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बुध और शुक्र पर संभावित जीवन के संकेत

मुकुल व्यास पारलौकिक जीवन की खोज कर रहे वैज्ञानिकों का ध्यान अब बुध और शुक्र की तरफ गया है। उन्होंने बुध के उत्तरी ध्रुव के पास लवणयुक्त ग्लेशियरों की खोज की है, जिससे यह संभावना बढ़ गई है कि सूर्य...
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मुकुल व्यास

पारलौकिक जीवन की खोज कर रहे वैज्ञानिकों का ध्यान अब बुध और शुक्र की तरफ गया है। उन्होंने बुध के उत्तरी ध्रुव के पास लवणयुक्त ग्लेशियरों की खोज की है, जिससे यह संभावना बढ़ गई है कि सूर्य का निकटतम ग्रह जीवन की मेजबानी करने में सक्षम हो सकता है। दूसरी तरफ, वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में पाया गया है कि शुक्र पर कभी टेक्टोनिक प्लेट में वैसी ही हलचल हुई होगी जैसी प्रारंभिक पृथ्वी पर हुई थी। यह खोज शुक्र पर प्रारंभिक जीवन की संभावना की तरफ इशारा करती है। बुध सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है। इस ग्रह के लवणीय ग्लेशियरों में जीवन के चरम रूपों के लिए सही परिस्थितियां हो सकती हैं।

दरअसल, नए निष्कर्ष नासा के मैसेंजर रोबोटिक यान द्वारा किए गए पिछले अवलोकनों पर आधारित हैं। मैसेंजर ने 2011 और 2015 के बीच बुध की रासायनिक संरचना, चुंबकीय क्षेत्र और भौगोलिक विशेषताओं का अध्ययन किया था। नई खोज का ब्योरा द प्लैनेटरी साइंस पत्रिका में दिया गया है। एरिज़ोना स्थित ग्रह-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक और अध्ययन के प्रमुख लेखक एलेक्सिस रोड्रिग्ज ने कहा, हाल के एक शोध से पता चला था कि प्लूटो में नाइट्रोजन के ग्लेशियर हैं। नई खोज इसी शोध का विस्तार है। इन शोधों के नतीजों से स्पष्ट है कि हमारे सौरमंडल के सबसे गर्म से लेकर सबसे ठंडे क्षेत्रों तक ग्लेशियर पाए जाते हैं। बुध के रेडिटलाडी और एमिनेस्कु क्रेटर में पाए जाने वाले ये ग्लेशियर पृथ्वी जैसे हिमखंडों की तरह नहीं हैं। इसके बजाय, वे लवण के प्रवाह हैं जो बुध की सतह के नीचे वाष्पशील यौगिकों को जकड़े हुए हैं।

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भूविज्ञान की दृष्टि से वाष्पशील पदार्थ वे रसायन हैं जो किसी ग्रह पर आसानी से वाष्पित हो जाते हैं, जैसे पानी, कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन। क्षुद्रग्रहों के प्रहारों ने बुध के विचित्र लवण खंडों को उजागर किया है। इस प्रक्रिया में सतह के नीचे फंसा हुआ पदार्थ भी उजागर हो गया। यही वजह है कि विज्ञानियों ने इन्हें क्रेटरों में खोजा।

सूर्य से निकटता के कारण बुध पर ग्लेशियरों का पाया जाना सचमुच आश्चर्यजनक है। यह ग्रह पृथ्वी की तुलना में सूरज से 2.5 गुना अधिक निकट है। उस छोटी सी दूरी पर चीजें बहुत अधिक गर्म होती हैं। अध्ययन के सह-लेखक ब्रायन ट्रैविस के अनुसार लवण के ये प्रवाह एक अरब वर्षों से अधिक तक अपने वाष्पशील पदार्थों को संरक्षित कर सकते हैं। हालांकि बुध का लवण भंडार विशिष्ट हिमखंडों या आर्कटिक ग्लेशियरों के अनुरूप नहीं है, पृथ्वी पर भी लवणीय वातावरण मौजूद है। इसलिए भूविज्ञानियों को इस बात का अच्छा अंदाजा है कि ये किस तरह के वातावरण हैं और क्या वहां जीवन उभर सकता है। रोड्रिग्ज ने कहा, पृथ्वी पर विशिष्ट लवण यौगिक कुछ सबसे कठोर वातावरणों में भी रहने योग्य स्थान बनाते हैं। चिली में अटाकामा का शुष्क रेगिस्तान इसका उदाहरण है। सोच की यह दिशा हमें बुध पर सतह के नीचे के क्षेत्रों पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है। ये क्षेत्र ग्रह की कठोर सतह की तुलना में अधिक अनुकूल हो सकते हैं।

दरअसल, सूर्य की तीव्र किरणों के बावजूद बुध की सतह के नीचे जकड़े हुए वाष्पशील पदार्थ भूमिगत जीवन को बनाए रखने में सक्षम हो सकते हैं। पानी जैसे वाष्पशील पदार्थ जीवन के लिए आवश्यक हैं। यदि बुध पर जीवन हो सकता है, तो बुध जैसे बाहरी ग्रह उन विज्ञानियों के लिए अधिक आकर्षक हो सकते हैं जो पारलौकिक जीवन की तलाश कर रहे हैं। बुध की सतह के नीचे वास्तव में क्या छिपा हुआ है, इस पर प्रकाश डालने के लिए अभी और अध्ययन की आवश्यकता है।

सौरमंडल में हमारा सबसे करीबी पड़ोसी शुक्र ग्रह एक झुलसा देने वाली बंजर भूमि है। पृथ्वी की तरह शुक्र की आयु करीब 4.5 अरब वर्ष है। उसका आकार और द्रव्यमान भी लगभग पृथ्वी के बराबर है। शायद इसी वजह से उसे पृथ्वी का जुड़वां ग्रह भी कहा जाता है। नेचर एस्ट्रोनॉमी पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में ब्राउन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं और अन्य वैज्ञानिकों की एक टीम ने शुक्र ग्रह के वायुमंडलीय डेटा और कंप्यूटर मॉडलिंग का उपयोग करके यह दर्शाया है कि ग्रह के वर्तमान वायुमंडल की संरचना और सतह का दबाव केवल प्लेट टेक्टोनिक्स के प्रारंभिक रूप के परिणामस्वरूप ही संभव हो पाए होंगे। प्लेट टेक्टोनिक्स जीवन के लिए महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।

दरअसल, प्लेट टेक्टोनिक्स सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की ऊपरी परत (लिथोस्फीयर) कई बड़े शिलाखंडों अथवा प्लेटों में विभाजित है जो पृथ्वी के नरम मध्य भाग (कोर) के ऊपर चट्टानी आंतरिक परत (मेंटल) पर सरकती हैं। ये प्लेटें पृथ्वी के लैंडस्केप को नया आकार देने के लिए लगातार चलती रहती हैं। पृथ्वी पर प्लेट टेक्टोनिक्स की प्रक्रिया अरबों वर्षों में तीव्र हुई, जिससे नए महाद्वीपों और पहाड़ों का निर्माण हुआ। इस प्रक्रिया के कारण उत्पन्न रासायनिक क्रियाओं की वजह से ही हमारे ग्रह की सतह का तापमान स्थिर हुआ जिससे जीवन के विकास के लिए अधिक अनुकूल वातावरण तैयार हुआ।

दूसरी ओर, शुक्र विपरीत दिशा में चला गया। आज उसकी सतह का तापमान इतना गर्म है कि सीसा पिघल सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि शुक्र पर हमेशा ऐसा नहीं होता था। शुक्र के वायुमंडल में मौजूद नाइट्रोजन और कार्बन डाइऑक्साइड की प्रचुरता को ध्यान में रखते हुए उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि लगभग 4.5 अरब से 3.5 अरब साल पहले ग्रह के निर्माण के कुछ समय बाद शुक्र पर प्लेट टेक्टोनिक्स रही होगी। शोध पत्र से पता चलता है कि यह प्रारंभिक टेक्टॉनिक हलचल पृथ्वी की तरह प्लेटों के हिलने की संख्या और उनके खिसकने की मात्रा के संदर्भ में सीमित रही होगी। यह पृथ्वी और शुक्र पर भी एक साथ घटित हो रहा होगा। अध्ययन के प्रमुख लेखक मैट वेलर ने कहा कि इस शोध से बड़ी तस्वीर यह उभरती है कि सौरमंडल में एक ही समय में प्लेट टेक्टोनिक के अंतर्गत संचालित होने वाले दो ग्रह थे। टेक्टोनिक्स का वही रूप था जो पृथ्वी जैसे जीवन को संभव बनाता है। नया अध्ययन प्राचीन शुक्र पर सूक्ष्मजीवी जीवन की संभावना को बढ़ाता है और यह दर्शाता है कि अतीत में किसी बिंदु पर पृथ्वी और शुक्र ज्यादा समान रहे होंगे। नासा का आगामी दाविंची मिशन शुक्र के वायुमंडल में गैसों को मापेगा। इससे नए अध्ययन के निष्कर्षों को मजबूत करने में मदद मिल सकती है।

इस बीच, शोधकर्ता इस बात की जांच करेंगे कि शुक्र पर आखिरकार प्लेट टेक्टोनिक्स का क्या हुआ? शोधकर्ताओं का मानना है कि शुक्र अंततः बहुत गर्म हो गया और इसका वातावरण बहुत घना हो गया, जिससे टेक्टोनिक हलचल के लिए आवश्यक तत्व खत्म हो गए। शुक्र पर यह सब कैसे घटित हुआ, इसका विवरण पृथ्वी के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।

लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं।

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