अंतरिक्ष में अनुसंधान से मानवता हेतु नई उम्मीदें
इस अंतरिक्ष अभियान का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसके दौरान होने वाले परीक्षणों से मानवता के लिए महामारी बन रही बीमारियों के उपचार के लिए रास्ता खुलने की उम्मीद है। ये बीमारियां हैं मधुमेह और कैंसर। यदि सफलता मिलती है तो यह मानवता पर उपकार होगा।
सुरेश सेठ
सुखद है कि 41 वर्ष के बाद किसी भारतीय अंतरिक्ष यात्री ने न केवल अपने साथियों के साथ अंतरिक्ष में कदम रखा बल्कि डॉकिंग की नई उपलब्धि के साथ उसने वहां स्थित अंतरिक्ष स्टेशन में भी प्रवेश कर लिया। वे पहले भारतीय थे जिन्होंने न केवल 14 दिन के लिये इस स्टेशन में कदम रख लिया बल्कि दुनिया को भारत की ओर से वसुधैव कुटुम्बकम् का एक संदेश भी मिला। शुभांशु 140 करोड़ भारतीयों की उम्मीद ही नहीं, जैसा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, बल्कि वे एक नई दुनिया और एक नया भारत बनाने के लिए कुछ विशेष शोध अभियान पर भी हैं। बेशक यह सपना निजी निवेशकों की भागीदारी के साथ देखा जा रहा है और उत्सुक साहसी पर्यटक इस सपने के पूरा होने की उम्मीद कर रहे हैं।
अब सोचा जा रहा है कि वैज्ञानिक उपलब्धियों के इस निर्देश के साथ पर्यटन का एक नया क्षेत्र अंतरिक्ष में भी खोल दिया जाए। यह वैश्विक कमाई का एक बड़ा साधन बनेगा और क्योंकि भारत उपग्रहों के प्रक्षेपण में तो सफलता हासिल कर ही चुका है और तीसरी दुनिया के छोटे देशों के लिए संचार उपग्रह प्रक्षेपण कर रहा है। इसलिए अब वह अंतरिक्ष पर्यटन का मार्ग निर्देशक बन सकेगा। इस प्रकार अपने लिए कमाई का एक और उपयोगी मैदान खोल लेगा जहां निवेशकों को इस साहसिक अभियान को शुरू करने की हिम्मत के कारण अधिक प्रतिदान मिल सकेगा।
लेकिन इससे भी अधिक इस अंतरिक्ष स्टेशन में हमारे यात्रियों के प्रवेश के बाद जिन उपलब्धियों की उम्मीद की जा रही है उसमें से मानवता के लिए महामारी बन रही बीमारियों के उपचार के लिए रास्ता खुलने की उम्मीद है। ये बीमारियां हैं मधुमेह और कैंसर। इस शोध का एक लक्ष्य पृथ्वी पर मधुमेह के नियंत्रण में मदद करना है। दूसरी तेजी से फैलती बीमारी है कैंसर। अभी इस कैंसर का उपचार बहुत खर्चीला है। यह शुभ सूचना है कि शुभांशु शुक्ला और उनके साथी िशन पर रवाना होने के बाद 14 दिनों तक इन बीमारियों के चिकित्सा प्रयोगों का हिस्सा बनेंगे। अंतरिक्ष यात्रियों में से एक अंतरिक्ष में अपने पूरे प्रवास के दौरान निरंतर ग्लूकोज मीटर पहने रहेगा और वास्तविक समय के रक्त शर्करा माप की निगरानी पृथ्वी पर अनुसंधान करके की जाएगी। उड़ान के दौरान इसके नमूने इकट्ठे होंगे और सही उपचार के परीक्षण किए जाएंगे। जो सफल होगा, उसी से अब अंतरिक्ष के सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से रोगों का इलाज होगा।
अंतरिक्ष उड़ानों से जोड़ों और रक्त प्रवाह पर पड़ने वाले प्रभावों की जांच होगी। आसान शब्दों में कहें तो इसका अर्थ यह कि आर्थराइटिस या जोड़ों की बीमारियों का क्या कोई हल अंतरिक्ष का यह शोध हमें दे सकता है? कैंसर का अध्ययन भी यहां विशेष रूप से किया जा सकता है। समझा जाता है कि कैंसर की कोशिकाएं सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में आसानी से पुनर्जीवित हो सकती हैं। अगर ऐसा है तो ये स्टैम कोशिकाएं और इनका पुनर्जीवन आदमी की उम्र बढ़ाने को कैसे प्रभावित कर सकता है, इसका अध्ययन भी होगा। यह अध्ययन स्टैनफोर्ड स्टैम सैल इस्टीट्यूट और जेएम फाउंडेशन की मदद से किए जाएंगे।
निस्संदेह, अगर इस अभियान में इस प्रकार कैंसर निदान की कोई बेहतर दवा या उपचार विकसित करने में सफलता मिल जाती है तो यह मानवता के लिये अच्छी खबर होगी। फिर 14 दिन तक हमारे ये सभी यात्री कम्प्यूटर स्क्रीन का ही निरंतर प्रयोग करेंगे। इससे यह भी पता चल जाएगा कि इसका शारीरिक और हमारी संज्ञा पर क्या प्रभाव पड़ता है। आमतौर पर कहा जाता है कि कम्प्यूटर के निरंतर इस्तेमाल से तेजी से आंखों की हरकतें प्रभावित होती है। इसलिए इस शोध को मानव जीवन के लिए बहुत उपयोगी माना जा रहा है।
अब नहीं कहते कि इन सभी समस्याओं का पूरा-पूरा हल हम इसी यात्रा या शोध अभियान में ले आएंगे लेकिन एक सही शुरुआत तो हो गई। प्राय: किसी वैज्ञानिक शोध में कदम दर कदम सफलता हासिल की जाती है। इस बार क्योंकि इस शोध अभियान का एक भाग मानवीय चिकित्सा और हमारी दुरूह बीमारयों के इलाज के साथ जुड़ा हुआ है, इसलिए इस अभियान का महत्व और भी बढ़ जाता है। खासकर, हमारे देश के लिये जिसके बारे में कहा जाता है कि असह्य गरीबी और उचित पोषण के अभाव में यहां बीमारियों से लड़ने की शक्ति कम है। इसलिए अंतरिक्ष स्टेशन पर होने वाले इन प्रयोगों से हमें उन बीमारियों के समाधान में मदद मिल जाएगी। इसका मानव जीवन पर कितना उपकार होगा, यह तो स्पष्ट ही है। यह अभियान कई देश मिलकर चला रहे हैं। नासा के अभियान के साथ-साथ हमारा इसरो भी इस नेक अभियान में पूरा योगदान ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला के जरिये दे रहा है। इसके बारे में अगर भारतीय गर्वित महसूस कर रहे हैं तो यह तार्किक है।
लेखक साहित्यकार हैं।