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कुछ मीठी, कुछ चटपटी सी राजनीति

तिरछी नज़र

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सहीराम

वैसे तो जी, दिवाली बीत गयी है। अब उसकी मिठास तो चाहे न बची हो, पर पटाखों का धुआं तो बचा ही होगा। यह स्मॉग यूं ही तो नहीं छायी होगी। खैर, अच्छी बात यह है कि इधर राजनीति भी कुछ मीठी, कुछ चटपटी-सी हो चली है। राजनीति से डरने वालों, उससे बचने वालों, उससे चिढ़ने वालों के लिए यह खुशखबरी हो सकती है। जब तक हरियाणा में चुनाव थे और चुनाव परिणाम थे तब तक तो कुछ मीठा हो जाए, की तर्ज पर जलेबियां खायी और खिलाई जा रही थी। इस चक्कर में बेचारे लड्डू विस्थापित हो गए। इस बार न किसी ने लड्डू खाए, न खिलाए। शादी-ब्याह से तो वे पहले ही बाहर हो चुके हैं, अब खुशी के दूसरे मौकों से भी जलेबी ने उन्हें खदेड़ दिया।

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दरअसल, जलेबी सिर्फ खुशी के लिए ही खायी और खिलाई नहीं जा रही थी। चिढ़ाने के लिए भी खायी खिलाई जा रही थी। पहले कांग्रेसियों ने जलेबी के लिए अपना प्रेम जताकर भाजपायियों को चिढ़ाया। फिर भाजपायियों ने चुनाव जीतकर और जलेबी खाकर तथा खिलाकर कांग्रेसियों को उनकी हार के लिए चिढ़ाया। ऐसा लग रहा था, जैसे हरियाणा की टिपिकल राजनीति की तरह ही जलेबी ने भी पाला बदल लिया हो। पहले वह कांग्रेसियों की लग रही थी, फिर भाजपाइयों की हो गयी।

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और जैसे मीठे के बाद कुछ चटपटा हो जाए टाइप की डिमांड होती है, वैसे ही जलेबी के बाद समोसे की डिमांड हो गयी साहब। बल्कि कहना चाहिए कि समोसे पर मार मच गयी। समस्या यह हुई कि जलेबी तो सबको मयस्सर हुई। पहले कांग्रेसियों को और फिर भाजपा वालों को। हालांकि, कांग्रेसियों ने भी जलेबी के ऑर्डर कम नहीं दिए थे। लेकिन समोसा तो किसी के हाथ लगा ही नहीं साहब। कम से कम नेताओं के हाथ तो नहीं लगा। यह तो ऐसे ही हो गया जैसे मंत्री पद न मिला हो। लोग कहते हैं कि समोसे के लिए ऑर्डर तो हुआ था, समोसा आया भी था, लेकिन हाथ नहीं लगा। नेता के लिए आया समोसा स्टाफ खा गया। यह तो कुछ-कुछ वैसा ही हो गया जी जैसे बजट में किसी योजना के लिए आवंटित पैसा नौकरशाही खा जाती है।

इस माने में समोसा भ्रष्टाचार की इस प्रवृत्ति का प्रतीक बन सकता है-रिवर्स टाइप में। जैसे खजाने से निकला पैसा जनता तक नहीं पहुंचता। वैसे ही होटल से निकला समोसा नेताजी तक नहीं पहंुचा। रिवर्स टाइप से। अच्छी बात यही है कि जैसे भ्रष्टाचार के मामलों की, घोटालों की जांच बिठायी जाती है, वैसे ही समोसा हड़पे जाने की भी जांच बिठा दी गयी है। इस जांच की फिर जांच होगी। इस चक्कर में समोसा ठंडा हो जाएगा। लेकिन अच्छी बात यही है कि राजनीति कुछ मीठी, कुछ चटपटी-सी हो गयी है।

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