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आत्मनिर्भरता से रक्षा निर्यातक बनने के बीच चुनौती

भारतीय प्रतिरक्षा क्षेत्र
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रक्षा निर्यात न केवल विदेशी मुद्रा कमाने का जरिया है, बल्कि हमारी वैश्विक रणनीतिक स्थिति को भी मजबूत करता है। भारत की ‘सॉफ्ट पॉवर’ और ‘स्ट्रैटेजिक पाॅवर’ को बढ़ावा मिलता है।

डॉ. शशांक द्विवेदी

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वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में जहां रूस-यूक्रेन, इस्राइल-हमास और इस्राइल-ईरान जैसे युद्ध चल रहे हैं, वहीं भारत-पाकिस्तान के बीच ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने भी सैन्य तैयारी की गंभीरता को रेखांकित किया है। ऐसे माहौल में डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग पर विश्व का ध्यान केंद्रित हुआ है। भारत ने हाल के वर्षों में रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। आयातक से निर्यातक देश बनने की ओर बढ़ता भारत अब वैश्विक मंच पर एक मजबूत और विश्वसनीय रक्षा साझेदार के रूप में उभर रहा है। ‘मेक इन इंडिया’, ‘आत्मनिर्भर भारत’ और रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने वाली सरकारी नीतियों ने देश के रक्षा निर्माण और निर्यात को गति दी है।

रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत का रक्षा निर्यात वित्तीय वर्ष 2017-18 में मात्र 1,521 करोड़ रुपये था, जो 2023-24 में बढ़कर 16,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया। यह लगभग 950 प्रतिशत की वृद्धि है, जो यह दर्शाता है कि भारत अब रक्षा निर्माण और निर्यात के क्षेत्र में मजबूती से आगे बढ़ रहा है।

भारत ने पिछले कुछ वर्षों में एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और यूरोप के 85 से अधिक देशों को रक्षा उत्पादों का निर्यात किया है। निर्यात किए जाने वाले प्रमुख रक्षा उत्पादों में आर्टिलरी गन सिस्टम्स (धनुष) आकाश मिसाइल प्रणाली, राडार सिस्टम्स (स्वाति राडार), गश्ती नौकाएं और मिसाइल बोट्स, डोर्नियर एयरक्राफ्ट, ‘ध्रुव’, बुलेटप्रूफ जैकेट्स, हेल्मेट्स, स्मॉल आर्म्स और गोला-बारूद, ड्रोन, यूएवी आदि शामिल हैं।

सरकार ने रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं मसलन रक्षा उत्पादन नीति, निजी कंपनियों को प्रोत्साहन, विदेशों में रक्षा अटेचेज़ की नियुक्ति, सिंगल विंडो क्लियरेंस, डिफेंस एक्सपो जैसे अंतर्राष्ट्रीय आयोजन। हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड, भारत डायनामिक्स लिमिटेड, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड जैसे सार्वजनिक उपक्रमों के साथ-साथ टाटा, एल एंड टी, भारत फोर्ज जैसी निजी कंपनियों ने डिफेंस निर्यात को नया आयाम दिया है। सरकार ने लाइसेंसिंग प्रक्रिया को सरल बनाया है, जिससे निजी कंपनियां भी रक्षा उत्पादन और निर्यात में भाग ले सकें। रक्षा निर्यात से जुड़े लाइसेंस और परमिशन अब सिंगल विंडो सिस्टम से मिल रहे हैं।

ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली भारत की रक्षा तकनीक की एक उत्कृष्ट उपलब्धि है। यह सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल भारत और रूस के संयुक्त उपक्रम ‘ब्रह्मोस एयरोस्पेस’ द्वारा विकसित की गई है। अब यह न केवल भारत की सैन्य क्षमताओं का एक अभिन्न हिस्सा है, बल्कि भारत के डिफेंस निर्यात की पहचान भी बन रही है। भारत ब्रह्मोस मिसाइल का निर्यात करने की दिशा में सफलतापूर्वक कदम बढ़ा चुका है। यह भारत और रूस के संयुक्त उपक्रम ‘ब्रह्मोस एयरोस्पेस’ द्वारा विकसित एक सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल है, जो दुनिया की सबसे तेज क्रूज़ मिसाइलों में से एक मानी जाती है। यह भारत के डिफेंस एक्सपोर्ट सेक्टर की एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, क्योंकि इससे भारत विश्व के चुनींदा मिसाइल निर्यातक देशों की सूची में शामिल हो गया है।

जनवरी, 2022 में, भारत ने फिलीपींस के साथ लगभग 375 मिलियन डॉलर (करीब 2700 करोड़ रुपये) का सौदा किया। इस सौदे के तहत भारत शिप-लॉन्च ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम की आपूर्ति कर रहा है। यह भारत की पहली बड़ी मिसाइल निर्यात डील है। इंडोनेशिया, थाईलैंड, मलेशिया, यूएई, ब्राजील, अर्जेंटीना आदि देशों को — (संभावित ग्राहक) भारत ने ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली की पेशकश की है। ब्रह्मोस के ‘लैंड, शिप और एयर वर्ज़न’ को लेकर इन देशों में रुचि जताई गई है।

ब्रह्मोस निर्यात भारत की तकनीकी और सामरिक क्षमताओं को दर्शाता है। ब्रह्मोस जैसे हाई-एंड हथियारों के निर्यात से भारत के डिफेंस एक्सपोर्ट को वैश्विक स्तर पर नई पहचान मिली है। साथ ही दक्षिण चीन सागर और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की स्थिति मजबूत होती है। इससे ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ की वैश्विक छवि निखर रही है।

भारत का लक्ष्य है कि वह 2047 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बने और डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग इसमें एक प्रमुख स्तंभ बने। रक्षा निर्यात को बढ़ावा देना न केवल विदेशी मुद्रा कमाने का जरिया है, बल्कि यह भारत की वैश्विक रणनीतिक स्थिति को भी मजबूत करता है। इससे भारत की ‘सॉफ्ट पॉवर’ और ‘स्ट्रैटेजिक पावर’ दोनों को बढ़ावा मिलता है।

भारत को आने वाले वक्त में वैश्विक प्रतिस्पर्धा, तकनीकी आवश्यकताओं और लॉजिस्टिक्स जैसी चुनौतियों से जूझना होगा। कारगर रणनीतियां और निजी क्षेत्र की सक्रियता इस राह को आसान बना सकती हैं। इनसे निपटने के लिए भारत को अनुसंधान एवं विकास में निवेश, रक्षा स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन और वैश्विक साझेदारियों को मजबूत करना होगा।

भारत का डिफेंस सेक्टर अब आत्मनिर्भरता से आगे बढ़कर वैश्विक योगदानकर्ता बनने की ओर अग्रसर है। भविष्य में भारत रक्षा उत्पादों के लिए विश्व का प्रमुख निर्यातक बन सकता है जो न केवल आर्थिक दृष्टि से, बल्कि रणनीतिक रूप से भी देश को वैश्विक मानचित्र पर नई ऊंचाई प्रदान करेगा।

लेखक विज्ञान विषयों के जानकार हैं।

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