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गर्मी में कुछ तो नरमी रखो सूर्यदेव

तिरछी नज़र
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शमीम शर्मा

गर्मी की मार तो चमड़ी का रंग बदल देती है, जैसे चुनावों में हारे हुए प्रतिद्वंद्वी का। झुलस कर चेहरा काला हो जाता है। लेकिन जिन के दिल काले हैं, उन्हें किस सूरज ने बदरंग किया है। और यह कालिमा धन-दौलत तक कैसे पहुंच गई, यह सवाल समझ से परे है।

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बचपन में हम एक भजन गाया करते :-

सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को

मिल जाये तरुवर की छाया।

पर इन दिनों स्कूल की एक बालसभा में यह कविता सुनने को मिली :-

खून में तेरे गर्मी, गर्मी में तेरा खून

ऊपर सूरज नीचे धरती, बीच में मई और जून।

सुबह के ताजा बैंगन शाम तक भरता बन जाते हैं। गर्मी में नरमी रखना भी पूरा प्रोजेक्ट है। सब तपे-तले-भुने हुए से सारा दिन पारे और डिग्री की बातें करते पाये जाते हैं। सत्य यह है कि हम चन्द्रयान भेज-भेज कर चांद के प्रति हद से ज्यादा प्यार दिखायेंगे तो सूरज तो जलेगा ही। बीए-एमए की डिग्री तो सुनी थी पर अब सूरज की डिग्री का भी पता चल गया। पचास डिग्री तो साथ लिये घूम रहा है। पता नहीं डाकी राम और कितनी लिये बैठा है। एक अचम्भा और है कि सब एक-दूसरे को कह रहे हैं- अरे भई बहुत गर्मी करवा रखी है। अपना कसूर किसी को दिखाई ही नहीं दे रहा।

मिट्टी का मटका भी गर्मी के कारण आधा पानी खुद ही पी जाता है। गर्मी की अति देखकर कुछ लोग चाय पीना छोड़ देते हैं, पर ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो चाहे गर्मी कितनी भी हो समोसे-पकौड़े गर्मागर्म ही मांगते हैं। वैसे गर्मी का मौसम भी किसी जादू से कम नहीं है। मुद्दत से गीजर बन्द पड़े हैं और पानी एकदम उबलता हुआ आ रहा है। इस पर मेरी सहेली का कहना है कि ईश्वर के घर देर है पर अंधेर नहीं है क्योंकि दिसम्बर में गर्म पानी की रिक्वेस्ट डाली थी, सुनवाई अब हुई है।

एक मां अपने बेटे को समझा रही थी कि गर्मियों में पक्षियों के लिये छत पर पानी रखने से बहुत सुन्दर-सुशील दुल्हन मिलती है। बेटा अगले दिन जाकर रूह अफजे का शर्बत बनाकर रख आया। एक मनचले का कहना है कि छोटे कद के लोगों को गर्मी कम लगती है क्योंकि वे सूरज से जरा ज्यादा दूर होते हैं।

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एक बर की बात है अक नत्थू रेल मैं बैठ जैसलमेर जावै था। घरां पहोंच कै अपणी लुगाई तैं बताण लाग्या अक एक तो कसूती गर्मी अर ऊपर तैं ऊपरली सीट मिलगी। कती भुण ग्या। रामप्यारी बोल्ली- भुला-चपरा कै नीचे आली सीट बदल लेता। नत्थू बोल्या- बदल तो लेता पर तलै की सीट आला आया ही नीं था।

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