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बैंकॉक में मोदी-यूनुस मुलाकात के मायने

द ग्रेट गेम

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बैंकॉक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के बीच मुलाकात कई मायनों में महत्वपूर्ण है। इसलिए भी कि बांग्लादेश के बदले राजनीतिक हालात में वहां कुख्यात पाक एजेंसी आईएसआई के खतरनाक मंसूबों के प्रति उन्हें आगाह किया जा सके। तथ्य यह कि बांग्लादेश को हमेशा भान रहना चाहिये कि भारत को सदा सब कुछ पता रहता है।

ज्योति मल्होत्रा

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बीते शुक्रवार बैंकॉक में बिम्सटेक सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के बीच हुई मुलाकात की पृष्ठभूमि में दो घटनाओं का संदर्भ जरूरी है। पहली है, जब 5 अगस्त, 2024 को उग्र भीड़ ने बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान का घर जलाने की कोशिश की, जिसकी तस्वीरें बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन का प्रतीक बनीं, इसके कुछ ही मिनट पहले शेख हसीना को ढाका छोड़कर दिल्ली भागना पड़ा था, और तथाकथित छात्र क्रांति के बाद शीर्ष पद पर अमेरिका में प्रशिक्षित अर्थशास्त्री को बैठाया गया था - इसके दो महीने बाद, 5 फरवरी को यूनुस की नाक के नीचे, वे इस घर को जलाने में कामयाब हो गये।

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दूसरी घटना है, पिछले सप्ताह बीजिंग में यूनुस और चीनी व्यवसायियों के बीच हुई मुलाकात, जहां उन्होंने भारत के सात पूर्वोत्तर राज्य, जिन्हें प्यार से ‘सेवन सिस्टर्स’ कहा जाता है, उनको लेकर कुख्यात और नागवार टिप्पणी की थी। यूनुस ने चीनियों से कहा, ‘भारत की ‘सेवन सिस्टर्स’ तट विहीन भूभाग है - उनके पास समुद्र तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है। हम इस समूचे इलाके में समुद्र के एकमात्र संरक्षक हैं...बांग्लादेश से, आप जहां चाहे जा सकते हैं। समुद्र मानो हमारा पिछला आंगन है। इसलिए, यहां पर वह अवसर है, जिसे आप लपकना चाहेंगे’। शायद, यह बांग्लादेशी सचमुच एक भोला व्यक्ति है। हो सकता है, उन्होंने जो कुछ कहा, उसका भावार्थ अनुवाद करते वक्त कुछ बदल गया हो। कदाचित एस. जयशंकर से लेकर हिमंत बिस्वा सरमा और प्रद्योत माणिक्य बर्मन तक, भारतीय राजनेताओं की प्रतिक्रिया अनावश्यक तौर पर कठोर रही हो।

लेकिन तथ्य यह है कि प्रधानमंत्री के साथ अपनी बैठक की पूर्व संध्या पर बांग्लादेशी नेता की टिप्पणी में भारत के एक संवेदनशील मर्मस्थल का संदर्भ था – वह इलाका जो विद्रोह ग्रस्त रहा है, जहां पर सीमा पार से हथियारों की आमद होती रही है, इसमें 2001-06 के बीच खालिदा जिया की बीएनपी सरकार के वक्त चली गतिविधियां, सांप्रदायिक तनाव भी शामिल हैं - शायद कूटनीतिक लिहाज से ऐसे बोल बहुत सही नहीं थे। इसमें भारत की नाजुक रग दबाने की कोशिश दिखी– बेशक यह सच भी है। लेकिन यहां दूसरा तथ्य भी है। यदि भारत को लगा कि उस पर नाहक दबाव बनाया जा रहा है, तो उसके पास खालिस, निष्ठुर शक्ति प्रयोग के दम पर उत्तर-पूर्व और अन्यत्र अपनी कमजोरियों से उबरने और अन्यत्र हमला करने की क्षमता है।

यही वजह है कि अपने छोटे पड़ोसियों को भारत जब कभी और जहां कहीं छोटे-छोटे अपराधबोध महसूस करवाता है तो वे इलाके के बड़े ड्रैगन (चीन) की और तकने लगते हैं - ज़्यादातर मामलों को छोड़कर, और यकीनन बांग्लादेश के मामले में, उसके और चीन के बीच दूरी काफी है। इसके अलावा, नाजुक मर्मस्थल दोनों तरफ है, यदि भारत की ‘सेवन सिस्टर्स’ की घेराबंदी करने की फिराक में बांग्लादेश है, तब उसका भीतरी भाग असल में भारतीय इलाका है।

राजनेताओं और भूगोलवेत्ताओं, दोनों ने ही, इस मूलभूत तथ्य को काफी पहले समझ लिया था –यह कि भूगोल सिर्फ़ इतिहास नहीं है, यह मौजूदा राजनीति और कूटनीति से भी बना होता है। विंस्टन चर्चिल गलत नहीं थे जब उन्होंने तय किया कि वे ऐसे प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे जो ब्रिटिश साम्राज्य का सबसे अनमोल रत्न (भारतीय उपमहाद्वीप) को यूं ही छोड़ दे। विभाजन के वर्षों की गहन खोज से हमें पता चलता है कि जब 1947 में अंतत: अंग्रेज़ों को लगने लगा कि अब झींकते-बिलबिलाते जाना ही पड़ेगा, तो मन बना लिया कि इस उपमहाद्वीप को अविभाजित एवं समन्वित इकाई के रूप में छोड़कर नहीं जाएंगे। अब सीधे 2025 में आते हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ‘सेवन सिस्टर्स’ पर यूनुस की बचकानी टिप्पणियों का त्वरित जवाब दिया, यह रेखांकित करते हुए कि भारत के पास पूर्व में न केवल लगभग 6,500 किमी. लंबा समुद्री तट है, बल्कि बंगाल की खाड़ी के पांच देशों के साथ सीमा साझी है और यह ‘भारतीय उपमहाद्वीप और आसियान मुल्कों के बीच संबंधों का मौका प्रदान करती है’।

निश्चित रूप से, भारत की असाधारण शक्ति, विशेषकर अपने आस-पास के इलाके में, को नकारा नहीं जा सकता - न 1971 में, न ही 2025 में। यह अलग बात है कि शेख हसीना ने हाल के वर्षों में अपने पैंतरों से विपक्षियों को राजनीति से बहुत हद तक महरूम रखा था - यह भी उतना ही सच है कि भारत उनके ऐसे कई उपायों को अनुमोदित नहीं करता था, विशेष रूप से देश के भीतर शांति स्थापना की खातिर बांग्लादेश की राजनीति में दूसरी अहम महिला खालिदा जिया से राबता बनाने में उनके सीधे इनकार पर। भारत को आखिर में हसीना का समर्थन इसलिए करना पड़ा, क्योंकि उसे लगता था कि विकल्प कहीं अधिक बुरा है।

वह स्याह डर अब सामने से गुजर रहा है। बांग्लादेश में 5 अगस्त को हुए सत्ता परिवर्तन ने न केवल बंगबंधु की विरासत को खत्म कर डाला, बल्कि इसने बांग्लादेश में पाकिस्तान की आईएसआई की नापाक उपस्थिति को भी मंजूर कर लिया - बल्कि कहना चाहिए उसका स्वागत किया। साल 1971 में, 26 मार्च को, मुजीब-उर-रहमान द्वारा पाकिस्तान से ‘आजादी’ की घोषणा करने के चंद घंटों के अंदर, पाकिस्तानी सेना ने ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ मुहिम शुरू कर दी- 54 साल और कुछ दिन पूर्व - जिसमें सैकड़ों बुद्धिजीवियों, नागरिकों और छात्रों की हत्या कर दी गई थी।

आज, पाकिस्तानी सेना की मातहत और जासूसी एजेंसी आईएसआई ढाका, चटगांव तथा अन्य जगहों की सड़कों पर फिर से लौट आई है। कालचक्र पूरा घूम चुका है। पिछले साल ढाका में मुख्य सलाहकार के रूप में शीर्ष पद पर यूनुस की ताजपोशी में अमेरिकी खुफिया एजेंसी की संभावित भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कुछ लोग कहेंगे, इतनी जल्दी यह कहना ठीक न होगा। क्योंकि इस नवीनतम शासन परिवर्तन का अध्याय अभी पूरा नहीं हुआ। कि बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वाकिर-उज़-ज़मान, जो हसीना के समय से हैं, अभी भी सेनाध्यक्ष हैं और एक शक्ति केंद्र हैं। कि बांग्लादेश की सेना, जिनमें से कई अपने पूर्ववर्तियों की वीरगाथाएं पढ़-सुनकर बड़े हुए हैं, वे जो 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ़ बतौर ‘मुक्तिजोद्धा’ लड़े थे, उनका प्रभाव इतनी आसानी से जाने वाला नहीं।

सवाल यह है कि अब आगे क्या? क्या यूनुस जल्द ही चुनाव की घोषणा करेंगे और क्या बीएनपी सत्ता में लौटेगी, और साथ ही खालिदा जिया का बेटा तारिक रहमान भी,जो 2006 में अपनी मां के चुनाव हारने के बाद से पिछले कई सालों से लंदन में निर्वासित जीवन जी रहा है? शायद यही भविष्य है, शायद इसलिए क्योंकि शेख हसीना की अवामी लीग काफी हद तक मिट चुकी है। यकीनन, आज बांग्लादेश में धुंधलाए वर्तमान की समझ मुख्य विषय वस्तु है और यूनुस समेत सभी पक्षों को यह याद रहे तो अच्छा होगा। जिनकी याद्दाश्त तेज है या फिर कोई इंटरनेट पर मार्च 2007 में लंदन गार्डियन में छपी खबर खोजे तो वह पुष्टि करेगी कि बांग्लादेश सेना ने आधी रात मारे छापे में खालिदा के बेटे तारिक को उठा लिया था। इसे काफी अर्सा हो गया, लेकिन तारिक को वह रात ज़रूर याद होगी और ढाका में कुछ और लोगों को भी।

यह अच्छी बात है कि मोदी ने बैंकॉक में यूनुस से मुलाकात की है। अगर पाकिस्तानी फिर से 1971 का इतिहास लिखना चाहते हैं, अमेरिका में अपने कुछ पुराने यारों की सहायता से या बिना मदद के, तो बेहतर अर्थशास्त्री को निश्चित रूप से इस बारे में आगाह किया जाना चाहिए। हमारे दोनों मुल्क बंगाल की खाड़ी की गोद में हैं। भारत-बांग्ला दोस्ती का फलक असीम है, खासकर तब जब दोनों कॉक्स बाज़ार के धवल रेतीले समुद्र तटों पर सूर्यास्त होते हुए साथ-साथ निहारें। यहां तथ्य यह कि बांग्लादेश को हमेशा भान रहे कि भारत को सदा सब कुछ पता रहता है।

लेखिका ‘द ट्रिब्यून’ की प्रधान संपादक हैं।

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