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युद्ध का कारोबार और नोबेल

ब्लॉग चर्चा

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विश्व का सबसे प्रतिष्ठित सम्मान नोबेल पुरस्कार, तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब यह वैश्विक शांति के लिए दिया जाए। डोनाल्ड ट्रंप इस पुरस्कार की चाहत रखते रहे। नोबेल शांति पुरस्कार शांति, सहयोग और मानवता की उन्नति के लिए दिया जाता है। सवाल यह है कि क्या युद्ध को बढ़ावा देकर या युद्धविराम का दावा करने वाली शक्तियों को यह पुरस्कार देना उचित होता है? अमेरिका का सामरिक हथियार व्यापार पांच से छह ट्रिलियन डॉलर का है।

पब्लिक डोमेन के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका छह से आठ प्रत्यक्ष युद्धों और तीस से चालीस प्रॉक्सी युद्धों में शामिल रहा है, जिसके परिणामस्वरूप लाखों लोग अपने जीने के अधिकार से वंचित हुए हैं। हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमले इसका ऐतिहासिक उदाहरण हैं। विश्व के हथियार व्यापार में अमेरिका की हिस्सेदारी लगभग चालीस प्रतिशत है। एक अच्छा राष्ट्र वह है जो अपनी और गरीब राष्ट्रों की संप्रभुता की रक्षा के लिए सामरिक सहायता दे, लेकिन अमेरिका हथियारों को व्यावसायिक रूप से उत्पादित करता है और ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत गरीब व विकासशील देशों के किसानों के हितों को नजरअंदाज करता है।

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ट्रंप का दावा है कि उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराया। भारत ने इन दावों को खारिज किया है। ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका ने दो सौ बिलियन डॉलर के हथियार निर्यात किए, जिनमें सऊदी अरब और भारत के साथ सौदे शामिल थे। असल में अमेरिका भारत में अपनी कृषि सप्लाई चेन स्थापित करना चाहता है। देखा जाए तो अमेरिका का इतिहास शांति के बजाय हथियार व्यापार और भू-राजनीतिक हितों को बढ़ावा देने का रहा है। प्रथम विश्व युद्ध से लेकर अब तक, अमेरिका ने युद्धों को बढ़ावा देने और हथियारों के व्यापार में अग्रणी भूमिका निभाई है। ट्रंप की नीतियां, जैसे भारत पर टैरिफ और रूस-यूक्रेन युद्ध में हथियारों की आपूर्ति, उनकी ‘शांति’ की छवि पर सवाल उठाती हैं। नोबेल शांति पुरस्कार ऐसी शख्सियतों को दिया जाना चाहिए जो वास्तव में मानवता और शांति के लिए समर्पित हों। यह पुरस्कार उन शक्तियों को नहीं दिया जाना चाहिए जो युद्धों को बढ़ावा देकर युद्धविराम का श्रेय लेने का प्रयास करें। नोबेल शांति पुरस्कार समिति अमेरिकी राष्ट्रपतियों को डिफ़ॉल्ट रूप से इस पुरस्कार की पात्रता से बाहर रखे, क्योंकि उनकी नीतियां शांति के बजाय व्यापारिक और सामरिक हितों को प्राथमिकता देती हैं।

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साभार : संस्कारधनी डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम

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