शमीम शर्मा
काली स्याही के बिना सृष्टि विकसित ही नहीं हो सकती थी। जब यह स्याही आंखों तक पहुंची तो काजल कहलाई, कलाकार के हाथों में आई तो चित्रों में ढल गई, कवि के पास पहुंची तो गीत-ग़ज़ल बनकर उभरी। प्रेमी के हाथों में आई तो उसने इसी स्याही से अपने खतों में प्यार की इबारत बुन डाली। यानी कि यह स्याही कभी खतों में उभरी तो कभी किताबों और बहीखातों में। मां के हाथों में आते ही उसने इस स्याही से अपनी संतानों को नज़र न लगने वाला काला टीका बना डाला। इंसान के कारनामों से जुड़ी तो काला धन बन गई।
कागज और स्याही का रिश्ता सदियों पुराना है। कोरे पन्नाें पर काले अक्षर जब शब्द बनकर उभरते हैं तो दिल और दिमाग तक झनझना उठते हैं। कलम से लेकर छापेखाने तक का स्याही से अनवरत सिलसिला है। कभी इस स्याही ने आंसुओं की दास्तान लिखी तो कभी दिल की खुशियों को उड़ेल दिया। कभी जमाने की सच्चाई को उकेर दिया। राम और कृष्ण के सांवले रंग का लोकसाहित्य में खूब गायन हुआ है। रंगभेद में काले रंग के खिलाफ ही संघर्ष है पर साहित्य काले रंग को आलिंगन में भरकर उत्साहित होता प्रतीत होता है।
हरियाणवी में भी काले रंग पर आधारित एक भजन बहुत लोकप्रिय है :-
काला काला कहवै गूजरी मत काले का जिकर करै, काले रंग पै मोरनी रुदन करै।
यही काली स्याही कई बार ड्रोन बन जाती और फेंकने वाला पूरी ललकार के साथ नेताओं के मुंह पर इसे फेंकता है। चुनाव की वेला में काली स्याही मात्र एक इंक न होकर हथियार बन जाती है। वोटर की उंगलियों पर लगा काली स्याही का यह काला रंग तख्ते पलट सकता है। जमानत जब्त करवा सकता है। मार्टिन लूथर ने कहा था कि अगर तुम उड़ नहीं सकते तो दौड़ो। अगर तुम दौड़ नहीं सकते तो चलो। अगर चल नहीं सकते तो रेंगो पर आगे बढ़ते रहो। यह पढ़कर एक हरियाणवी सोचने लगा कि यो सब तो ठीक सै पर फूफ्फा न्यूं तो बता दे, जाणा कित सै। आज यही हालत हर वोटर की है। किसी को नहीं पता किस आधार पर किसे वोट देना है, वोट के बाद क्या होगा। सब जान-पहचान, जाति-पाति, धर्म के बहकावे में आ रहे हैं। लिंकन का कहा याद रखना कि बुलेट की तुलना में बैलेट ज्यादा मजबूत होता है।
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एक बर की बात है अक नत्थू ताहीं इलेक्शन मैं सिर्फ तीन वोट मिले। वो भाज्या भाज्या पुलिस कमिश्नर धोरै जाकै बोल्या- हजूर मेरे खात्तर जैड सिक्योरिटी का बंदोबस्त करो। अफसर बोल्या- इसा के होग्या? नत्थू बोल्या- पूरा शहर मेरे खिलाफ है, सुरक्षा तो चहिए ही।