जी. पार्थसारथी
तीस मार्च के दिन इमरान खान संसद में अपनी सरकार को संयुक्त विपक्ष द्वारा अविश्वास मतदान के जरिए गिराने की चुनौती से जूझ रहे थे। इन घटनाक्रम के दौरान सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा अपने आईएसआई प्रमुख नदीम अंजुम के साथ इमरान खान से मुलाकात करते हैं। जनरल का इमरान खान को संदेश एकदम स्पष्ट और तल्ख था संसद में तुरंत विश्वास मत हासिल करना होगा। इसके बाद जो कुछ हुआ उसमें इमरान खान खुद को मानो शहीद दिखाने की नाकामयाब कोशिश करते नजर आए, जिसके पूरे वजूद को जनरल बाजवा और अमेरिका से खतरा हो।
किसी भी कीमत पर कुर्सी पर बने रहने की इमरान खान की जद्दोजहद का अंत रविवार 10 अप्रैल की अलसुबह हो गया। जब आधिकारिक रूप से घोषित किया गया कि 342 सदस्यीय राष्ट्रीय असेम्बली में उन्हें कुल 174 वोट प्राप्त हुए हैं। इसी बीच, पाकिस्तान में खूब राजनीतिक ड्रामा चला, जब अपने खासमखास संसद अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के साथ इमरान खान ने हर वह पैंतरा अपनाया जिससे अविश्वास प्रस्ताव अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किया जा सके। कोई हैरानी नहीं कि ये तमाम प्रयास विफल रहे। तब यह साफ हो गया कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के छोटे भाई शाहबाज़ शरीफ के नेतृत्व में नई सरकार बनने की राह खुल गई है।
पाकिस्तान की नई गठबंधन सरकार के दो मुख्य घटकों में एक है शाहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग (नवाज़) और दूजा है बेनज़ीर भुट्टो के पुत्र बिलावल भुट्टो ज़रदारी की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी। बिलावल भुट्टो की मुख्य राजनीतिक ताकत सिंध प्रांत में है किंतु पंजाब में प्रभाव कम है वहीं शाहबाज शरीफ का गढ़ पंजाब सूबा है। वर्ष 2018 में हुए आम चुनाव के बाद संसद में उनकी पार्टी की सीटों में भारी कमी आई थी, जब नवाज़ शरीफ के नेतृत्व में पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) को 342 में 82 सीटें ही मिल पाई थीं जबकि 2014 में यह आंकड़ा 166 था। साल 2018 में इमरान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ ने 149 सीटें जीतकर गठबंधन सरकार बनाई थी। लेकिन गठबंधन घटकों के छिटकने की वजह से दो मुख्य राष्ट्रीय दलों यानी 82 सांसदों वाली मुस्लिम लीग और 54 सीटों वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को हाथ मिलाने का मौका मिला और इन्होंने कुछ छोटे दलों को साथ मिलाकर इमरान नीत गठबंधन सरकार की जगह ले ली है।
शाहबाज़ शरीफ के समक्ष पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा पर गंभीर समस्या मुंह बाए खड़ी है। उन्होंने ‘बदले की राजनीति’ करने की बजाय ‘राष्ट्र के जख्मों पर मरहम लगाने’ की घोषणा की है। आगे कहा ‘हम लोगों को अकारण जेल में नहीं डालेंगे’। संक्षेप में, मामूली आरोप पर मानवीय अधिकार हनन करने से गुरेज करने की बात कही है, जोकि इमरान खान की सरकार में होता रहा। लेकिन शाहबाज शरीफ के सामने हल करने को इससे कहीं बड़ी समस्याएं खड़ी हैं। पिछले चार सालों में पाकिस्तान की सकल घरेलू उत्पादकता में भारी कमी होने से यह 315 बिलियन डॉलर से घटकर 292 बिलियन पर आ गई है। इस अवधि में जीडीपी बांग्लादेश से नीचे जा पहुंचा। सूची में बांग्लादेश से नीचे रहने की यह ‘विलक्षण उपलब्धि’ हासिल करने वाले इमरान खान पहले पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बने।
घरेलू बचत पर बहुत कम ब्याज दर होने से पाकिस्तान के लिए नीचे की ओर जाती अपनी अर्थव्यवस्था की दिशा मोड़ना लगातार मुश्किल रहेगा। 1971 में बांग्लादेश की आजादी पर पश्चिमी अर्थशास्त्रियों ने भविष्यवाणी की थी कि बांग्लादेश ‘खैरात पर पलने वाला’ मुल्क बनकर रह जाएगा लेकिन हुआ उलट। जब तक तालिबान के खिलाफ युद्ध के चलते अमेरिकी धन का प्रवाह रहा तब तक पाकिस्तान की आर्थिकी बनिस्बत अच्छी हालात में बनी रही, अब वह उदार अमेरिकी दान जाता रहा। पाकिस्तान द्वारा दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार संधि की शर्तों का पालन करने या भारत के साथ आर्थिक संबंध बनाने की संभावना क्षीण है। यानि अन्य दक्षिण एशियाई मुल्कों की तरह आपसी क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग के लिए हाथ मिलाने जैसा नहीं।
1999 में वाजपेयी की पाकिस्तान यात्रा के वक्त शाहबाज शरीफ पंजाब प्रांत के तत्कालीन मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने भारत में आईटी उद्योग की तेजी से हो रही तरक्की का जायजा लेने के लिए बंगलूरु आने में रुचि दिखाई थी। हालांकि,जाहिर है, वही शाहबाज शरीफ अब भारत से आर्थिक एवं अन्य संबंध बनाने को लेकर बहुत सावधानी से आगे बढ़ेंगे। जनरल बाजवा जिन्हें पहले, और अभी भी, अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में अंतर-सीमा आतंकवाद को लगाम लगाने में काफी सावधान माना जाता है, चाहते तो इमरान खान और पूर्व आईएसआई प्रमुख ले. जनरल फैज हमीद के बीच बढ़ती निकटता को नज़रअंदाज कर सकते थे, लेकिन उन्होंने अचानक जनरल फैज की बदली अफगान सीमा पर बतौर कमांडर कर दी। इसके अलावा, जब आगे चलकर यह साफ हो गया कि इमरान खान संसद में विश्वास मत प्राप्त करने के सर्वोच्च अदालत के आदेश को धता बताने की जुगत में लगे हैं, तब जनरल बाजवा ने अपने वर्तमान आईएसआई महानिदेशक को साथ लेकर इमरान को ऐसा करने पर सख्त नतीजों की चेतावनी दे डाली और उक्त विश्वास मत पर आए निर्णय का तुरंत पालन करने को कहा। अंततः इमरान खान को यही करना पड़ा और सत्ताच्युत हुए।
पाकिस्तान अब अनिश्चितता की ओर बढ़ रहा है। हालांकि अगले आम चुनाव अक्तूबर, 2023 में होने हैं लेकिन इसी साल अक्तूबर माह में प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के लिए अगले सेनाध्यक्ष की नियुक्ति के रूप में सबसे महत्वपूर्ण निर्णय की घड़ी बनेगी जब बतौर सेना प्रमुख जनरल बाजवा का कार्यकाल समाप्त होगा। क्या उन्हें एक ओर सेवा-विस्तार मिलेगा? यह एक खुला प्रश्न है। बेशक पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक कार्य बल के आदेशों के बाद आतंकी सरगना हाफिज़ सईद पर कानूनी कार्रवाई करने को मजबूर होना पड़ा है लेकिन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों का तंत्र पहले जैसा बना हुआ है। पाकिस्तान के लिए कश्मीर आगे भी ‘केंद्रीय मुद्दा’ रहेगा।
शाहबाज शरीफ 2013 में भारत आए थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अन्य से भेंट की थी। शरीफ परिवार के ज़हन में भारत से जुड़ी पुरानी मधुर यादें आज भी हैं। हालांकि यह भ्रम न रहे कि शाहबाज शरीफ ऐसा कुछ करेंगे जो पाकिस्तानी सेना को मंजूर न हो, खासकर जम्मू-कश्मीर को लेकर। सीमा नियंत्रण रेखा के पार आज भी आतंकी तंत्र यथावत है। इन घटनाओं के बावजूद पाकिस्तान के साथ संपर्क रखने में, राजदूत स्तरीय और पूर्ण राजनयिक प्रतिनिधित्व सहित अन्य संवाद चैनल मजबूत रखने होंगे। शाहबाज शरीफ प्रशासन के समक्ष गंभीर आर्थिक संकट है और ठीक इसी समय इमरान खान चुनाव पहले करवाने की मांग कर रहे हैं। कुल मिलाकर पाकिस्तान उथल-पुथल वाले वक्त की ओर बढ़ रहा है।
लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।