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अंतरराष्ट्रीय मुकाबले में गली क्रिकेट का तड़का

तिरछी नज़र
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गली क्रिकेट हमेशा ऐसा ही होता रहा है कि जिस बच्चे का बैट होता है, अगर उसे आउट करार दे दिया जाए या उसे बैटिंग न मिले तो वह अपना बैट लेकर घर चला जाता है।

न मैं ले रहा, न मैं दे रहा। नहीं जनाब, यह कोई सूफी कलाम नहीं है। इसमें कोई रहस्यवाद भी नहीं है। यह न द्वैत है, न अद्वैत है। यह तो नए जमाने का क्रिकेट है। वैसे उतना नया भी नहीं है। गली क्रिकेट हमेशा ऐसा ही होता रहा है कि जिस बच्चे का बैट होता है, अगर उसे आउट करार दे दिया जाए या उसे बैटिंग न मिले तो वह अपना बैट लेकर घर चला जाता है। इधर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का स्तर भी कुछ-कुछ गली क्रिकेट के लेवल का हो लिया है जी। और इसमें भारत और पाकिस्तान दोनों का ही बड़ा योगदान है। भारतीय टीम एशिया कप टूर्नामेंट की विजेता रही। उसने कप जीत लिया। लेकिन कप लिया नहीं। बोले हम ना ले रहे मोहसिन नकवी के हाथ से कप।

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नकवी साहब एसीसी के अध्यक्ष हैं। पर पाकिस्तानी हैं। और छोटे-मोटे नहीं हैं। साथ में पीसीबी के चेयरमैन हैं और पाकिस्तान सरकार के मंत्री भी। भारतीय टीम ने कह दिया कि हम इनके हाथ से कप नहीं लेंगे। क्यों लें इनके हाथ से कप। ये ठहरे पाकिस्तानी। हम न ले रहे। नकवी साहब भी अड़ गए। बोले-मैं ठहरा एसीसी का अध्यक्ष। कप तो मैं ही दूंगा। इसके बाद कप उन्होंने किसी और को भी न देने दिया। उन्होंने कप उठाया और अपने होटल-वोटल चले गए।

अब पूछा जा रहा है कि कप कब मिलेगा। मिलेगा भी या नहीं। अब जल्दी मची है। उधर पाकिस्तानवालों को लग रहा होगा कि चलो जी, फ्री में मिल गया। मैदान में जेट गिराने का ड्रामा कर-करके भी पाकिस्तान वाले जीत नहीं पाए। अरे भैया, जेट गिराने के इशारे करने की बजाय विकेट गिराने का दम दिखाना चाहिए था न। वो तो दिखाया नहीं। यह खेल खेलने की बजाय अपना ही खेल खेल लेते तो ज्यादा अच्छा नहीं होता क्या। पर चलो जी, चेयरमैन साहब कप तो ले ही आए। भारत के साथ होने वाले युद्ध में भी पाकिस्तान वाले अपनी जीत ऐसे ही लाते हैं। जो भी हो, पर अब नकवी साहब के चुनाव प्रचार में इसे उनकी उपलब्धि की तरह पेश किया जा सकता है। बिना जीते भी कप लाने का श्रेय उनसे कौन छीन सकता है।

इधर भारतीय टीम की वाह-वाही हो रही है। लड़कों ने कमाल कर दिया जी। पहले तो पाकिस्तानियों से हाथ ही नहीं मिलाया। और अब पाकिस्तानी के हाथ से कप भी नहीं लिया। यार इतनी ही एलर्जी थी तो पाकिस्तान के साथ खेलने से ही मना कर देते। पर नहीं खेल भी खेल लिया और देशभक्त भी हो लिए। वो चचा गालिब ने कहा है न कि रिंद के रिंद रहे और हाथ से जन्नत न गयी। इधर प्रधानमंत्रीजी ने कह दिया कि ऑपरेशन सिंदूर जारी है। पहले बॉर्डर पर था, फिर राजनीति में आया और अब खेल में भी आ गया।

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