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बड़ा है वो नाम, बदनाम न करो

उलटबांसी
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आलोक पुराणिक

आरजी कर मेडिकल कॉलेज, कोलकाता में उस नौजवान महिला डाक्टर के साथ जो कांड हुआ, वह जघन्यतम था। जिनके नाम पर यह मेडिकल कालेज बना, उन आरजी कर की आत्मा ने भी आत्महत्या कर ली होगी, यह सोचकर कि मेरे नाम के संस्थान में यह क्या हो गया। आरजी कर बहुत बड़े डाक्टर थे और बहुत ही बड़े दिल के डाक्टर थे, आम आदमियों की, गरीबों की मुफ्त सेवा करने के लिए उनकी ख्याति रही है। उनके नाम पर बना अस्पताल कुख्यात हो गया है।

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महानों के नाम पर बने संस्थान में ऐसे ऐसे कांड हो रहे हैं कि उन महानों की आत्माएं भी आत्महत्या करने पर मजबूर हो सकती हैं। गांधी जयंती के कुछ दिन पहले एक दिन अखबारों में ये खबरें देखीं- महात्मा गांधी अस्पताल में घोटाला, महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना में घपला, महात्मा गांधी विश्वविद्यालय में अरबों की हेराफेरी, महात्मा गांधी स्कूल के संचालक लड़की छेड़ने में गिरफ्तार, महात्मा गांधी खादी संस्थान में घटिया मिलावटी माल। नेहरू पार्क में महिलाओं के साथ बदसलूकी- यह खबर पढ़कर मन उदास हुआ। अब बुरी बातों के साथ ही हम अपने महानों को याद करते हैं। सरोजिनी नायडू अस्पताल के चीफ ने अपने जूनियर डाक्टरों को पिटवाया। सरोजिनी नायडू की ख्याति इस आधार पर रही कि वह संवाद बातचीत में बहुत मधुरभाषी थीं, और उनके नाम पर बने अस्पताल में जूनियर डाक्टरों की पिटाई हो रही है। नाम वाले यूं बदनाम हो रहे हैं।

महानों की आत्मा अगर प्रतिरोध कर पाती है, महात्मा गांधी, नेहरू समेत तमाम महानों को बहुत लंबी-लंबी शिकायतें होती कि हो क्या रहा है हमारे नाम पर। नामियों की बदनामी ऐसे भी होगी, यह न सोचा गया था। अब के महानों को सबक लेना चाहिए। तमाम बड़े नेताओं को ताकीद करनी चाहिए कि उनके नाम पर पुल, सड़क, कॉलेज या कोई संस्थान न बनाया जाये। बिहार में पुल गिर जाते हैं। अब बताइये सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम पर पुल बने और गिरते ही टूट ले तो क्या मैसेज जायेगा। वल्लभ भाई पटेल दमदार नेता थे, उनके नाम पर बना पुल इतना कमजोर कैसे निकल सकता है। सब कुछ हो सकता है भारतभूमि चमत्कारों की भूमि है।

सवाल यह है कि अस्पताल वगैरह किसके नाम पर बनें। आरजी कर मेडिकल कालेज का नाम बदलकर दुशासन मेडिकल कालेज हो जाना चाहिए, ताकि इस कांड की याद बनी रहे और महिलाएं सावधान रहें। तमाम घपले घोटाले वाली योजना दुर्योधन रोजगार गारंटी योजना के नाम से जानी जाये।

जरा-सी बारिश में पटेल चौक डूब जाता है। आलसी मीडिया पूरा नाम भी नहीं लिखता- पटेल चौक डूबा, खबर बस यह आती है पटेल डूबा। पटेल साहब के साथ बहुत नाइंसाफी है यह। यह लगातार हो रही है। नामों से साफ संदेश जाना चाहिए।

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