तालिबानी मंसूबे, पाक शर्म से पानी-पानी
आईएमएफ ने पहले ही कह दिया— ‘हम डॉलर देते हैं, पानी नहीं।’ चीन ने कहा— ‘हम पाइप देंगे, पानी तुम
खुद भरो।’
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पाकिस्तान के लिए ये खबर किसी जलजले से कम नहीं थी — अफगानिस्तान ने ऐलान कर दिया कि वो कुनार नदी पर बांध बनाएगा। मतलब अब पानी भी कहेगा, ‘मैं तालिबानी हूं, मैं अब सरहद पार नहीं जाऊंगा।’
पाकिस्तान के पास अब दो ही विकल्प हैं— आईएमएफ से पानी का लोन मांगे या चीन से पानी की पाइपलाइन।
आईएमएफ ने पहले ही कह दिया— ‘हम डॉलर देते हैं, पानी नहीं।’
चीन ने कहा— ‘हम पाइप देंगे, पानी तुम खुद भरो।’
पाकिस्तान में हुक्मरानों को कुछ काम करने की आदत नहीं है। आईएमएफ पानी देता नहीं लोन में, तो पानी कहां से लायेंगे। पाकिस्तान हर वह चीज हासिल कर लेता है, जिसे कर्ज पर लिया जा सके या जिसका लोन लिया जा सके। कमाने, कर के खाने की आदत पाकिस्तान ने कभी डाली ही नहीं। चीन भी पाकिस्तान के निकम्मेपन से बहुत दुखी है, पर पाकिस्तान की धमकी के आगे चीन डर जाता है। पाकिस्तान धमकाता है कि हम पाकिस्तान को चीन का हिस्सा घोषित कर देंगे। पाकिस्तान अगर चीन बन जायेगा, तो फिर पाकिस्तानी आतंकी भी चीन के माने जायेंगे, यह सोचकर चीन घबरा जाता है और कर्ज वगैरह दे देता है।
पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘हमारे पास पानी की कमी नहीं है, बस वो हमारे पास नहीं आता।’
पाकिस्तानी मंत्री कामेडी टाइप की बातें करते हैं। जब वो कामेडी न करते, तो वह आतंकी टाइप बात कर रहे होते हैं। तालिबान ने बांध का नाम रखने के लिए एक प्रतियोगिता रखी।
पहला सुझाव आया— ‘जलजला डैम’
दूसरा—‘प्यासा पाकिस्तान प्रोजेक्ट’
तीसरा—‘बांध-ए-बरकत’
चौथा—‘पानी रोकने का इरादा, पड़ोसी को लगेगा सादा’
अंततः तालिबान ने नाम रखा —‘हक-ए-आब डैम’ यानी ‘पानी पर हमारा अधिकार’।
पाकिस्तान ने इसका अनुवाद किया—‘हक-ए-आब नहीं, हक-ए-आब-गया।’
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया : जल-शांति सम्मेलन होना चाहिए।
तालिबान ने जवाब दिया— ‘हम शांति से बांध बनाएंगे, आप शांति से प्यासे रहिए।’
पाकिस्तान ने फिर कहा— ‘हमारे पास पानी नहीं है, लेकिन हमारे पास प्रस्ताव हैं।’
तालिबान ने कहा— ‘हमारे पास पानी है, लेकिन प्रस्तावों की प्यास नहीं।’
पाकिस्तानी मीडिया ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय संकट घोषित कर दिया।
भारत ने इस पूरे घटनाक्रम पर कोई बयान नहीं दिया।
बस एक अधिकारी ने मुस्कुराते हुए कहा— ‘पानी की राजनीति में अब अफगानिस्तान भी खिलाड़ी बन गया है।’
इस पूरे जल-नाटक से एक बात तो साफ हो गई—अब पानी भी कूटनीति का हिस्सा है। जहां पहले मिसाइलें चलती थीं, अब बांध बनते हैं।
