बांधवगढ़ की सीता
मध्य प्रदेश का रहवासी तो यों भी वनों और बाघों का आदी होता है। फिर बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व जाने का मोह कैसे छूटता। सतपुड़ा के घने, गहरे, आच्छादित पहाड़ों को रेल की खिड़की से देखना ऐसा था मानो कई एक संत कतार से समाधि लगाए बैठे हों। रात डेढ़ बजे अमरकंटक एक्सप्रेस ने उमरिया स्टेशन पर उतारा। … सुबह हमारी जिप्सी का ड्राइवर था सिकंदर। तीस बरस से जिप्सी चला रहा था और समझिए कि जंगल का पुरोधा किस्सागो था। सिकंदर का नाम असल में ओमप्रकाश तिवारी था। एक अनाथ किशोर जो भटककर बांधवगढ़ आ गया। किसी दुकान पर उसे चाय के कप धोते देख एक शिक्षक की दृष्टि उस पर पड़ी और उसे टाइगर रिजर्व में जिप्सी चलाने का काम दिलवा दिया। वे ही उसे प्यार से सिकंदर पुकारते थे, सो यही नाम चल पड़ा।
अब हमारी जिप्सी चली उस ओर जहां के लिए कहते हैं कि वहां इस टाइगर रिजर्व के इन अनगिनत बाघों की आदि माता रहती थी- सीता बाघिन। और वह स्थान था- सीता मंडप। अब भला इस स्थान का नाम सीता मंडप क्यों रखा गया होगा? संभवतः इसकी प्राकृतिक संपन्नता के कारण। तुलसीदास जनकपुरी का वर्णन करते हैं- होत चकित चित कोट बिलोकी। सकल भुवन सोभा जनु रोकी। तो, यहां सीता मंडप में आदि प्रकृति का वैभव है- पहाड़, शीतल जल, खोह, फलों से लदे वृक्ष और केंकते-नाचते असंख्य मोर। पता नहीं, सीता मंडप नाम के इस स्थान पर रहने के कारण उस आदि माता बाघिन का नाम सीता रखा गया; या फिर सीता नाम की बाघिन के यहां वास के कारण इस स्थान का नाम सीता मंडप पड़ गया। कई बार स्थान की पहचान प्राणी बन जाता है।
बांधवगढ़ का अर्थ ही है- बांधव (बंधु) अर्थात् भाई का किला। राम के भाई का किला! नजारे लेकर हम सीता मंडप से नयी राह चले। कच्ची सड़क पर रात को जंगली हाथियों का दल गुजरा होगा; उनके पैरों के निशानों से हमने उनके होने की कल्पना की। यहां वन विभाग की एक हथिनी है अनारकली। लगभग दो बरस पहले, वह एक रात आए किसी जंगली हाथी के साथ भाग गई थी। वन विभाग वाले बड़ी मशक्कत से उसे तीन-चार दिनों बाद खोजकर, पकड़कर वापस बेस कैम्प ला पाए थे। अब बाइस महीनों बाद उसने एक नन्हे हाथी को जन्म दिया है। क्या आपने बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की सैर की है? क्या सीता बाघिन की कहानी से आप रू-ब-रू हुए हैं।
साभार : शब्दांकन डॉट कॉम