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मीठा शरबत और कड़वाहट के बोल

व्यंग्य/तिरछी नज़र
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ऋषभ जैन

कहते हैं ग्रीष्म ऋतु में दो किस्म के लोग मोटे होते हैं। पहले वे जो गधे हैं और दूसरे जो गधे नहीं हैं। गधे गर्मियों में चहुंओर व्याप्त सूखे को देखकर हुए फीलगुड में मुटा जाते हैं। उन्हें लगता है सारी हरी घास उन्होंने ही उदरस्थ की है।‌ जो गधे नहीं हैं उन पर मोटापा शरबत और कोल्ड ड्रिंक के सेवन से आता है। यद्यपि वे गधे नहीं हैं तथापि इन वजन-वर्धक वस्तुओं का उपभोग इसलिए करते हैं क्योंकि अन्य लोग भी ऐसा कर रहे होते हैं और वे भी गधे नहीं हैं। हालांकि अ-गधों की प्रवृत्ति हर चीज को कसौटी पर कसकर देखने की होती ही है। इस चक्कर में सॉफ्ट ड्रिंक्स निपटा दिये गये हैं। यह घोषित कर दिया गया है कि अ-गधा वर्ग द्वारा इनका उपयोग बस टायलेट साफ करने के लिए होगा। अब शरबतों की बारी है।

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हम सोचते थे कि शरबत बस गर्मी भगाने के विशेषज्ञ हैं। अब पता चला है कि कुछ शरबत धर्म प्रभावना के काम भी आते हैं। इस तथ्य के प्रकाश में आते ही शरबतों‌‌ से जुड़ी हर बात सवाल के घेरे में आ चुकी है। अब नायक कहेंगे कि ‘मैं रंग शरबतों का तू मीठे घाट का पानी’, तो नायिकाएं जानना चाहेंगी कि शरबत कौन से ब्रांड का है? तब गौर करना जरूरी होगा कि उस घाट के पानी में उस शरबत की घुलनशीलता निर्धारित सीमा में है या नहीं।

शरबती गेहूं भी अब शंका भरी नजरों से देखे जायेंगे। उन्हें भी भिन्न प्रजातियों में वर्गीकृत करना आवश्यक होगा। जैसे रूह-शरबती और आत्मा-शरबती वगैरह। वर्गीकरण कृषक के धर्म पर आधारित होगा। सभ्यता के विकास के साथ शोध भी विकसित होंगे, तब शरबती की जाति आधारित किस्मों से भी इंकार नहीं किया जा सकता।

पिता जी शरबत और कोल्ड ड्रिंक से दूर रहने को कहते थे। वे कहते थे इनसे गला खराब होता है। हमें लगता था गला खराब होना तो छोटी-मोटी बात है। उन्हें जरूर किन्हीं बड़ी चीजों के खराब होने का भी अंदेशा रहा होगा। वे चाय पी लेने की सलाह दिया करते थे। धर्म-प्रभावक चाय जैसी कोई चीज नहीं पायी गयी है अब तक। हो सकता है भविष्य में आ जाये। कौन जानता है ये लो प्रोफाइल आइटम हाई क्लास क्रांति में लगे हों। एक चीज की निरापदता के लिए आश्वस्त हुआ जा सकता है, वह है शराब। इसके लिए आदरणीय हरिवंश राय बच्चन सर ‘मेल कराती मधुशाला’ का प्रमाणपत्र दे गये हैं।

प्रकरण से वाणिज्य और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधी सीखें भी मिलती हैं। जैसे किसी चीज की बिक्री को हतोत्साहित करना हो तो जरूरी नहीं कि उस पर अंट-शंट टैरिफ ही लगाया जाये। ऐसा उसे किसी मजहब का प्रभावक सिद्ध करके भी किया जा सकता है। प्रकरण के बाद सोशल मीडिया में अपने-अपने वाले शरबत की बोतल और गिलास थामे महारथियों की फोटो की बाढ़ आ गयी है। अब हर तरह के शरबतों की बिक्री चरम पर है। लगता है अब गधे भी शरबत पीकर ही मुटाएंगे।

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