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थोड़ा-सा सांस लें, थोड़ा-सा खांस लें

तिरछी नज़र

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इतने वर्षों से खुद जलने वालों ने इस बार पटाखे ही नहीं जलाए, उन पर्यावरणवादियों को भी जलाया, जो हमेशा प्रदूषण के विरोध में डटे रहते हैं, उन ज्ञानियों को जलाया जो आतिशबाजी से होने वाले नुकसान का ज्ञान देते रहते हैं।

बहुत दिनों बाद ऐसी छूट मिली थी, सो खूब पटाखे फोड़े, खूब अनार छोड़े, खूब चक्री चलायी, खूब फुलझड़ियां चलायीं। सच बात है जी, कोर्ट कब-कब इतना मेहरबान होता है। जरा-सी छूट को पूरी छूट में तब्दील कर देने के तो हम उस्ताद ठहरे। उंगली पकड़कर पोंचा पकड़ना इसी को तो कहते हैं। सो कोर्ट ने ग्रीन पटाखों की जो छूट दी, उसे हमने पूर्ण छूट में तब्दील कर दिया। कोर्ट भी नाराज नहीं है और सच पूछो तो सब खुश हैं। दुकानदार खुश कि उन्हें चोरी-छुपे न तो माल रखना पड़ा और न ही बेचना पड़ा। धड़ल्ले से दुकानों के सामने सजाया और धड़ल्ले से बेचा। खरीददार भी खुश कि चोरी चकारी से पटाखे नहीं खरीदने पड़े।

सनातन की रक्षा में सन्नद्ध रहने वाले भी खुश। कम से कम उन्हें खुशी का एक मौका तो मिला। वरना तो वे हमेशा आक्रोश मे ही रहते हैं, गुस्से में तिलमिलाए रहते हैं-सारा जोर हमीं पर चलता है क्या? हमारे त्योहारों पर ही नजर रहती है क्या? इतने वर्षों से खुद जलने वालों ने इस बार पटाखे ही नहीं जलाए, उन पर्यावरणवादियों को भी जलाया, जो हमेशा प्रदूषण के विरोध में डटे रहते हैं, उन ज्ञानियों को जलाया जो आतिशबाजी से होने वाले नुकसान का ज्ञान देते रहते हैं। बल्कि कहते हैं कि ध्रुव राठी को तो उन्होंने सबक ही सिखा दिया।

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दूसरों को जलाने के चक्कर में हमने खूब घर फूंक तमाशा देखा। अपनी आबोहवा बिगाड़ ली। अब कह रहे हैं कि दिल्ली में एक्यूआई का स्तर पांच सौ को पार कर गया। अरे यार यह कोई शेयर बाजार का सूचकांक है क्या, जो इतनी तेजी से बढ़ाए जा रहे हों। भाई साहब शेयर बाजार का सूचकांक बढ़ने के चाहे कितने ही फायदे हों, एक्यूआई बढ़ने के तो नुकसान ही होते हैं। अरे यार, कोई सोने-चांदी का भाव बढ़ रहा है क्या। और उससे भी खुश कौन है‍? माना कि दिवाली पर सोने-चांदी का भाव बढ़ता है, पर क्या जरूरी है कि दिवाली पर एक्यूआई भी बढ़े। पर क्या करें, बढ़ता ही है। बल्कि अब तो कहते हैं कि एक्यूआई बताने वाली मशीनें ही बंद कर दी गयी।

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सरकार आंकड़े-वांकड़े अब जरा कम ही बताती है। पर देखो जी, दिल्ली का नाम टॉप पर तो आ ही गया। सबसे प्रदूषित शहर बन गया। नाम होना चाहिए, बदनाम सही। अब चलो जरा-सा खांस लें। बीस सिगरेट के बराबर धुआं जो पी रहे हैं। बिन पिए शराबी होने की एक्टिंग करने वाले ही खुश क्यों हों, बिन पीए सिगरेटबाज होने की तड़ी भी जमा लो। बारिश से नुकसान की भरपाई तो हम बेशक न कर पाएं, पर बारिश ने जो प्रदूषण धोया, हम उसे वापस ले आए हैं। क्या शाबाशी के हकदार नहीं!

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