शतपथ और 94 कर्म
प्रामाणिक ग्रंथों में जीवन के सौ मार्ग या जीवन के शतपथ का वर्णन किया गया है। इनमें यज्ञों के विधि-विधान के साथ-साथ सांस्कृतिक तत्वों, सामाजिक जीवन का वर्णन और ब्रह्म विद्या का विस्तार से उल्लेख है। संबंधित एक ग्रंथ के बृहदारण्यक उपनिषद में शतपथ का उल्लेख है। काशी में मणिकर्णिका घाट पर चिता जब शांत हो जाती है तब मुखाग्नि देने वाला व्यक्ति चिता भस्म पर 94 लिखता है।
असल में जीवन के शतपथ होते हैं। मान्यता है कि 100 शुभ कर्मों को करने वाला व्यक्ति मरने के बाद उसी के आधार पर अगला जीवन शुभ या अशुभ प्राप्त करता है। 94 कर्म मनुष्य के अधीन हैं। वह इन्हें करने में समर्थ है पर 6 कर्म का परिणाम ब्रह्मा जी के अधीन होता है। हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश ये 6 कर्म विधि के नियंत्रण में होते हैं। अतः आज चिता के साथ ही तुम्हारे 94 कर्म भस्म हो गये। आगे के 6 कर्म अब तुम्हारे लिए नया जीवन सृजित करेंगे। इसलिए 100-6 = 94 लिखा जाता है।
गीता में भी प्रतिपादित है कि मृत्यु के बाद मन अपने साथ पांच ज्ञानेन्द्रियों को लेकर जाता है। अगला जन्म कहां होगा यह किसी को ज्ञात नहीं होता है। सौ कर्मों का पहला भाग धर्म और नैतिकता के कर्म का है। इसके तहत सत्य बोलना, अहिंसा का पालन, चोरी न करना, लोभ से बचना, क्रोध पर नियंत्रण, क्षमा करना, दया भाव रखना, दूसरों की सहायता करना, दान देना, गुरु की सेवा, माता-पिता का सम्मान, अतिथि सत्कार, धर्मग्रंथों का अध्ययन, पवित्र नदियों में स्नान, संयम और ब्रह्मचर्य का पालन, पर्यावरण की रक्षा, पौधारोपण, जल संरक्षण बेघर को आश्रय देना, शिक्षा के लिए दान, चिकित्सा के लिए सहायता, धार्मिक स्थानों का निर्माण, गौ सेवा, पशुओं को चारा देना, जलाशयों की सफाई, रास्तों का निर्माण, यात्री निवास बनवाना, स्कूलों को सहायता, पुस्तकालय स्थापना, धार्मिक उत्सवों में सहयोग आदि हैं।
विधि के अधीन जो हैं वे कर्म हैं हानि, लाभ, जीवन, मरण, यश और अपयश। इस तरह सत्कर्मों को करते हुए मनुष्य को आगे बढ़ना है। जो आपके वश में हैं, उन्हें तो प्रसन्नतापूर्वक किया जा सकता है। अपने मन को नियंत्रण में रखकर इसे भी अच्छी तरह रखा जा सकता है। नि:संदेह, ये कर्मफल हमें प्रेरणा देते हैं अच्छे कार्य को करने के लिए।
शतपथ और 94 कर्म
