हाथ मिलाना खेल का कायदा है। खेल के आदि और अंत में हाथ मिलाई होती ही होती है भले बीच में आंख दिखाई या हाथापाई हो गई हो। खेल दो खिलाड़ियों का हो या दो पर दो बाईस का।
मशहूर शायर निदा फ़ाज़ली साहब का शे’र है दुश्मनी लाख सही खत्म न कीजे रिश्ता/दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए। वजह यह कि हाथ मिलाते रहने से रिश्ता सामान्य दिखता है। दिखावे के दौर में होने से ज्यादा दिखना मायने रखता है। होने को आप अंदर से कितने भी शातिर हों, हां मगर ऊपर से संत दिखना चाहिए। ये सच है कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से कभी हमारा दिल नहीं मिला, मिलता भी कैसे दिलों में हमेशा कड़वाहट जो रही। एक से दो होने वाले, अब दो से एक होना भी चाहें तो कैसे हों! बावजूद मौके-बेमौके हम समझौते की एक्सप्रेस चलाकर और सदा-ए-सरहद देकर हाथ मिलाते रहें। इस उम्मीद में कि हो सकता है कभी दिल मिल जाएं लेकिन हाथ मिलाने भर से गर दिल मिल गए होते तो फिर क्या था! दिल दा मामला तो ऐसा है भाई साहब कि देहधारी के बावजूद कई बार नहीं मिल पाते।
आप अच्छे से समझ लीजिए कि हाथ मिलाने का अर्थ दिलों का मिल जाना नहीं होता। दुनिया ने देखा झटके से कसकर हाथ मिला-मिला दोस्ती पक्की कर चुके मोदी जी को ट्रंप साहब ने टैरिफ बढ़ाकर झटके पर झटके दिए तो इधर देसी ट्रंप नीतीश भी न अब तक न जाने कितनों से स्नेहक मले हाथ मिला चुके हैं, वे न दोस्त हुए और न दुश्मन। राजनीति और खेलों की यही अच्छी बात है कि कोई खिलाड़ी स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होते। दर्शक, समर्थक दुश्मन बनें तो हजार बार बन जाए। तुम लड़ो हम कपड़े संभालते हैं।
इन दिनों सीमा आर से सीमा पार तक ‘हैंड शेक स्ट्राइक’ को लेकर खूब बवाल मचा हुआ है। एशिया कप में भारत-पाक मैच के दौरान भारतीय टीम द्वारा पाक टीम से हाथ न मिलाने को पीसीबी, पाक मीडिया और पाक क्रिकेट फैंस ने आड़े हाथ लेते हुए दिल पर ले लिया है। ये जानते हुए भी कि किसी से हाथ मिलाने से पहले हमारे हाथ साफ होने चाहिए। खैर, एक बार भारतीय टीम हारकर हाथ न मिलाती तो चल भी जाता लेकिन जीत कर हाथ न मिलाना जले पर नमक छिड़कने जैसी बात हो गई। यह तो हाथ मिलाने के बरअक्स मुंह चिढ़ाने जैसा हो गया। लेकिन हुजूर-ए-आगा ‘आग’ लगाकर हाथ मिलाने की इच्छा रखते हो तो ‘सूर्य’ पश्चिम से ही निकलेगा।
हाथ मिलाना खेल का कायदा है। खेल के आदि और अंत में हाथ मिलाई होती ही होती है भले बीच में आंख दिखाई या हाथापाई हो गई हो। खेल दो खिलाड़ियों का हो या दो पर दो बाईस का। आखिर में हाथ मिलाकर हैप्पी एंडिंग जरूरी है। जब से राजनीति और कूटनीति में खेल शुरू हुआ, इधर भी अपेक्षा की जाने लगी है कि पंजा लड़ाने के बाद हाथ मिला ही लेना चाहिए। आखिर ऐसे हाथ मिलाने का औचित्य भी क्या है?