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संख्या नियंत्रण के उपाय ही बेहतर समाधान

निराश्रित कुत्तों की समस्या
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श्वान आदिकाल से इंसान संग बस्तियों में रहते आये हैं। लेकिन हाल ही में निराश्रित कुत्तों द्वारा लोगों को काटने की घटनाएं बढ़ना चिंताजनक है। ऐसे में गलियों में खुले जीने वाले इस जीव को आश्रय स्थल भेजने की मुहिम जारी है। डॉग शेल्टर की संख्या व सुविधाएं कम हैं। कुत्तों की संख्या नियंत्रण को बंध्याकरण जैसे उपाय अपनाने चाहिये।

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के मुताबिक दुनिया में कुत्ते के काटने से होने वाले रैबीज़ से मौत के 36 प्रतिशत मामले भारत में होते हैं। यह संख्या 18,000 से 20,000 तक है। रैबीज से होने वाली मौतों के 30 से 60 प्रतिशत मामलों में पीड़ित की उम्र 15 साल से कम होती है। यह निर्विवाद है कि एक भी व्यक्ति की जान इस तरह जाए तो यह मानवता पर सवाल है और उसे बचाने के लिए सरकार और समाज को कड़े कदम उठाने चाहिए। वहीं डब्ल्यूएचओ की ही रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल शराब के सेवन से लगभग 2,60,000 से ज्यादा लोगों की मौत होती है। यह संख्या 2019 के आंकड़ों पर आधारित है, जिसमें बताया गया कि शराब सेवन से सबसे ज्यादा प्रभावित 20-39 वर्ष की आयु के युवा हैं। इनमें शराब के सेवन के चलते लीवर, दिल, कैंसर व दुर्घटनाओं से जुड़ी मौतें शामिल होती हैं। भारत में हर साल तंबाकू और गुटखा सेवन के चलते बीमारियों से लगभग 13.5 लाख लोगों की मृत्यु होती है यानी औसतन प्रतिदिन 3,700 से अधिक मौतें।

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सवाल उठना लाजिमी है कि समाज के जो कथित जिम्मेदार लोग कभी शराब और गुटखे पर पूरी पाबंदी के लिए कोर्ट तो क्या अपने मोहल्ले में खड़े नहीं हुए, उन्हें कुत्तों से अचानक इतनी नफरत क्यों हो गई। जबकि मनुष्य ने धरती पर पैदा होने के बाद सबसे पहले कुत्ता पालना शुरू किया था। बता दें कि नव पाषाण काल करीब 4000-2500 ईसा पूर्व के मानव कंकाल के साथ कुत्ता दफनाने के साक्ष्य बुर्जहोम, जम्मू-कश्मीर से प्राप्त हुए हैं। आदिकाल में कुत्ता इंसान को शिकार करने में मदद करता था, घर व फसल की रखवाली करता था। कम भोजन में भी वफादार बने रहने के उसके गुण ने आज कुत्ते को इंसान द्वारा पाला जाने वाला सबसे विश्वस्त और सर्वाधिक संख्या वाला जानवर बना दिया।

‘बैलों के गले में जब घुंघरू जीवन का राग...’ यह गीत कोई बहुत पुराना नहीं। तब बैल घर की प्रतिष्ठा और दरवाजे पर बंधी गाय पवित्रता की प्रतीक होती थी। फिर धीरे से ट्रैक्टर आया, जब जमीन की जोत छोटी हो गई और ट्रैक्टर नाम का ‘हाथी’ दरवाजे बंध गया तो खेती घाटे का सौदा हुई। बैल लुप्त हुए और गाय निराश्रित, जिन लोगों ने गाय को दरवाजे से हटाकर गोशाला ले जाने को पावन कार्य बनाया, वही वर्ग अब सड़कों से कुत्ते हटाने के तर्क गढ़ रहा है। ये वही वर्ग है जो सरकार की उस योजना का समर्थक है जिसमें प्रकृति के नियमों के विरुद्ध केवल बछिया ही पैदा करने के सीरम गांव-गांव बांटे जाते हैं। हालात ये हैं कि सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही 16 लाख से अधिक निराश्रित गायें हैं। पूरे भारत में निराश्रित गायों की सटीक संख्या के लिए राष्ट्रीय पशुगणना 2025 के नतीजों की प्रतीक्षा है, लेकिन अलग-अलग राज्य की रिपोर्ट्स के अनुसार यह संख्या 50 लाख से अधिक मानी जाती है। गोशालाओं की संख्या इसकी तुलना में मामूली है। जो हैं भी, उनमें अधिकांश अव्यवस्था की शिकार हैं।

क्या कभी विचार किया गया कि जलवायु परिवर्तन, खासकर बहुत तीखी गर्मी और अचानक बहुत तेज बरसात का असर सीधा अन्य जानवरों समेत इन बेसहारा कुत्तों पर भी पड़ रहा है। जब इंसान इस इतने बड़े बदलाव को समझ नहीं पा रहा तो जाहिर है कुत्तों को इसके साथ सामंजस्य बैठाने में समय तो लगेगा ही। जब मौसम की मार में इंसान भी उन पर क्रोध दिखाता है तो उनका जानवरपन उभर आता है। इसके साथ ही शहरीकरण के चलते बढ़ते जा रहे ट्रैफिक के शोर, प्रदूषण, बेतरतीब पड़े कचरे से मांसाहारी खाने और परिसरों में रोशनी की चकाचौंध ने भी कुत्तों को असहज बना दिया है।

बीते छह अगस्त को ही दिल्ली हाईकोर्ट के उस निर्देश पर भी विचार करना होगा जिसमें जज साहब ने कहा था कि ‘कुत्ते दुनिया के सबसे प्यारे जानवर हैं और इंसानों के सबसे अच्छे दोस्त हैं। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कुत्तों की सुरक्षा की जाए और उन्हें सम्मान दिया जाए। या तो कुत्ते घर पर हों या आश्रय में। सड़कों पर कचरा खाते हुए नहीं...।’ वहीं इंसान की कुत्तों के प्रति बढ़ रही नफरत के मद्देनज़र उत्तराखंड हाईकोर्ट का जुलाई, 2018 में दिया गया वह आदेश भी ध्यान देने योग्य है जिसमें लिखा था–‘जानवरों को भी इंसान की तरह जीने का हक है। वे भी सुरक्षा, स्वास्थ्य के लिए और क्रूरता के विरुद्ध इंसान जैसे ही अधिकार रखते हैं।’

फ़िलहाल तो लगता है जैसे देश में और कोई बड़ी समस्या रह नहीं गई हो। कुछ लोग कुत्तों को हटाने को लेकर एक से बढ़कर एक तर्क गढ़ रहे हैं, मसलन, एक ने कहा कि कुत्ते नहीं होंगे तो सफाई रहेगी। यहां जवाब है कि रेल या मोहल्ले के सार्वजनिक शौचालय में तोड़फोड़, चोरी और सलीके से इस्तेमाल न कर गंदा करने कुत्ते नहीं आते। क्या घर के बाहर पोलीथिन समेत कूड़ा, चलती कार से चिप्स पैकेट या केले का छिलका वे नहीं फैंकते हैं।

धरती पर सभी जीवों की संख्या पर नियंत्रण जरूरी है लेकिन उसके लिए अमानवीय तरीकों, और क्रूरता का सहारा लेने का सुझाव देने वाले भी सही नहीं कहे जा सकते। दूसरी ओर, जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश से असहमत हैं उन्हें भी निराश्रित कुत्तों के बंध्याकरण और टीकाकरण की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। यदि कुत्तों का टीकाकरण, नसबंदी, उसकी जानकारी उनके पट्टे में दर्ज करने जैसे सामान्य उपाय नागरिक समाज कर ले तो इस समस्या का निराकरण संभव है।

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