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खतरे में है तेल कीमतों की स्थिरता

सुषमा रामचंद्रन पिछले साल जो भू-राजनीतिक तनाव बना रहा वह अब नए साल में भी उभर आया है। लाल सागर में यमनी हुती लड़ाकों के व्यापारिक जहाजों पर हमले जारी हैं, भले ही अमेरिकी नौसेना ने उनके कुछ ड्रोन्स मार...

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सुषमा रामचंद्रन

पिछले साल जो भू-राजनीतिक तनाव बना रहा वह अब नए साल में भी उभर आया है। लाल सागर में यमनी हुती लड़ाकों के व्यापारिक जहाजों पर हमले जारी हैं, भले ही अमेरिकी नौसेना ने उनके कुछ ड्रोन्स मार गिराए हैं। इस इलाके में लड़ाई छिड़ने का जो असर होगा, उसका आघात बृहद वैश्विक अर्थव्यस्वस्था को अवश्यंभावी है। इसका प्रभाव भारत की आर्थिकी की पुनर्स्थापना पर भी रहेगा, जो कि पिछले दो सालों से बाहरी थपेड़ों से किसी तरह खुद को बचाए रखकर, विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनी हुई है।

यदि तनाव आगे बढ़ता है और स्वेज़ नहर से होकर अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक जहाज़ों की आवाजाही में विघ्न जारी रहा तो इससे यूरोप और एशिया के मध्य माल ढुलाई का भाड़ा बढ़ जाएगा। अधिकांश जहाजरानी ने पहले ही केप-ऑफ-होप से होकर, लंबा किंतु महंगा पड़ने वाला रास्ता चुनना शुरू कर दिया है। इससे दो महाद्वीपों के बीच जलीय दूरी में लगभग 6000 नॉटिक्ल माइल्स जुड़ जाते हैं।

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यूरोप-एशिया व्यापार का लगभग 42 फीसदी भाग स्वेज़ नहर से होकर है और एशिया की तरफ से आने पर, इस नहर तक पहुंचने के लिए, लाल सागर से गुजरना लाजिमी है। लाल सागर के प्रवेश मुहाने पर, उन्हें यमन और एरीट्रिया के बीच की बाब-अल-मंदेब खाड़ी से होकर गुजरना पड़ता है। यही वह जलीय क्षेत्र है, जहां पर यमन के अधिकांश भूभाग पर नियंत्रण रखने वाले हूती लड़ाके जहाज़रानी को निशाना बना रहे हैं, किश्तियों से या फिर ड्रोन्स के जरिए। हमास की मदद के इरादे से, हुती हरेक उस जहाज़ को निशाना बने रहे हैं, जिसका संबंध इस्राइल से हो। गौरतलब है कि रूस और चीन से संबंधित जलपोतों को बख्शा जा रहा है। लेकिन भारतीय-ध्वज लगे जहाज या फिर भारत से या भारत तक मालवाहक भी खतरे की ज़द में हैं, जैसा कि हालिया ड्रोन हमले ने दर्शाया है। अमेरिका ने तमाम देशों को गोलबंद करते हुए ऑपरेशन प्रोसेपैरिटी गार्डियन नामक प्रतिरोधक मोर्चा बनाया, जिसका मकसद स्वेज़ नहर से होकर जलपरिवहन को सुरक्षा देना था। इससे उत्साहित होकर डेनमार्क की नामी मेयर्स्क नामक जहाजरानी कंपनी ने आवाजाही शुरू कर भी दी, लेकिन नवीनतम हमलों ने इस जलीय मार्ग का इस्तेमाल फिर से बंद करवा दिया है, क्योंकि बहुराष्ट्रीय सुरक्षा बल को धत्ाा बताते हुए हुती हमले स्पष्ट रूप से जारी हैं।

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यदि स्थिति नियंत्रण से बाहर होती है तो इसका शृंखलाबद्ध प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर होकर रहेगा। पहला और फौरी असर तेल कीमतों पर होगा। वर्तमान में, बेंट क्रूड ऑयल मानक वाले कच्चे तेल का प्रति बैरल मूल्य 70-80 डॉलर है, जो कि पिछले साल सितम्बर में रहे 90 डॉलर से कहीं कम है। सुस्त पड़ती वैश्विक अर्थव्यवस्था मांग के मद्देनज़र, तेल उत्पादक एवं निर्यातक संघ (ओपेक प्लस) द्वारा तेल उत्पादन में कटौती की घोषणा का वैश्विक मांग पर कुछ विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। चीन की आर्थिक पुनर्स्थापना उम्मीद के मुताबिक तेज़ नहीं रही, जिससे कि विश्व के सबसे बड़े इस तेल आयातक की मांग घटी। जहां एक ओर अमेरिका में मांग होने के चलते कच्चे तेल का भंडारण काफी उच्च है वहीं दूसरी तरफ यूरोज़ोन में आर्थिक मंदी का दौर जारी है।

इस परिदृश्य के आलोक में, ओपेक प्लस द्वारा 2024 में तेल उत्पादन में दस लाख बैरल प्रतिदिन की अतिरिक्त कटौती वाले निर्णय का बाजार की मांग पर प्रभाव कुछ विशेष नहीं रहा। यह इस तथ्य के बावजूद है कि उत्पादन में पिछली और नई मिलाकर कुल कटौती 22 लाख बैरल प्रतिदिन की हो गयी है। लेकिन लाल सागर में बना संकट लंबा खिंचने पर स्थिति उलट हो जाएगी और तेल कीमतों में काफी उछाल आ सकता है। नतीजतन विकसित मुल्कों तक को काफी असर पड़ेगा, जो कि पहले से रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण उच्च ऊर्जा कीमतों का दंश सह रहे हैं।

लाल सागर क्षेत्र में संघर्ष लंबा खिंचने का दूसरा नकारात्मक परिणाम विश्वभर में मुद्रास्फीति दबाव में नई वृद्धि होगी। इससे न केवल तेल की कीमतें ऊपर उठेंगी वरन एशिया-यूरोप के बीच स्वेज़ नहर वाले रास्ते से गुरेज करने के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखला में विघ्न पड़ सकता है। हालांकि यूरोप और अमेरिका में पिछले साल भर बेकाबू रही मुद्रास्फीति कुछ थमने लगी थी, लेकिन नयी वृद्धि से मुल्कों के केंद्रीय बैंकों को पुनः ब्याज दर ऊंची करने को विवश होना पड़ेगा।

जहां तक भारत की बात है, उद्योग एवं सरकारी प्रवक्ता ने पहले ही चावल निर्यात को खतरा होने की आशंका जताई है। लेकिन यदि लाल सागर संकट बना रहता है तो माल ढुलाई में इजाफे से अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के दामों में भी उछाल आएगा। स्वेज़ नहर वाले छोटे रास्ते की बजाय अफ्रीका की परिक्रमा करके होने वाली आवाजाही से अमेरिका एवं यूरोप की मंडियों में माल पहुंचाना महंगा हो जाएगा। 2023-24 के लिए, पिछले वित्तीय वर्ष के तुलनात्मक कालखंड की तुलना में व्यापारिक निर्यात में पहले ही कमी होना महसूस हो चुका है, जो कि 455 बिलियन डॉलर के साथ रिकॉर्ड न्यूनतम स्तर रहा। पिछले साल अप्रैल-नवम्बर के बीच, सकल 2022 के तुलनात्मक कालखंड में सकल निर्यात में 6.5 फीसदी की कमी दर्ज हुई। जहां बढ़ती माल ढुलाई से किन्हीं मुल्कों का निर्यात प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले महंगा हो जाएगा वहीं ऊंची होती मुद्रास्फीति के असर से मुख्य बाजार में मांग में कमी बनेगी।

विशेषकर महत्वपूर्ण कच्चे तेल एवं प्राकृतिक गैस का आयात महंगा होगा। मौजूदा अनुमान के मुताबिक 2024 में कच्चे तेल की कीमत 70-80 प्रति बैरल रह सकती है। लेकिन लाल सागर में ताबड़तोड़ हमले जारी रहने का प्रभाव संघर्ष क्षेत्र से काफी दूर तक पड़ने का पूरा अंदेशा है। इससे भारत के तेल आयात के खर्च में काफी इजाफा होगा, क्योंकि मांग का कुल 85 प्रतिशत से अधिक का हमें आयात करना पड़ता है। पिछले वित्तीय वर्ष में रियायती दरों पर मिले रूसी तेल की वजह से स्थिति कुछ हद तक काबू में रही।

लिहाजा, लाल सागर बनी स्थिति का असर महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्र की वृद्धि दर पर हो सकता है। इससे मौजूदा वित्तीय घाटे में आगे इजाफा होगा, वहीं आपूर्ति शृंखला में विघ्न से औद्योगिक उत्पादन भी प्रभावित होगा। हाल-फिलहाल भारत के लिए, बेशक नाजुक क्षेत्र में घरेलू जहाजरानी की रक्षार्थ भारतीय नौसेना की उपस्थिति में बढ़ोतरी की गई है, लेकिन स्थिति केवल देखो और इंतजार करो वाली है।

लेखिका आर्थिक मामलों की वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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