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पहाड़ों के विध्वंसक संदेश से सबक लें

राजेश रामचंद्रन किसी का घर भरभरा कर खाई में गिरते देखने का मंज़र सबसे बुरे ख्वाब से भी डरावना है और इस किस्म के भयावह दृश्य इन दिनों हिमाचल प्रदेश में रोजाना की हकीकत बने हुए हैं। पहाड़ों की खूबसूरती...
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राजेश रामचंद्रन

किसी का घर भरभरा कर खाई में गिरते देखने का मंज़र सबसे बुरे ख्वाब से भी डरावना है और इस किस्म के भयावह दृश्य इन दिनों हिमाचल प्रदेश में रोजाना की हकीकत बने हुए हैं। पहाड़ों की खूबसूरती को भुनाकर जल्द-से-जल्द पैसा बनाने की फितरत त्रासदी की दुखदायी दृश्यावली में तब्दील हो चुकी है। इस वीभत्स नाट्य में मुख्य खलनायक है बेलगाम लालच, जिसे विकास का नाम दिया गया है। बेशक, देश के समस्त हिस्सों के लोगों के लिए संपन्नता की गति कमोबेश एक-समान होनी चाहिए और कोई राज्य या अंचल पीछे छूटने न पाए। परंतु इसका यह मतलब नहीं कि मुल्क के सभी हिस्से एक जैसे हैं और जो तरीका दिल्ली-जयपुर हाईवे या मुम्बई-अहमदाबाद हाईवे की चौड़ीकरण प्रक्रिया में बरता जाता है वही चंडीगढ़-शिमला खंड में इस्तेमाल किया जाए। बस दिक्कत यहीं पर है।

आपदा में हुए अभूतपूर्व नुकसान से निपटने में लगे प्रशासन पर अंगुली उठाना फिलवक्त जल्दबाजी होगी। लेकिन यदि अभी आवाज़ न उठाई तो इसे भी जल्द भुला दिया जाएगा और फिर से वही निर्माण, और अधिक निर्माण वाला ढर्रा कायम रहेगा– यानी ढलानों को खड़ी धार में काटकर सड़कें बनाना, होटल बनाने के लिए चट्टानों को विस्फोट से उड़ाना, रेत-पत्थर का अंधाधुंध खनन, नदियों में मलबा बहाना और जहां मर्जी भवन बना डालना। हिमालय के पहाड़ बेलगाम निर्माण करने में लगे बिल्डरों को थमने को कह रहे हैं और यदि विध्वंस के रूप में आयी इस चेतावनी पर कान नहीं धरा तो नतीजा उससे भी भयावह होगा जो आज भुगत रहे हैं। इस मानसून में कम से कम 330 जानें गई हैं और 110 से अधिक भूस्खलन हुए हैं। अंदरूनी सड़कें बह चुकी हैं, अनेक गांव बाकी दुनिया से कटे पड़े हैं, बिजली आपूर्ति नदारद है, पेयजल और रसोई गैस की भारी किल्लत है।

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जब बात सीमावर्ती राज्य की हो तो सैन्य जरूरतें बिना शक सबसे पहली प्राथमिकता होती है। टैंक और अन्य भारी सैन्य उपकरण पहुंचाने को जल्द से जल्द सड़कें और पुल बनाने की दरकार है। हालांकि पूर्वी लद्दाख में चीन से बनी तनातनी की स्थिति ने सिद्ध कर दिया है कि भारतीय वायुसेना सैनिक और साजो-सामान पहुंचाने में सड़क मार्ग के मुकाबले कहीं ज्यादा सक्षम है। वर्ष 2020 से लेकर 68000 सैनिक और 100 टैंक, 300 से ज्यादा बीएमपी एवं इन्फैंट्री वाहन, तोपें, राडार और जमीन से हवा में मार करने वाली प्रणाली समेत 9,000 टन भारी सैन्य उपकरण वायु सेना ने सामरिक महत्व के ‘पृथ्वी की छत’ कहे जाने वाले इस इलाके में पहुंचाया है। भारतीय वायुसेना के सी-17 ग्लोबमास्टर III और सी-130 जे सुपर हर्कुलिस विमान भारी उपकरण पहंुचाने में लगातार लगे रहे।

तथापि, राष्ट्रीय सुरक्षा में सड़कों के महत्व को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कहा जा सकता और न ही पर्यावरणीय आधार पर इनके निर्माण में नुक्स निकालने की जरूरत होती है। लेकिन केवल सैलानियों को जल्द पहुंचाने की खातिर सड़कों को चौड़ा करने की दलील अतार्किक है, खासकर वहां, जहां पर यह करना खतरे से खाली नहीं। उदाहरणार्थ, राष्ट्रीय राजमार्ग का परवाणु-सोलन खंड, जहां पहाड़ों की वर्टिकल कटिंग की वजह से आए दिन भूस्खलन देखने को मिलता है। एक आम आदमी भी देखकर जान लेगा कि पहाड़ अपनी स्थिरता बनाने लिए जहां कहीं जरूरत पड़ रही, अपनी ढलान खुद तराश रहे हैं। राजमार्ग बनाने वाले इंजीनियर एवं ठेकेदार रेत-पत्थर उठवा कर डंगे लगाते हैं, लेकिन यही काम अगले मानसून में एक और भूस्खलन बनने का सबब बनता है। पिछले पांच सालों से यह महंगा खेल जारी है।

बेशक हिमाचल के आम नागरिक को भी कुछ खास परिस्थितियों में आवाजाही के तेज साधनों की जरूरत है। जैसे कि स्वास्थ्य आपात स्थिति। लेकिन इसका जवाब दिल्ली से पर्यटकों को भर-भरकर लाने वाली लंबी-चौड़ी बसों लायक सड़कें बनाने में नहीं है। इसका उत्तर तो अधिक हेलीपैड बनाकर बेहतर हवाई-संपर्क बनाने में और संभवतः एक या अधिक हवाई पट्टियां बनाने में है। पर्यटक इंतजार कर सकता है और करना भी चाहिए। उसके लिए चंडीगढ़ से चार-पांच घंटे में मनाली पहुंचना कोई इतना भी जरूरी नहीं है। वास्तव में, व्यापार की दृष्टि से, कुल्लू तक पहुंचने के दौरान यदि बीच में मंडी में रात रुकें तो और बेहतर होगा।

हिमाचल प्रदेश के स्थानीय लोगों की सबसे बड़ी शिकायत यह रहती है कि विकास योजनाएं पर्यटन उद्योग की मांग के मुताबिक तय की जाती है और यह बात सही भी है। केवल पांच साल पहले की बात है, जब एक होटल मालिक विजय ठाकुर ने सहायक नगर नियोजक शैल बाला की हत्या गोली मारकर कर दी थी। वह शख्स कसौली में अवैध निर्माण पर हो रही कार्रवाई को लेकर नाराज था। उसके बाद से न केवल अवैध निर्माण फला-फूला बल्कि इनकी वजह से स्थानीय लोगों को स्कूल-दफ्तर के समय पर भारी ट्रैफिक जाम का सामना करना पड़ता है। स्थानीय लोगों का कहना है, नियम-कानून केवल उनके लिए हैं न कि होटल बनाने वालों के लिए– कुछ प्रभावशाली लोगों पर अक्सर आरोप लगता है कि वे दूसरों की अवैध कमाई को निर्माण में निवेश के जरिये खपाने में मददगार हैं। आलम यह है कि अंग्रेजों के जमाने में बनी संजौली-ढली सुरंग के ऊपर भी भवन बना दिए गए और सुरंग में रिसने वाला पानी गंभीर खतरा बन गया है।

अब प्रदेश की मुसीबतों का दोष बाहरी अप्रवासी भवन-निर्माण योजनाकार (आर्किटेक्ट) पर मढ़ा जा रहा है। कोई आर्किटेक्ट तो वही करेगा जो उसका ग्राहक कहे और या फिर जो सरकारी नियमों में तय है। एक ऐसा राज्य, जहां दिन-दहाड़े एसिस्टेंट टाउन प्लानर की हत्या कर दी जाए, वहां अवैध निर्माण का दोष किसी आर्किटेक्ट - स्थानीय अथवा अप्रवासी–का को कैसे? हिमाचल प्रदेश की विकास की जरूरतों का उत्तर अधिक निर्माण कार्य करने, कम से कम खर्च में बसें भरकर पर्यटक पहुंचाने में नहीं है। प्रत्येक नया होटल या रेस्तरां जुड़ने से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे मौजूदा कारोबारी अपना मुनाफा घटाने को मजबूर होगा। क्यों नहीं इसका उलट बनाया जाए? हिमाचल प्रदेश को पैसा खर्चने की हैसियत रखने वाले पर्यटकों के लिए उच्च-कोटि का पर्यटक स्थल बनाया जाए। वायु या सड़क मार्ग से आने में, पर्यटक बीच में किन्हीं जगहों पर जितना हो सके रुका करें, ताकि कम-से-कम खर्च में पहुंचने की बजाय अधिक-से-अधिक धन पर्यटन व्यवसाय में खपे। उन पर्यटकों की सुविधा की खातिर सड़कें चौड़ी करने का कोई तुक नहीं है जिन्होंने रोहतांग दर्रा पहुंचकर निम्न गुणवत्ता के स्पीकरों पर संगीत बजाना है या मैगी नूडल खाने के बाद पत्ते-दोने फेंककर पहाड़ों पर कूड़ा फैलाना है।

परंतु, यह भी हकीकत है कि अच्छी हैसियत वाले पर्यटक जिन होटलों में ठहरते हैं, वहां साफ-सफाई के मामले में पाते हैं कि स्थानीय प्रशासन के पास यथेष्ट शहरी निकासी तंत्र नदारद है। बहुत जगहों पर, पानी के लिए पहाड़ों से नीचे बहने का रास्ता तक नहीं बचा। कोई हैरानी नहीं कि शिमला का पुराना वॉयस-रीगल लॉज भी हिलने की कगार पर है, उसका पिछला भूखंड गिरने से हुए भूस्खलन की चपेट में आए मंदिर में अनेक श्रद्धालु दबकर मारे गए। इस खूबसूरत शहर में मध्यम वर्ग के बाशिंदों का एकाएक बेघर होना पर्याय है प्रकृति द्वारा दी पूर्व चेतावनियों की अनदेखी के निष्ठुर सजा में तब्दील होने का। उम्मीद करें कि इस बार का मानसून सूबे की सामूहिक चेतना में बना रहे ताकि शिमला की अगली विकास योजनाएं बनाते वक्त 17 हरित पट्टियां और उनका कोर क्षेत्र अछूता रखा जाए।

लेखक प्रधान संपादक हैं।

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