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सीरिया के तख्तापलट से मध्यपूर्व में नया संकट

रूस, ईरान, तुर्की, इराक, मिस्र, जॉर्डन, सऊदी अरब और कतर ने दोहा में सीरिया का ‘राजनीतिक समाधान’ निकालने का आह्वान करते हुए एक संयुक्त बयान जारी किया है। दूसरी ओर, सीरिया के प्रधानमंत्री मोहम्मद ग़ाज़ी अलजलाली ने स्वतंत्र चुनाव कराये...
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रूस, ईरान, तुर्की, इराक, मिस्र, जॉर्डन, सऊदी अरब और कतर ने दोहा में सीरिया का ‘राजनीतिक समाधान’ निकालने का आह्वान करते हुए एक संयुक्त बयान जारी किया है। दूसरी ओर, सीरिया के प्रधानमंत्री मोहम्मद ग़ाज़ी अलजलाली ने स्वतंत्र चुनाव कराये जाने की मांग की है।

पुष्परंजन

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दमिश्क में पूर्व राष्ट्रपति हफ़ीज़ अल असद के बुत उठाये जा रहे हैं। तानाशाहों के ताज उछाले जा रहे हैं। प्रधानमंत्री बेंजामिन का दावा है कि इस्राइल द्वारा ‘ईरान और हिजबुल्लाह पर किए गए प्रहार’ का सीरियाई क्रांति पर सीधा प्रभाव पड़ा है। लेकिन इस्राइल को चिंता बफर ज़ोन की है। सीरियाई विद्रोही कब्ज़ा न करें, इस वास्ते इस्राइली बलों को आदेश दिया है वो सतर्क रहें। ईरान का आरोप है कि यह सारा खेल अमेरिका, इस्राइल और तुर्किये का रचा हुआ है। लेकिन, यदि यह त्रिगुट आइसिस और अल क़ायदा की विचारधारा पर चलने वाले हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) को प्रोमोट करता रहा है, तो मानकर चलिए कि मिडल ईस्ट में एक ख़तरनाक़ खेल हुआ है। इस खेल का नाम था ‘ऑपरेशन डिटरेंस ऑफ़ एग्रेशन’।

‘एचटीएस’ को यहां तक पहुंचने में बारह साल लगे। पहले इसे ‘अल-नुसरा फ्रंट’ के नाम से जाना जाता था। जबात अल-नुसरा का गठन 2012 में आइसिस द्वारा किया गया था। एक साल बाद यह गुट अलग हो गया, और फिर जबाहत फतेह अल-शाम नाम रखकर अल-कायदा के प्रति निष्ठा की घोषणा कर दी। कालांतर में इसने अल-कायदा से भी संबंध तोड़ लिए, और 2017 में हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) नाम से अपनी ब्रांडिंग शुरू कर दी। ‘एचटीएस’ इदलिब को नियंत्रित करता है। उत्तर-पश्चिम सीरियाई शहर इदलिब विद्रोहियों का एपिसेंटर रहा है, जहां दूसरे आतंकी समूह, ‘लिवा अल-हक़’, ‘जबात अंसार अल-दीन’ और ‘जैश अल-सुन्ना’ इससे जुड़ गए।

सीरिया की सीमा उत्तर में तुर्की, पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम में लेबनान और इस्राइल, पूर्व में इराक, और दक्षिण में जॉर्डन से लगती है। मानकर चलें कि जब तक सीरिया में चुनाव होकर एक निर्वाचित सरकार नहीं आ जाती, यह पूरा इलाक़ा डिस्टर्ब रहेगा। सीरिया की राजधानी में इराकी दूतावास की इमारत को खाली करा लिया गया है, और कर्मचारियों को लेबनान भेज दिया गया है। यह इराक द्वारा सीरिया के साथ अपनी सीमा को बंद करने, और दमिश्क में ईरानी दूतावास पर हयात तहरीर अल-शाम विद्रोही समूह के सदस्यों द्वारा हमला किए जाने के बाद हुआ है। रूस, ईरान, तुर्की, इराक, मिस्र, जॉर्डन, सऊदी अरब और कतर ने दोहा में सीरिया का ‘राजनीतिक समाधान’ निकालने आह्वान करते हुए एक संयुक्त बयान जारी किया है। दूसरी ओर, सीरिया के प्रधानमंत्री मोहम्मद ग़ाज़ी अलजलाली ने स्वतंत्र चुनाव कराये जाने की मांग की है।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल है, रूस मिडल-ईस्ट से अपना मिलिटरी बेस हटाता है, कि नहीं? सीरिया के लताकिया प्रांत में रूस के खमीमिम एयरबेस और तटीय नगर पर टार्टस में इसकी नौसैनिक सुविधा है। टार्टस मिडल ईस्ट में रूस की एकमात्र भूमध्यसागरीय मरम्मत और पुनःपूर्ति केंद्र है। मास्को के लिए यह वैसा बेस है, जहां से उसके मिलिटरी कॉन्ट्रैक्टर अफ्रीका में स्थित ठिकानों पर उड़ानें भरते हैं। बशर अल असद की वजह से रूस को टार्टस में एक नौसैनिक अड्डा और खमीमिम में एक सैन्य हवाई अड्डा हासिल हुआ था। बदले में मॉस्को की सेना 2015 में सीरियाई संघर्ष में सैन्य रूप से शामिल हो गई, जिसने खूनी गृहयुद्ध में विपक्ष को कुचलने के लिए असद की सेना को सहायता प्रदान की। हमीमिम एयरबेस और टार्टस हटाने के लिए, क्या एक और युद्ध होगा? इस सवाल को हम यहीं छोड़े जाते हैं।

लेकिन, सबसे डरावना है अरब विद्रोह, या ‘अरब स्प्रिंग’, जो मिडल ईस्ट के शाही परिवारों और डायनेस्टी पॉलिटिक्स करने वालों की नींद उड़ाए हुए है। अरब स्प्रिंग के बीज 17 दिसंबर, 2010 को बोए गए थे, जब ट्यूनीशियाई सड़क पर खोमचे लगाने वाला मोहम्मद बौआज़ीज़ी ने पुलिस दुर्व्यवहार के विरोध में आत्मदाह कर लिया था। आत्मदाह देखकर क्रांति भड़क उठी। 14 जनवरी, 2011 को ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति ज़ीन एल अबिदीन बेन अली देश छोड़कर भाग गए। ट्यूनीशिया के बाद, अरब स्प्रिंग की गति बढ़ती रही। 25 जनवरी, 2011 को मिस्र में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, जिसके परिणामस्वरूप 11 फरवरी को राष्ट्रपति होस्नी मुबारक ने इस्तीफा दे दिया।

यह अशांति और फैल गई, 15 फरवरी, 2011 को लीबिया में मुअम्मर गद्दाफी के शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। कर्नल मुअम्मर गद्दाफ़ी ने लीबिया पर कुल 42 साल तक राज किया, कर्नल गद्दाफ़ी सबसे अधिक समय तक राज करने वाले तानाशाह के रूप में जाने जाते थे। 20 अक्तूबर, 2011 को गद्दाफ़ी मारे गये, लेकिन उससे पहले उनकी बड़ी दुर्गति हुई।

इन सारी घटनाओं से प्रेरित विद्रोह की लहर 2011 में सीरिया पहुंची, उसे कुचलने के लिए असद शासन ने क्रूर बल का इस्तेमाल किया। दूसरी ओर मार्च 2013 अमेरिका ने सीरियाई विपक्ष को सहायता प्रदान करना शुरू किया। उसी साल 21 अगस्त को घोउटा में विद्रोहियों पर रासायनिक हथियारों से हमला हुआ। अमेरिका ने सैन्य कार्रवाई की धमकी दी। सितम्बर में सीरिया अंतर्राष्ट्रीय निगरानी में अपने रासायनिक हथियारों को नष्ट करने के लिए सहमत हुआ।

14 अप्रैल, 2018 को रूसी बलों द्वारा समर्थित सीरियाई सरकार ने लंबे समय तक घेराबंदी और भारी बमबारी के बाद पूर्वी घोउटा पर फिर से कब्ज़ा कर लिया। 31 दिसंबर, 2020 को असद सरकार ने अलेप्पो पर भी नियंत्रण हासिल कर लिया, जो युद्ध में एक बड़ा मोड़ था। 26 मई, 2021 को बशर अल-असद को सीरिया के राष्ट्रपति के रूप में चौथी बार फिर से चुना गया, चुनाव की निष्पक्षता की अंतर्राष्ट्रीय आलोचना के बावजूद उन्हें 95.1 प्रतिशत वोट मिले।

सीरिया 14 वर्षों से गृहयुद्ध की चपेट में है। सीरिया में जो कुछ हुआ है, वह सभी एशियाई और अरब तानाशाहों के लिए एक चेतावनी होनी चाहिए। विस्थापित सीरियाई नागरिकों का रिएक्शन अमेरिका-यूरोप में जिस स्केल पर दिखा उससे ही समझ में आ जाता है, गृहयुद्ध में उलझा मिडल ईस्ट कितना तबाह हुआ है। विपक्ष समर्थक सीरियन ऑब्ज़र्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स के अनुसार, मार्च 2011 और मार्च, 2024 के बीच 164223 नागरिक मारे गए। इस संख्या में सरकारी जेलों में मारे गए अनुमानित 55,000 नागरिक शामिल नहीं हैं।

भारत ने हाल ही में सीरिया के साथ द्विपक्षीय संबंधों को नवीनीकृत करने के प्रयास शुरू किए थे। फ़रवरी 2023 में विनाशकारी भूकंप के बाद ‘ऑपरेशन दोस्त’ के नाम से भारत ने सीरिया को मानवीय सहायता भेजी थी, जबकि पश्चिमी देश ऐसा करने के लिए अनिच्छुक थे। भारत ने असद शासन को हटाने के लिए विदेशी हस्तक्षेप का विरोध किया था। भारत और सीरिया ने 29 नवंबर, 2024 को नई दिल्ली में विदेश कार्यालय परामर्श का छठा दौर आयोजित किया था। सीरिया में करीब 90 भारतीय नागरिक हैं, जिनमें से 14 संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न संगठनों में काम कर रहे हैं। इस समय उनकी सुरक्षा भी हमारे लिए ज़रूरी है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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