शमीम शर्मा
कभी-कभी किसी शहर के बारे में हम केवल इतना जानते हैं कि वहां एक शख्स रहता है जिसे हम प्यार करते हैं। पर जब शहर के शहर ही नेस्तनाबूद कर दिये जायें तो एक शख्स की अहमियत भी क्या रह जाती है। छोटे बच्चे भी जब घर-घर का खेल खेलते हैं तो एक-दूसरे का घर नहीं ढहाते। नकली के गुड्डे-गुड़ियों को भी बच्चे इतनी हिफाज़त और नज़ाकत से पकड़ते हैं कि कहीं चोट न लग जाये। पर बड़ा होने पर हमारी संवेदनाओं को क्या हो जाता है कि एकाध घर या व्यक्ति तो क्या हम पूरे शहर के शहर खाक करने में परहेज नहीं करते। एक मुल्क जब दूसरे मुल्क पर हमला करता है तो आंख बंद कर लेता है और उसे यह दिखाई ही नहीं देता कि कितने घर बर्बाद हो रहे हैं। भावी मातायें अपने पेट पर हाथ रख-रख अपनी भावी संतान की चिंता में घुली जाती हैं और भीतर पलता बच्चा यही सोचता होगा कि जालिमों की जमीन पर आने का क्या फायदा।
मरने के कई कारण हो सकते हैं पर किसी को मारने का एक भी कारण नहीं हो सकता। मेरी एक सहेली ने कहा है कि यूक्रेन और रूस की लड़ाई सिर्फ दो गोलियों से एक मिनट में खत्म हो सकती थी। मैंने पूछा वो कैसे तो जवाब मिला कि एक गोली का हकदार तो वह व्यक्ति जिसने हमला किया और एक गोली का हकदार वह व्यक्ति जिस पर हमला हुआ। विकसित होने में शताब्दियां लग जाती हैं और विनष्ट होने में एक पल। एक पल की नासमझी अहंकार का वृहद् वृक्ष खड़ा कर देती है। और फिर बातचीत के दरवाजे स्वतः बंद हो जाते हैं। ऐसे घमंडी नेताओं ने एक बात अपने पल्लू में बांध रखी है कि अपनी मर्जी के कर्म किये जाओ, फलों का क्या है, बाजार में भतेरे मिल जाते हैं।
रिवाज तो यह है कि छींक मार कर भी सॉरी बोलो और दुनिया के दो शानदार कहलाने वाले देशों के दिमाग में क्या कीड़ा है कि एक-दूसरे की ईंट से ईंट बजाकर भी सॉरी शब्द से कोसों दूर हैं। कोई झुकने को तैयार नहीं। गांवों में तो आज भी इतना भाईचारा है कि मिलते ही ताई कहेगी—म्हारी भैंस ब्यागी है, लास्सी लेण आ ज्याया कर।
बीड़ी पीने वाला आदमी हर बार बंडल से एक अच्छी बीड़ी खोजकर निकालता है और उसकी यह तलाश आखिरी बीड़ी तक जारी रहती है। ये लड़ाकू देश भी आखिरी सांस तक एक-दूसरे की सांस के प्यासे हैं।
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एक बर की बात है अक नत्थू एक मंदर मैं कोड्डा होकै हाथ जोड़े राम जी तै कहवै था—हे राम! ईसी आंधी चला दे अक वा म्हारे घरां आण पड़ै अर कोई लेण आवै तो कह द्यूं -क्यूं मन्नैं तो पाई है।