजह से भी। गुर्दे संबंधी जटिलताएं भी लॉन्ग कोविड को गुंझलदार बना देती हैं। अति गंभीर कोविड बीमारी वालों में लंबे वक्त तक बीमारी के बचे-खुचे असर से किसी खास अंग पर प्रभाव पड़ सकता है या इससे संक्रमण से डायबिटिस, सांस घुटने की शिकायत वाले पुराने श्वास रोग, पुराने गुर्दा रोग गंभीर हो सकते हैं।
अध्ययन बताते हैं, अति गंभीर कोविड मामले, जहां इलाज के दौरान इम्युनो स्प्रेसांट दवाएं दी गईं, उनमें लॉन्ग कोविड लक्षण बनने की संभावना आम कोविड मरीजों की बनिस्बत छह गुणा ज्यादा है। इसके अलावा, जिन्हें ऑक्सीजन लगाने की जरूरत पड़ी, उनमें 40 फीसदी में तंग करने वाले दीर्घकालिक कोविड लक्षणों की शिकायतें पाई गईं। महिलाओं में लॉन्ग कोविड सिंपटम्स की संभावना दोगुणी है। जिन लोगों में पहले भी अन्य बीमारियां थीं, जैसे कि, उच्च रक्तचाप, मोटापा और डायबिटिस, उन्हें भी लॉन्ग कोविड ज्यादा हुआ है। कोविड-वैक्सीन लगवाने वालों में वैक्सीन रहित के मुकाबले लॉन्ग कोविड बनने की आवृति कम है।
कोविड महामारी ने मिलकर अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान करने को बढ़ावा दिया है और नई प्रतिरोधक दवाएं और इलाज नीतियां अपनाने को गति दी है। नई वैक्सीन विकसित करने में दशकों तक चलने वाले अनुसंधानों के विपरीत सार्स-कोव-2 के जिनॉमिक स्ट्रक्चर की तफ्सील पता चलने के एक साल के अंदर दुनिया ने कई किस्म की वैक्सीन बनते देख लीं। जबकि वर्ष 2020 से पहले तक एमआरएनए तकनीक पर आधारित किसी उत्पाद को कभी भी मंजूरी नहीं मिल पाई थी, लेकिन दो साल के अंदर ही, कोविड रोधक एमआरएनए टीकों की सफलता ने इस तकनीक और अनुसंधान की राहें खोल दी हैं। भारत के लिए भी, स्वदेशी वैक्सीन विकसित कर लेना बहुत संतोषजनक रहा।
अभी भी यह पक्का नहीं है कि लॉन्ग कोविड के कुछ लक्षण पूरी तरह जाने में कितना समय लगेगा। शरीर में कुछ नुकसान स्थाई हो सकते हैं जैसे कि लंग फाइब्रोसिस या ऑटो इम्युनिटी गड़बड़। दीर्घकालीन अध्ययन इन पर कुछ प्रकाश डाल सकते हैं। इस बीच, ऐसे रोगियों को देखभाल की जरूरत है क्योंकि बहुत बार बीमारी का ठोस सबूत नहीं होता और इससे मरीज सही देखभाल पाने या ढूंढ़ने में असफल रहते हैं। बहुत से लोगों को कह दिया जाता है यह केवल ‘मन का वहम’ है क्योंकि कुछ चिकित्सकों को खुद बीमारी के बाद बनने वाले सिलसिलेवार प्रभावों का भान नहीं होता। इस बाबत स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा डाक्टरों के लिए कोविड उपरांत लड़ीवार स्थितियों के प्रबंधन हेतु राष्ट्रीय बृहद निर्देशावली जारी करना श्लाघा योग्य है। वहीं कोविड के निरंतर लक्षण वाले लोगों के लिए बने इंडिया कोविड सेवियर ग्रुप जैसे सहायता समूहों की और ज्यादा मदद करने की भी जरूरत है।
लेखक इंडियन सोसायटी फॉर गेस्ट्रोएंट्रोलॉजी के पूर्व अध्यक्ष हैं।