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प्रखर बुद्धि व अद्वितीय विनम्रता के पर्याय

देशहित को सर्वोपरि मानने वाले डॉ. मनमोहन सिंह की छवि जहां सरल और मितभाषी प्रधानमंत्री की रही, वहीं उन्होंने कठोर फैसले लेने में भी संकोच नहीं किया। भारत में आर्थिक जहां जहां सुधारों के जनक माने जाने वाले डॉ. मनमोहन...
Manmohan Singh with NN Vohra, former governor of J&K. file PHOTO
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देशहित को सर्वोपरि मानने वाले डॉ. मनमोहन सिंह की छवि जहां सरल और मितभाषी प्रधानमंत्री की रही, वहीं उन्होंने कठोर फैसले लेने में भी संकोच नहीं किया। भारत में आर्थिक जहां जहां सुधारों के जनक माने जाने वाले डॉ. मनमोहन सिंह हमेशा पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को बेहतर बनाने के हिमायती रहे। उन्हें सदैव सम्मान के साथ याद किया जाएगा।

एन.एन. वोहरा
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डॉक्टर मनमोहन सिंह का दुःखद निधन एक दुर्लभ राजनीतिक नेतृत्व के समापन का पर्याय है। ऐसा नेतृत्व जिसकी पहचान असाधारण बौद्धिक क्षमता, ईमानदारी, पारदर्शिता और अद्वितीय विनम्रता के तौर पर रही है।

वह मितभाषी थे और उन्होंने सबकी सुनी, चाहे कोई छोटा हो या बड़ा। उन्होंने बेहद जटिल मुद्दों का समाधान खुद की सूझ-बूझ से निकाला जो राष्ट्रीय हित में सर्वोत्तम निर्णय रहे।

डॉ. सिंह के भारत लौटने के कई साल बाद, मुझे एक बहुत ही प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री प्रोफेसर से बतौर अपने ट्यूटर मिलने का सौभाग्य मिला। उनके साथ डॉ. मनमोहन सिंह ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में डॉक्टरेट की थी। डॉ. लिटल और उनकी धर्मपत्नी हमेशा सभी को गर्व से बताते थे कि डॉ. मनमोहन सिंह एक असाधारण अर्थशास्त्री थे, जो उस विश्वविद्यालय में अध्ययन करने वाले सर्वश्रेष्ठ स्कॉलर्स में से एक थे। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में भी उनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी।

बतौर प्रशासनिक अधिकारी अपने कैरियर के दौरान मुझे डॉ. सिंह के साथ काम करने का सौभाग्य तब मिला, जब वह सबसे कठिन दौर में देश के केंद्रीय वित्त मंत्री थे। उस वक्त देश को बेहद विषम परिस्थितियों में अपने स्वर्ण भंडार को गिरवी रखने के लिए मजबूर होना पड़ा था। मैंने उस वक्त क्रमशः रक्षा और गृह सचिव के रूप में कार्य किया था। उस वक्त संबंधित विभागों की वित्तीय राहत के आग्रह के लिए मुझे प्रतिदिन उनके कार्यालय में दस्तक देनी पड़ती थी।

डॉ. सिंह को सदैव राष्ट्रीय हितों के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता के लिए याद किया जाएगा। वर्ष 1990 के दशक की शुरुआत में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में भारत के आर्थिक सुधारों के जनक के रूप में और बाद में प्रधानमंत्री के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत की उद्यमशीलता की भावना यानी ‘जिंदादिली’ को उजागर करने का प्रयास किया। उस कठिन दौर में उनके महत्वपूर्ण कदमों का ही परिणाम था कि भारत 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के कुप्रभाव से बचा रहा। अपनी ही पार्टी के विरोध के बावजूद उन्होंने सिविल न्यूक्लियर समझौते के लिए अमेरिका से संपर्क साधा और इस तरह वैश्विक पटल पर भारत एक जिम्मेदार शक्ति के रूप में उभरकर सामने आया। पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के प्रति उनका समर्पण निस्संदेह असाधारण था। इससे भारत और पड़ोसी देशों के लोगों के बीच संबंधों में काफी सुधार हुआ। विशेष रूप से भारत और पाकिस्तान के नागरिकों से नागरिकों के बीच संबंध बढ़ाने में, 2008 के मुंबई हमलों के बावजूद, विशेषकर उन्होंने पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान को इन हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराने में कोई संकोच नहीं किया। मुझे एक बार फिर डॉ. मनमोहन सिंह के साथ तब काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जब वह प्रधानमंत्री थे और मुझे जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल नियुक्त किया गया था।

डॉ. सिंह हमेशा नैतिक पथ पर चलने वाले शख्स थे। बात चाहे एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में उनके कामकाज की हो, या फिर एक केंद्रीय मंत्री के रूप में और चाहे बतौर प्रधानमंत्री, अपने लम्बे और प्रतिष्ठित कैरियर के दौरान उन्होंने किसी प्रचार की चाहत नहीं रखी और नैतिक मार्ग पर चट्टान की तरह अडिग रहे। इसके लिए भले ही उन्हें उस राजनीतिक दल से भी परेशानी क्यों न उठानी पड़ी हो, जिसका वह प्रतिनिधित्व करते थे। निस्संदेह उन्हें आने वाले दशकों तक सम्मान के साथ याद किया जाएगा।

मेरी पत्नी और मैं, श्रीमती गुरशरण कौर तथा उनके परिवार के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं तथा प्रार्थना करते हैं कि प्रभु उन्हें इस अपूरणीय क्षति को सहन करने की शक्ति प्रदान करें।

लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी व जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे हैं।

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