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पाक में शरीफ खानदान, यहां चाय मोहब्बत की दुकान

उलटवांसी

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आलोक पुराणिक

कहते हैं इसे राजनीति, पर है सब दुकान टाइप। चाय की दुकान का जिक्र एक तरफ से होता है। दूसरी तरफ से मोहब्बत की दुकान चलती है।

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पड़ोस पाकिस्तान में कनफ्यूजन की दुकान चल रही है। चुनाव जो सचमुच के चुनाव नहीं थे, वो हो गये। कुछ नेता, जो सचमुच में जीते हुए नहीं थे, वो जीत गये। कुछ नेता जो हारे हुए नहीं थे, वो हार गये। पाकिस्तान में अब सरकार नहीं, कनफ्यूजन चल रहा है। हालांकि, पाकिस्तान में कनफ्यूजन कब नहीं चलता था। धंधा पॉलिटिक्स का दुकान टाइप है।

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पाकिस्तान में जरदारी फैमिली का फैमिली इंटरप्राइज है-पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी, बाप-बेटा दोनों चला रहे हैं। शरीफ खानदान में ज्यादा मेंबर हैं दुकान में, नवाज शरीफ उनके भाई शहबाज शरीफ फिर इन दोनों भाइयों के बेटे-बेटी, भरपूर चल रही है शरीफों की दुकान, हालांकि कई पाकिस्तानी वोटर इन्हें शरीफ नहीं बदमाश और बेईमान कहते हैं। पाकिस्तानी दुकान से हुई कमाई से शरीफों के घर लंदन में बन जाते हैं।

भारत में कई फैमिली इंटरप्राइज चल रहे हैं। ठाकरे एंड सन्स महाराष्ट्र में है एक। पवार एंड डाटर भी महाराष्ट्र में है। उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार, पंजाब सब जगह हैं फैमिली इंटरप्राइज। भाजपा को लेकर कंपनी की भाषा में कहें तो यहां की ह्यूमेन रिसोर्स, एचआर प्रैक्टिस अलग है। दूसरों की कंपनी का बढ़िया वर्कर तोड़कर यहां प्रमोशन दे देते हैं, भाजपा में। हेमंत बिश्व शर्मा को कांग्रेस से तोड़कर लाये और असम का मुख्यमंत्री बना दिया। अब हेमंत बिश्व शर्मा भाजपा के लिए उत्तर पूर्व में सबसे महत्वपूर्ण राजनेता हैं।

प्रोफेशनल सेटअप में फैमिली से ज्यादा प्रोफेशनल काबिलियत देखी जाती है। ऐसे किस्से सुनने को मिलते हैं कि कंपनी के मालिक ने अपने बेटे की नहीं सुनी, उस प्रोफेशनल मैनेजर की सुनी, जो ज्यादा काबिल था। यह कंपनी कामयाबी के साथ आगे बढ़ी। ऐसे किस्से भी आते हैं कि मालिक ने सिर्फ बेटे की सुनी और किसी प्रोफेशनल की नहीं सुनी। बेटा भी डूबा, कंपनी भी डूबी। प्रोफेशनल कंपनी बच जाती है, अगर रिजल्ट न दे रहा हो प्रोफेशनल तो उसे टाटा बाय-बाय कह दिया जाता है। पर बेटे को टाटा बाय-बाय कहने की हिम्मत न होती, दुकान ही बंद हो जाती है।

ठाकरे एंड सन्स की दुकान का महाराष्ट्र में यही हाल हो रहा है। पवार एंड डाटर की दुकान भी संकट में है, क्योंकि पवार चाचा के पवार भतीजे को दूसरी कंपनी तोड़ कर ले गयी। भतीजे की शिकायत यह थी कि उम्र निकली जा रही है, टॉप पर जाने का मौका ही न मिल रहा है। चाचाजी कुर्सी न छोड़ रहे हैं। तो भतीजे ही पार्टी छोड़कर निकल लिये।

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