सौ टके का सवाल यह है कि मस्तक की बिंदी नारी सौंदर्य का प्रतीक है या समाज की शर्त? क्यों स्त्री को यह अधिकार नहीं कि वह चाहे तो अपने माथे पर जीवनभर यह दीपक जलाए रखे, चाहे उसका पति हो या न हो?
स्त्री के माथे पर सजी बिंदी- सौंदर्य का चांद, आस्था का बिंदु, स्त्रीत्व की पराकाष्ठा और स्वाधीनता की लालिमा मानी जाती है। या फिर रात की गहरी काजल-रेखा के बीच जगी हुई कोई चिंगारी। पर बिंदी केवल सौंदर्य प्रसाधन नहीं है, यह नारी के व्यक्तित्व का मुकुट है। जैसे कमल पर ओस की बूंद, वैसे ही माथे पर सजी बिंदी स्त्री के चेहरे की संपूर्णता को संवार देती है। छोटी-सी गोल बिंदी में औरत की पूरी जिंदगी का हिसाब-किताब दर्ज है। इसी बिंदी-टिक्की ने प्रेमियों से लेकर कवियों तक को रिझाया है।
पर जरा सोचिए, उस दलील पर कि यह चमत्कारी बिंदी स्त्री की नहीं बल्कि उसके पति की ‘संपत्ति की मुहर’ है। पति जीवित है तो लाल बिंदी का झिलमिलाता संसार और जैसे ही पति का निधन हुआ, समाज तुरन्त आदेश देता है- अब बिंदी हटा लो, वरना अपशकुन हो जाएगा।
अब समय आ गया है कि स्त्रियां इस रूढ़िवादी आदेश के विरुद्ध खड़ी हों और कहें कि इसे हटाने का हक समाज को नहीं, केवल उसे है। पति के जीते जी बिंदी सौंदर्य और पति के जाते ही पाप। वाह री परंपरा! मानो पति के जाते ही सौंदर्य का यह लाल सूरज अचानक ढल गया हो और स्त्री का चेहरा आधा अधूरा रह गया हो।
यह स्पष्ट है कि स्त्री की जिंदगी, उसका सौंदर्य, उसकी पहचान तक भी पति की सांसों पर निर्भर है। तभी तो बिंदिया का लाल रंग कोई पवित्रता का नहीं, बल्कि ‘पुरुष-आधारिता’ का प्रतीक प्रतीत होता है। वे वरिष्ठ महिलाएं जो कभी खुद बिंदी से शोभित थीं, आज किसी विधवा को बिंदी लगाने से रोक देती हैं। मानो बिंदी किसी स्त्री की नहीं बल्कि केवल ‘सौभाग्यवती क्लब’ की पहचान हो। सवाल उठता है, क्या पति की मृत्यु से स्त्री का सौंदर्य भी मर जाता है? क्या उसकी इच्छाएं, उसका आत्मसम्मान भी पति के साथ श्मशान भेज दिया जाता है? बिंदी की चमक को पुरुष की सांसों से बांध देना स्त्री के साथ अन्याय है। माथे पर बिंदी नहीं, सोच पर बंधन हटाना जरूरी है।
सौ टके का सवाल यह है कि मस्तक की बिंदी नारी सौंदर्य का प्रतीक है या समाज की शर्त? क्यों स्त्री को यह अधिकार नहीं कि वह चाहे तो अपने माथे पर जीवनभर यह दीपक जलाए रखे, चाहे उसका पति हो या न हो?
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एक बर की बात है अक सज-सिंगर कै रामप्यारी घर तै बाहर जाण लाग्गी तो उसकी सास्सू बोल्ली- ए बहू बिंदी तो ला ले। रामप्यारी बोल्ली- मां जी! जीन्स पै बिन्दी कुण लावै है? उसकी सास्सू बोल्ली- मैं कद कहूं अक जीन्स पै लगा, मैं तो मात्थे पै बिंदी लगान की कह री सूं।