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उपलब्धियां पाने का मार्ग भी है एकांत

अंतर्मन
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लौकिक जीवन में संकट-समस्याओं का सामना करते समय व्यक्ति अक्सर एकांत की इच्छा करता है। कठिन परिस्थितियों में व्यक्ति अकेले रहकर अपने विचारों को संगठित करने, अपनी भावनाओं को संतुलित करने और आत्ममंथन द्वारा समाधान ढूंढ़ने का प्रयास करता है।

आधुनिक जीवन की आपाधापी और भौतिक लिप्साओं ने हमारे जीवन में इतना कोलाहल भर दिया है कि जीवन में एकांत के सुख से हम वंचित हो गए हैं। एकांत के मायने हैं आत्ममंथन, आत्मविश्लेषण का अवसर और जीवन का सुकून। खासकर सोशल मीडिया के भयावह शोर ने तो हमें एकांत से कोसों दूर कर दिया है। आदि शंकराचार्य द्वारा रचित ‘साधना पंचकम स्तोत्रम’ एक तत्वपूर्ण ग्रंथ है। इस ग्रंथ में निहित चालीस अमृत वचनों में से तेतीसवां उपदेश है—‘एकांते सुखमास्यतां’, जिसका शाब्दिक अर्थ है-एकांत में सुखपूर्वक रहो। यद्यपि इस वाक्यांश का संबंध अद्वैत वेदान्त के आध्यात्मिक संदर्भ में है, जिसमें आत्मसाक्षात्कार पर बल दिया गया है। लेकिन सांसारिक जीवन में भी यह उतना ही सार्थक है।

बीसवीं सदी के महान स्पेनिश चित्रकार, मूर्तिकार पाब्लो पिकासो का एकांत विषयक दृष्टिकोण, उनके जीवन दर्शन का अभिन्न भाग था। उनके विचारों में एकांत रचनात्मक कार्यों और आत्मनिरीक्षण के लिए नितांत जरूरी है। उन्होंने अपनी सार्थक कलात्मकता का श्रेय एकांत को दिया। उनके शब्दों में ‘गहन एकांत के बिना कालजयी रचना संभव नहीं है।’ उनका मानना था कि एकांत बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करता। उनका कथन—‘मैंने अपना एकांत स्वयं रचा है’ दर्शाता है कि वे सामाजिक होते हुए भी आंतरिक एकांत में रहते थे। सवाल यह है कि क्या समाज की भीड़ से अलग-थलग रखना ही एकांत है या इसका कोई और गहन अर्थ भी है? क्या यह अपने कमरे में चुपचाप विश्राम करना एकांत है या एकांत मौन में अपने अंतर्मन से बातें करने का अवसर है‍‍‍? क्या यह केवल गुफाओं में जाकर तप करना भर है या आत्मसाक्षात्कार के लिए गंभीर प्रयास जरूरी है‍? कहीं यह समाज से पलायन तो नहीं‍? या यह स्वयं में लौटने की सचेत यात्रा है? या आत्मबोध के लिए एक सुअवसर। व्यापक रूप से देखें तो एकांत स्वैच्छिक रूप से रचनात्मकता के लिये चुनी हुई अकेलेपन की अवस्था है। इसमें व्यक्ति शान्ति व आनंद महसूस करता है।

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दरअसल, एकांत केवल शारीरिक रूप से लोगों से दूर रहने की अवस्था नहीं है बल्कि यह मन को भी बाहरी विक्षेपों से मुक्त रखने की स्थिति है। एकांत के दौरान व्यक्ति अपने ही विचार और भावनाओं के साथ होता है।

एकांत की अवधारणा को तीन स्तरों पर समझना होगा। एक, शारीरिक एकांत जहां हम कोलाहल से दूर अकेले बैठकर प्रकृति के साथ शांत वातावरण में अपने शरीर को विश्राम देते हैं। अधिकतर लोग इसी को एकांत समझते हैं और छुट्टी लेकर कुछ समय के लिए पहाड़ों या समुद्र के किनारे चले जाते हैं। यह सच्चा एकांत नहीं है, क्योंकि जब बाहरी शोर थम जाता है तो मन के भीतर का कोलाहल विचलित करता है। दूसरा है विचारों के तूफान को शांत करने वाला एकांत। इसी को मानसिक एकांत कहते हैं। इसके लिए ध्यान, मौन और आत्मचिंतन साधन है। तीसरा, आध्यात्मिक एकांत जिसमें व्यक्ति विचारों से परे चेतना के शुद्ध स्वरूप में आ जाते हैं। संक्षेप में कहें तो शारीरिक एकांत से विश्राम मिलता है। मन का एकांत मानसिक विक्षेपों को दूर करता है और आध्यात्मिक एकांत आत्मसाक्षात्कार का मार्ग प्रशस्त करता है।

अक्सर कुछ लोग एकांत को अकेलापन समझ लेते हैं। एकांत अकेला रहने के लिए सचेतन चयन है और मन में आनंद-उमंग भर देता है, वहीं अकेलापन एक अनचाही मजबूरी है, जो तनाव, चिंता और उदासी को जन्म देती है। अगर अकेलापन अभिशाप है तो एकांत एक वरदान। समझदार लोग अपने अकेलेपन को सृजनात्मक दिशा देकर खुशनुमा एकांत में बदलने का प्रयास करते हैं। लौकिक जीवन में संकट-समस्याओं का सामना करते समय व्यक्ति अक्सर एकांत की इच्छा करता है। कठिन परिस्थितियों में व्यक्ति अकेले रहकर अपने विचारों को संगठित करने, अपनी भावनाओं को संतुलित करने और आत्ममंथन द्वारा समाधान ढूंढ़ने का प्रयास करता है।

वहीं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से एकांत आत्मसाक्षात्कार की यात्रा का आरंभ है। भारत के ऋषि-मुनियों ने एकांत को आत्मबोध और ईश्वरानुभूति का प्रथम सोपान बताया। एकांत हमें बाहरी संसार के कोलाहल से हटाकर अंतर्मन की गहराइयों में ले जाता है। लेकिन यदि मन चंचल है तो चाहे पहाड़ों का शांत वातावरण हो या समुद्र का रमणीक किनारा सब व्यर्थ है। यदि मन स्थिर हो तो कोलाहल भी एकांत बन जाता है। एक बार परमहंस योगानंदजी से उनके एक शिष्य ने पहाड़ों की गुफा में जाकर तपस्या करने की इच्छा प्रकट की, उसे लगता था कि आश्रम की चहल-पहल उसकी साधना में बाधक है। इस पर परमहंस जी ने उसे समझाया– इस प्रकार तुम आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर पाओगे। तुम्हारा मन अभी तक परमात्मा पर गहरी एकाग्रता से ध्यान करने हेतु तैयार नहीं है। यदि तुम किसी गुफा में रहोगे तो तुम्हारे अधिकांश विचार लोगों की याद और सांसारिक मनोरंजन पर ही टिके रहेंगे। नित्य ध्यान करने के साथ-साथ अपने सांसारिक कर्तव्यों को सहर्ष पूरा करना श्रेष्ठतर मार्ग है।

निस्संदेह एकांत स्वयं को जानने का अवसर होता है। ‘एकांते सुखमास्यतां’ केवल एक वाक्य ही नहीं, बल्कि सकारात्मक जीवन जीने का एक सफल मार्ग है। जो स्मरण कराता है कि मन की शान्ति का स्रोत हमारे अंदर ही है और उसे पाने का सबसे प्रभावी माध्यम है-एकान्त।

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