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विकासशील देशों के सामने एआई संप्रभुता की चुनौती

किसी भी स्थिति में, एआई संप्रभुता आज कई मध्यम-आय वर्ग के देशों के लिए एक दुखती रग साबित हो रही है। उन्हें वित्तीय निवेश करने की अपनी क्षमता का आकलन, अपेक्षित आर्थिक लाभ, डेटा गोपनीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान...
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किसी भी स्थिति में, एआई संप्रभुता आज कई मध्यम-आय वर्ग के देशों के लिए एक दुखती रग साबित हो रही है। उन्हें वित्तीय निवेश करने की अपनी क्षमता का आकलन, अपेक्षित आर्थिक लाभ, डेटा गोपनीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बुद्धिमानी भरे निर्णय लेने होंगे।

अब जबकि हमारा देश ‘भारत एआई प्रभाव शिखर सम्मेलन 2026’ आयोजित करने की तैयारी कर रहा है, यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि फरवरी माह में पेरिस में हुए एआई क्रियान्वयन शिखर सम्मेलन 2025 में एआई संप्रभुता एक केंद्रीय मुद्दा था। महत्वपूर्ण बात यह है कि आज दुनियाभर में एआई से संबंधित बड़े पैमाने पर निवेश की दिशा-दशा एआई संप्रभुता की अवधारणा निर्धारित करती है।

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डिजिटल युग के आरंभिक और सबसे प्रभावशाली सिद्धांतकारों में से एक, फ्रांसीसी दार्शनिक बर्नार्ड स्टीगलर के अनुसार, तकनीक की पारंपरिक अवधारणा से आगे बढ़ने में दुनिया को अच्छी तरह समझना ज़रूरी है। उनका मानना था कि ‘मनो-राजनीति’ (साइकलोपॉलिटिक्स), जो, मीडिया और तकनीक हमारे मानस और ध्यान को आकार देने की क्षमता रखती है, 21वीं सदी को परिभाषित करती है। स्टीग्ालर का तर्क था कि तकनीक एक ‘फार्माकोन’ है– ज़हर जो इलाज भी करता है - और यह हमें चुनना होगा कि हम तकनीक को अपना ‘इस्तेमाल’ करने दें या आधुनिक एजेंसियों से अपनी तर्कसंगत संप्रभुता वापस पाने के लिए इसका उपयोग ‘महत्वपूर्ण गहनता’ के लिए सावधानी से करें।

हालांकि, 21वीं सदी की शुरुआत में ‘तकनीकी संप्रभुता’ की अवधारणा का पुनर्विन्यास हुआ था, जो मुख्यतः भू-राजनीतिक टकरावों और प्रतिबंधों के परिणामवश था। वर्ष 2000 और 2010 के दशक की शुरुआत में, इंटरनेट संप्रभुता पर सबसे पहले चर्चा संभवतः चीन में हुई थी। फिर, इस एआई युग में विदेशी शक्तियों पर निर्भरता से बचने के लिए, विभिन्न देशों ने डिजिटल बुनियादी ढांचा, डेटा और एआई पर नियंत्रण स्थापित किया। साथ ही, ट्रम्प के पिछले कार्यकाल में 2018 में अमेरिका और चीन के बीच चले व्यापार युद्ध ने संप्रभु एआई होने की जरूरत को बढ़ावा दिया।

एआई संप्रभुता किसी राष्ट्र या कंपनी द्वारा अपनी एआई तकनीकों को स्वतंत्र रूप से नियंत्रित करने की क्षमता है, जिसमें डाटा, बुनियादी ढांचा और स्वरूप शामिल हैं, ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा, नियामक अनुपालन और रणनीतिक स्वायत्तता सुनिश्चित हो सके। इसमें विदेशी नियंत्रण केंद्रों पर निर्भरता से बचना, संवेदनशील डाटा को अपने अधिकार क्षेत्र में बनाए रखना और घरेलू ढांचे के भीतर एआई प्रणालियों का विकास एवं कार्यान्वयन शामिल है। सरल शब्दों में, संप्रभु एआई यह सुनिश्चित करना चाहता है कि एआई का उत्पादन घरेलू स्तर पर हो, जिसमें वह डेटा भी शामिल हो जिसका उपयोग एआई प्रशिक्षण में, अनुसंधान करते वक्त खोज करने में और किसी प्रश्न के उत्तर में आउटपुट के रूप में उत्पन्न करने वाला डाटा हो। इस प्रकार, ‘डेटा संप्रभुता’ और ‘एआई संप्रभुता’ आपस में जुड़ी हुई हैं, फिर भी अलग हैं। लेकिन संप्रभु एआई यह सुनिश्चित करता है कि एआई उनके सांस्कृतिक, नैतिक और कानूनी मानकों के अनुरूप हो।

आज राष्ट्रों को जेनएआई के जोखिमों, फायदों और राष्ट्रीय सुरक्षा एवं आर्थिक विकास पर उनके संभावित प्रभाव के बारे में मालूम है। उदाहरण के लिए, 2035 तक, एआई भारत की अर्थव्यवस्था को 1.7 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ाने में मदद कर सकता है। अप्रैल 2024 में प्रकाशित विश्व आर्थिक मंच के एक लेख में, जिसका शीर्षक है ‘संप्रभु एआई: यह क्या है, और इसकी प्राप्ति के छह रणनीतिक स्तंभ’, के अनुसार, संप्रभु एआई के लिए प्रयास का अर्थ अनिवार्य रूप से डिजिटल अलगाव नहीं है, बल्कि रणनीतिक लचीलेपन के लिए प्रयास है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ मिलकर किया जा सकता है। रणनीतिक स्तंभ, जिनमें डिजिटल बुनियादी ढांचा, कार्यबल विकास, अनुसंधान, विकास एवं नवाचार, नियामक एवं नैतिक तानाबाना, एआई उद्योग को प्रोत्साहित करना और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शामिल हैं, ये अवयव देशों को अपनी संप्रभु एआई क्षमताओं को बढ़ाने में मदद करेंगे।

इसलिए, संप्रभु एआई का मार्ग जटिल है और इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर सावधानीपूर्वक, दीर्घकालिक रणनीतिक योजना की आवश्यकता पड़ेगी। विभिन्न देशों में संप्रभु एआई के उदाहरणों में, सिंगापुर में एक सरकारी-वित्त पोषित एआई मॉडल मौजूद है, जो ग्यारह विभिन्न भाषाओं में संवाद करने में सक्षम है; मलेशिया का आईएलएमयूचैट मॉडल, जिसे एक स्थानीय निर्माण कंपनी ने बनाया है; और स्विट्जरलैंड में ‘एपर्टस’,तो दक्षिण कोरिया ने कोरियाई भाषा और डाटा आधारित ‘संप्रभु एआई’ के निर्माण के लिए 735 बिलियन डॉलर खर्च करने का इरादा किया है। भारत में, मार्च 2024 में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इंडिया एआई मिशन को मंजूरी दी, जिसके तहत ‘भारत में एआई का निर्माण और भारत के लिए एआई को उपयोगी बनाने’ के उद्देश्य से 38,000 जीपीयू तैनात करके पांच वर्षों में 10,300 करोड़ से अधिक आवंटित किए जाने हैं।

एनवीडिया के सीईओ जेन्सेन हुआंग ने 2024 की शुरुआत में घोषणा की थी कि ‘हर देश को संप्रभु एआई की आवश्यकता है’। एआई संप्रभुता की वैश्विक दौड़ के बीच गौर करने लायक है कि संप्रभु एआई सेवाएं मुख्यतः अमेरिकी और चीन की चंद बड़ी तकनीकी विशेषज्ञता वाली कंपनियों द्वारा प्रदान की जा रही हैं। दुनिया के देश अक्सर बुनियादी ढांचे और चिप्स के लिए अधिकांशतः उन पर दीर्घकालिक निर्भरता के लिए मजबूर हैं। ये बड़ी तकनीकी कंपनियां संप्रभुता को एक सेवा के रूप में प्रदान करके, संप्रभु प्रौद्योगिकी से जुड़े विमर्श को प्रभावित कर रही हैं। एनवीडिया ने इस विश्वव्यापी बुनियादी ढांचे को बनाने वाले हिस्सों को ‘एआई फ़ैक्टरी’ का नाम दिया है। और यह दुनिया भर के देशों में चिप्स और हार्डवेयर बुनियादी ढांचा स्थापित कर रहा है। माइक्रोसॉफ्ट का अनुबंध यूएई और अन्य देशों के साथ है। अमेज़न वेब सर्विसेज़ ‘एडब्ल्यूएस यूरोपियन सॉवरेन क्लाउड’ प्रदान करता है। निजी व्यवसाय भी माइक्रोसॉफ्ट के एज़्यूर और गूगल क्लाउड से सॉवरेन क्लाउड का उपयोग कर सकते हैं, जिसमें डेटा स्थानीयकरण और एन्क्रिप्शन शामिल है।

हालांकि, ऐसी ‘संप्रभुता को सेवा के रूप में’ प्रस्तुत करने को औपनिवेशिक राज का एक समकालीन संस्करण बताने वाली बयानबाज़ी भी शुरू हो गई। उदाहरण के लिए, जून, 2025 में लंदन रिव्यू ऑफ़ बुक्स में प्रकाशित लालेह खलीली के ‘सामूहिक संपत्ति, निजी नियंत्रण’ शीर्षक वाले लेख में इसका वर्णन किया गया है। पुराने समय में, 19वीं शताब्दी में यूरोपीय शक्तियों द्वारा औपनिवेशिक विस्तार के साधन के रूप में बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (बीओटी) योजनाओं का उपयोग किया जाता था। जिसके तहत निजी,महानगरीय कंपनियां सड़क, रेलमार्ग, बंदरगाह, नहर, टेलीग्राफ लाइन आदि जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए जरूरत का धन, विशेषज्ञता और संसाधन प्रदान करती थीं। उपनिवेशों या उन जगहों पर जहां उनकी सरकार अपनी शक्ति और प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर रही हो। हालांकि, यह एआई संप्रभुता के वर्तमान परिदृश्य से कितना मिलता-जुलता है और कहां पर भिन्न हैं, यह पूरी तरह से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति एवं नई राजनीतिक अर्थव्यवस्था के घटकों पर निर्भर है।

बहरहाल, अब हर जगह की सरकारें किसी न किसी तरह से अपनी खुद की ‘संप्रभु’ एआई तकनीक बनाने पर अरबों खर्च करने के लिए मजबूर हैं। इसके कुछ प्रस्तावित विकल्प भी हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिका और चीन की दिग्गज कंपनियों के लिए एक प्रतिस्पर्धी प्रतिद्वंद्वी विकसित करने के लिए, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के बेनेट स्कूल फॉर पब्लिक पॉलिसी के शोधकर्ताओं ने एक सार्वजनिक एआई कंपनी बनाने का सुझाव दिया है, जिस पर आने वाला खर्च मध्यम-आय वाले देशों के समूह मिलजुल कर उठाएं।

किसी भी स्थिति में, एआई संप्रभुता आज कई मध्यम-आय वर्ग के देशों के लिए एक दुखती रग साबित हो रही है। उन्हें वित्तीय निवेश करने की अपनी क्षमता का आकलन, अपेक्षित आर्थिक लाभ, डेटा गोपनीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बुद्धिमानी भरे निर्णय लेने होंगे।

लेखक भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोलकाता में सांख्यिकी के प्रोफेसर हैं।

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