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दादी-नानी की गोद से विश्व मंच तक कहानियां

विश्व किस्सागोई दिवस
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कथाएं अतीत को जीवंत करती हैं, नैतिकता की ज्योति प्रज्वलित करती हैं और भविष्य के लिए प्रेरणा का आलोक फैलाती हैं। आयोजन केवल कला का प्रदर्शन नहीं, बल्कि मानव रचनात्मकता और वैश्विक सामंजस्य का एक प्रदीप्त प्रतीक है।

प्रो. आरके जैन ‘अरिजीत’

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जब शब्द नृत्य करते हैं, भावनाएं जागती हैं, और समय की धारा में एक जादुई चित्र उभरता है—तब जन्म लेती है एक कहानी। हर साल 20 मार्च को मनाया जाने वाला विश्व किस्सागोई दिवस केवल एक तारीख नहीं, बल्कि उस अनमोल परंपरा का उत्सव है जो मानव सभ्यता की नींव में बसी है। कहानियां सिर्फ शब्दों का संग्रह नहीं होतीं, वे समय की नदी में बहती जादुई लहरें हैं, जो सुनने वाले को एक अनदेखे सफर पर ले जाती हैं और कहने वाले के मन को अभिव्यक्ति का आकाश देती हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमारा वजूद, हमारी पहचान और हमारा इतिहास—सब कुछ कहानियों के रंगीन धागों से बुना गया है। चाहे वह दादी-नानी की गोद में सुनी लोककथाएं हों, किताबों में दर्ज ऐतिहासिक गाथाएं हों, हर कथा जीवन को समझने की नई दृष्टि देती है।

विश्व किस्सागोई दिवस एक ऐसा अनुपम उत्सव है, जो कहानियों के अलौकिक आकर्षण को केंद्र में लाता है और मानव सभ्यता की अनमोल विरासत को संजोते हुए सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बनता है। इसकी नींव 1991 में स्वीडन में पड़ी, जब इसे ‘राष्ट्रीय किस्सागोई दिवस’ के रूप में मनाया गया; कालांतर में 2001 में यह ‘विश्व किस्सागोई दिवस’ के रूप में वैश्विक मंच पर स्थापित हो गया। यह दिन मौखिक कथाओं और लोकसाहित्य की असीम शक्ति का उत्सव है, जहां हर साल एक नई थीम—2025 में ‘गहरा पानी’—कथाकारों को प्रेरित करती है। इस थीम के अंतर्गत वे संकट की घड़ियों, जल के रहस्यमय संसार या सागर की अथाह गहराइयों से कथाएं गढ़ते हैं।

कहानी कहना मानवता की सबसे पुरानी कला है। जब हमारे पूर्वज गुफाओं में आग के चारों ओर बैठते थे, तब भी वे अपने अनुभवों को कहानियों में ढालते थे। उन कहानियों ने न केवल उनका मनोरंजन किया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को जीवन के सबक, नैतिकता और साहस की प्रेरणा दी। आज एक मां अपने बच्चे को सोते वक्त जो कहानी सुनाती है, वह सिर्फ नींद लाने का जरिया नहीं होती—वह उसके कोमल मन में सपनों के बीज बोती है। एक लेखक जो अपनी किताब में समाज की सच्चाई उकेरता है, वह पाठक के विचारों को झकझोर देता है। कहानी केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि एक दर्पण है जो हमें हमारा अतीत दिखाता है, एक खिड़की है जो भविष्य की झलक देती है, और एक पुल है जो हमें एक-दूसरे से जोड़ता है।

डिजिटल युग ने कहानियों को नए पंख दिए हैं। पहले जो किस्से गांव के चबूतरे पर या अलाव की गर्माहट में सुनाए जाते थे, वे आज पॉडकास्ट की आवाज, वेब सीरीज़ के दृश्यों और सोशल मीडिया के छोटे-छोटे वीडियो में जीवंत हो उठे हैं। टेक्नोलॉजी ने कहानी कहने के तरीके को बदला है, लेकिन उसकी आत्मा को नहीं छुआ। आज भी एक अच्छी कहानी सुनते ही हमारा मन उसमें खो जाता है, हमारी आंखों के सामने चित्र उभरने लगते हैं, और हमारा दिल भावनाओं की लहरों में डूब जाता है। कहानी की वह ताकत अब भी बरकरार है जो हमें हंसाती है, रुलाती है, और सोचने पर मजबूर करती है।

इतिहास गवाह है कि कहानियों ने समाज को बदलने में अहम भूमिका निभाई है। महाभारत और रामायण जैसी पौराणिक कथाएं हमें धर्म और कर्म का पाठ पढ़ाती हैं, तो मुंशी प्रेमचंद की कहानियां हमें गरीबी और अन्याय की कड़वी सच्चाई से रूबरू कराती हैं। भगत सिंह की डायरी के पन्ने और गांधी जी की आत्मकथा हमें आजादी के संघर्ष की कहानी सुनाते हैं, जो आज भी युवाओं में जोश भर देती हैं। एक कहानी नायक को जन्म दे सकती है, एक क्रांति को प्रज्वलित कर सकती है और एक समाज को नई दिशा दे सकती है। जब मार्टिन लूथर किंग ने अपने सपनों की कहानी सुनाई, तो उसने नस्लवाद के खिलाफ एक आंदोलन खड़ा कर दिया।

आज का यह दिन हमें यह भी याद दिलाता है कि हर इंसान के भीतर एक अनकही कहानी छिपी है। आपकी जिंदगी का वह छोटा-सा किस्सा, जो आपको हंसाता है, या वह अनुभव, जो आपको रुला देता है—वह भी एक कहानी है। इस दिन हम यह संकल्प ले सकते हैं कि हम अपनी कहानियों को दुनिया के सामने लाएंगे। एक बच्चे को लोककथा सुनाएंगे, एक दोस्त के साथ अपने जीवन का कोई यादगार पल साझा करेंगे, या अपनी संस्कृति की गाथाओं को अगली पीढ़ी तक पहुंचाएंगे।

कहानी सिर्फ शब्दों का संग्रह नहीं, यह अनुभवों का उजाला है—एक रोशनी, जो न केवल हमारे भीतर के अंधेरे को मिटाती है, बल्कि दूसरों के जीवन में भी उजाला भरती है।

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