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महंगाई पर नियंत्रण रखने की चुनौती बढ़ी

पश्चिम एशिया संघर्ष

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डाॅ. जयंतीलाल भंडारी

हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक की क्रेडिट पॉलिसी कमेटी बैठक में आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि पश्चिम एशिया संघर्ष से निर्मित वैश्विक संकट से भारत में महंगाई बढ़ने की जोखिम के मद्देनजर ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। ये लगातार 10वीं बार है जबकि रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है। वैश्विक तेल की कीमतों में आए उछाल पर पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने कहा है कि पश्चिम एशिया में अधिक तनाव बढ़ने पर भारत कच्चे तेल के किसी भी संकट से निपटने में सक्षम होगा। पहले भारत 27 देशों से कच्चा तेल खरीदता था, अब इन देशों की संख्या बढ़कर 39 हो गई है।

इन दिनों ईरान और इस्राइल सहित पश्चिम एशिया में बढ़ते संघर्ष तथा रूस-यूक्रेन युद्ध के विस्तारित होने से भारत की आर्थिक चुनौतियां बढ़ गई हैं। ये चुनौतियां कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों, शेयर बाजार में गिरावट, माल ढुलाई की लागत बढ़ने, खाद्य वस्तुओं की महंगाई, भारत से चाय, मशीनरी, इस्पात, रत्न, आभूषण तथा फुटवियर जैसे क्षेत्रों में निर्यात आदेशों में कमी, निर्यात के लिए बीमा लागत में वृद्धि तथा इस्राइल और ईरान के साथ द्विपक्षीय व्यापार में कमी के रूप में दिखाई दे रही हैं। स्थिति यह है कि वैश्विक शेयर बाजार के साथ-साथ भारत के शेयर बाजार पर भी असर पड़ना शुरू हुआ है। पश्चिम एशिया संकट और चीन से सरकारी प्रोत्साहन के दम पर बाजार चढ़ने के मद्देनजर भारत के शेयर बाजार में कुछ विदेशी निवेशकों द्वारा जोखिम वाली संपत्तियां बेची जा रही हैं और वे अपना कुछ निवेश निकाल रहे हैं। स्थिति यह है कि सेंसेक्स और निफ्टी के लिए अक्तूबर, 2024 का पहला सप्ताह 4.5 फीसदी के नुकसान के साथ दो साल की सबसे बड़ी गिरावट का सप्ताह रहा है। पश्चिम एशिया संघर्ष के बीच निवेशक सुरक्षित निवेश के तौर पर सोने की खरीद का भी रुख कर रहे हैं। इससे भारत में भी सोने की खपत और सोने की कीमत बढ़ने लगी है।

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अब यदि कच्चे तेल की कीमतें तेजी से बढ़ेंगी तो दुनियाभर में कई वस्तुओं के दाम बढ़ने के साथ-साथ भारत में भी कीमतें बढ़ने का सिलसिला शुरू हो सकता है। चूंकि ईरान दुनिया के सबसे बड़ा कच्चा तेल उत्पादकों में से एक है और यह देश पश्चिम एशिया के संवेदनशील इलाकों में स्थित है। ऐसे में ईरान के तेल बाजार में अस्थिरता से कच्चे तेल की कीमतें तेजी से बढ़ने पर पेट्रोल, डीजल और अन्य पेट्रोलियम उत्पाद महंगे होने लगेंगे। इसका असर 80 फीसदी आयात करने वाले भारत पर विशेष रूप से पड़ेगा।

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आशंका है कि ईरान और इस्राइल के बीच संघर्ष का असर वैश्विक शिपिंग रूट्स पर भी पड़ सकता है, खासकर होर्मुज जलडमरूमध्य पर। दुनिया को मिलने वाला करीब एक-तिहाई तेल और खाद्य व कृषि उत्पादों का अधिकांश यातायात इसी मार्ग से होता है। ऐसे में इस क्षेत्र में शिपिंग बाधित होने से ग्लोबल सप्लाई चैन प्रभावित हो सकती है। इससे खाद्य पदार्थों, जैसे कि गेहूं, चीनी और अन्य कृषि उत्पादों की कीमतें बढ़ने लगेंगी। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि ईरान और इस्राइल के बीच युद्ध का अप्रत्यक्ष प्रभाव भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग पर भी पड़ सकता है, क्योंकि भारत अभी भी ज्यादातर दवाओं के लिए कच्चे माल का बड़ा हिस्सा विदेश से आयात करता है। ऐसे में दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी की आशंका होगी।

इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि पश्चिम एशिया में युद्ध के बढ़ने पर बाजार में तेज गिरावट और महंगाई वृद्धि का दौर निर्मित होते हुए दिखाई दे सकता है। लेकिन भारत के कई ऐसे मजबूत आर्थिक पक्ष हैं जिनसे भारत के आम आदमी और भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक नुकसान नहीं हो सकेगा। इस समय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है। भारत खाद्यान्न अधिशेष वाला देश है और देश के 80 करोड़ से अधिक कमजोर वर्ग के लोगों को नि:शुल्क खाद्यान्न वितरित किया जा रहा है। भारत पर दुनिया का आर्थिक विश्वास बना हुआ है। नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक 27 सितंबर को भारत के पास रिकॉर्ड स्तर पर 704 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार है, जिससे भारत किसी भी आर्थिक जोखिम का सरलतापूर्वक सामना करने में सक्षम है।

फिर भी भारत को महंगाई पर सतर्क निगाहें रखनी होंगी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक खुदरा महंगाई दर अगस्त महीने में मामूली बढ़कर 3.65 प्रतिशत रही। यह आरबीआई द्वारा निर्धारित लक्ष्य के दायरे में है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति जुलाई, 2024 में 3.6 प्रतिशत थी। अर्थव्यवस्था को मजूबती मिलते हुए दिखाई दी है।

अब सरकार को भी महंगाई नियंत्रण के लिए बहुआयामी रणनीति की डगर पर आगे बढ़ना होगा। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि वर्ष 2024-25 के बजट के तहत शीघ्र खराब होने वाले सामान की बाजार में समुचित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी व्यवस्थाएं सुनिश्चित की गई हैं। बजट के तहत उपभोक्ता मामलों के विभाग को दाम स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) के लिए 10,000 करोड़ रुपये दिए गए हैं। जहां इस कोष का उपयोग दाल, प्याज और आलू के बफर स्टॉक को रखने के लिए किया जाएगा। वहीं जरूरी होने पर इन अन्य खाद्य वस्तुओं के बढ़े दामों को नियंत्रित करने के लिए भी इस कोष का इस्तेमाल किया जा सकेगा। इसके अलावा खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के लिए खाद्य भंडारण और वेयरहाउसिंग के लिए ऋणों की राशि दोगुनी करके 50,000 करोड़ रुपये सुनिश्चित की गई है। जो वैश्विक चुनौती के मुकाबलों में सहायक होगी।

लेखक अर्थशास्त्री हैं।

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