ट्रंप की टैरिफ की बम-बम का दमखम
इस वक्त बड़े बाबा सांसत में हैं। बम-बम टैरिफ तो बोल दिया। पर अब करें क्या? पांसा उल्टा पड़ गया। न उगला जाता न निगला जाता। बम-बम का यही केरेक्टर है। इसलिए सोचिए, बिना सोचे बम-बम मत बोलिए।
बाबा तो हमारे देश में ही मिलते हैं और वे भी वैरायटी में। अगर धंधे-पानी का कोई जुगाड़ न हो तो बाबा बन जाओ। इससे सस्ता, सुंदर और टिकाऊ बिजनेस कोई दूसरा नहीं है। जब तक चले चलाओ। अगर सरकार के साथ रहे तो फिर चकाचक! कुछ भी बोलते जाओ, कुछ भी करते जाओ तो भी लोग प्रेम से सुनेंगे। बस मीडिया को साधे रखो भाई। मीडिया बड़ी चीज है। कभी किसी को फर्श से उठाकर अर्श पर खड़ा कर देता है तो कभी अर्श से फर्श पर पटक देता है।
फिलहाल बाबा वाली यह परंपरा एक्सपोर्ट होने को है। देख लो हाउडी-हाउडी करने वाला भी बाबा ही तो है। मगर बड़ा वाला। सबसे बड़ा। उसके इशारे बिना पेड़ का एक पत्ता भी न हिलता। अगर हिला तो टैरिफ की बम-बम। मगर बम-बम तो हमारे यहां का मूलमंत्र है। बम-बम बोले बिना भगवान भी नहीं सुनते। बाबा बम-बम करता है तो जनता भी साथ हो जाती है और बम भोले गूंजने लगता है। यही तो इस वक्त बड़े बाबा कर रहे हैं। हालांकि हमारे यहां के बाबा बम भोले करते हैं मगर बड़े वाले बम-बम के आगे मिसाइल और ड्रोन लगा देते हैं। खरीद लो भैया, गोदाम खचाखच भरा है। जगह न बची। अगर यहां फूट पड़ा तो सुनामी आ जाएगी। सब कुछ तबाह हो जाएगा। तो दुनिया वालो खबरदार हो जाओ। बाबा की दुआएं ले लो वरना टैरिफ वाला बम तैयार है।
हमारे यहां बहुप्रकार के बाबा हैं। पुराने टाइप में कोई नीम वाला है, कोई इमली वाला तो कोई आम वाला और नये टाइप में कम्प्यूटर, मोबाइल और लेपटॉप वाले। मगर सबसे बड़ा तो टैरिफ वाला होता है। हमारे यहां भी टैरिफ जैसी बम बम है जीएसटी की। जब कभी जरूरत पड़ती है जीएसटी वाली बम-बम हो जाती है। गणित लगाते हैं। गणित में जीरो हमारे यहां की देन है। इसलिए तीन को तेरह कर सकते हैं तो कभी तेरह को तीन। फिलहाल चार को दो कर दिया और फिर धीरे से तीन कर दिया। चालीस की पूंछ लगा दी। जनता तो पांच और अठारह में मस्त है। अब उनका क्या होगा जो बड़ी-बड़ी भारी गाड़ियों में घूमते-फिरते एेश करते हैं। और रोज सुबह-सवेरे मुंह धोने के बाद वोदका को मुंह से लगा लेते हैं। तो उनके साथ तो नाइंसाफी हुई। फिर भी उन्हें फर्क न पड़ता जेब भरी है।
इस वक्त बड़े बाबा सांसत में हैं। बम-बम टैरिफ तो बोल दिया। पर अब करें क्या? पांसा उल्टा पड़ गया। न उगला जाता न निगला जाता। बम-बम का यही केरेक्टर है। इसलिए सोचिए, बिना सोचे बम-बम मत बोलिए।