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नये अवसरों के सृजन को गंभीर पहल जरूरी

रोजगार संकट
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इस समय देशभर में मिशन मोड में नई सरकारी नियुक्तियां करने और नए रोजगार मौके सृजित किए जाने की अहम जरूरत है। हाल ही में रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के द्वारा कौशल विकास में भारी निवेश की ज़रूरत है।

देश के राज्यों और केंद्र स्तर पर निकलने वाली सरकार की विभिन्न भर्तियों के लिए आवेदन करने वाले युवाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। हाल ही में कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) की फेज-13 सेलेक्शन पोस्ट 2025 के अंतर्गत 2423 पदों की भर्ती के लिए पूरे देश से 29 लाख से अधिक आवेदन आए हैं।

पिछले वर्षों में संघ लोक सेवा आयोग, रेलवे भर्ती और कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) ने जो भर्तियां की हैं, वे रिक्त पदों की तुलना में बहुत कम हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसओ) के द्वारा जारी नवीन श्रम बल सर्वे (पीएलएफएस) के आंकड़ों के मुताबिक 15-29 आयु वर्ग के युवाओं में बेरोजगारी दर जून 2025 में तेजी से बढ़कर 15.3 रही। यह शहरों में बढ़कर 18.8 प्रतिशत रही जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 13.8 प्रतिशत रही है।

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फ्रांस के कॉरपोरेट एंड इन्वेस्टमेंट बैंक नेटिक्सि एसए के द्वारा प्रकाशित अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक भारत में जिस तेजी से युवा रोजगार के लिए तैयार होकर श्रम शक्ति (वर्क फोर्स) में शामिल हो रहे हैं, उसको देखते हुए भारत को 2030 तक प्रति वर्ष 1.65 करोड़ नई नौकरियों की जरूरत होगी। इसमें से करीब 1.04 करोड़ नौकरियां संगठित सेक्टर में पैदा करनी होंगी। जबकि पिछले दशक में सालाना कुल 1.24 करोड़ नौकरियां ही पैदा हो सकी थीं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत को अपनी अर्थव्यवस्था में तेजी को बरकरार रखने के लिए सर्विसेज से लेकर मैन्युफैक्चरिंग तक सभी सेक्टर्स को नई रफ्तार से बढ़ावा देना होगा।

ऐसे में इस समय देशभर में मिशन मोड में नई सरकारी नियुक्तियां करने और नए रोजगार मौके सृजित किए जाने की अहम जरूरत है। हाल ही में रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के द्वारा कौशल विकास में भारी निवेश की ज़रूरत है, जिससे देश के जनसांख्यिकीय लाभ को हासिल करने में मदद मिलेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि कौशल विकास के लिए निवेश का बोझ सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रों को मिलकर उठाना होगा। भारत के पास अभूतपूर्व अवसर हैं, क्योंकि खाड़ी सहयोग परिषद, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाएं, विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा, लॉजिस्टिक्स और निर्माण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कौशल की भारी कमी का सामना कर रही है। रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक मंच पर भारत की कार्यबल क्षमता को उजागर करने के लिए कौशल विकास पर कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) खर्च में पर्याप्त सुधार की आवश्यकता है।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना में सुधार की पर्याप्त गुंजाइश है। वित्त वर्ष 2015 से अब तक कॉर्पोरेट्स द्वारा सीएसआर पर खर्च किए गए 2.22 लाख करोड़ रुपये में से केवल 3.5 प्रतिशत ही कौशल विकास के लिए खर्च किया गया है। ऐसे में सीएसआर निवेश को अलग-थलग कौशल गतिविधियों से आगे बढ़ना होगा। जब सरकारी पहलों के साथ रणनीतिक रूप से एकीकृत किया जाता है, तो सीएसआर में एक सक्षमकर्ता के रूप में कार्य करने की अपार क्षमता होती है।

सरकार को देश की नई पीढ़ी को जॉब सीकर यानी नौकरी की चाह रखने वाले से ज्यादा नए दौर के जॉब गिवर यानी नौकरी देने वाले बनाने की तेज रणनीति के साथ भी आगे बढ़ना होगा। देश में स्वरोजगार की रफ्तार बढ़ाई जानी होगी। इस परिप्रेक्ष्य में शोध संस्थान स्कॉच की शोध अध्ययन रिपोर्ट में 2014-24 की अवधि में ऋण-आधारित हस्तक्षेपों और सरकार-आधारित हस्तक्षेपों का अध्ययन किया है। जहां ऋण-आधारित हस्तक्षेपों ने प्रति वर्ष औसतन 3.16 करोड़ रोजगार जोड़े हैं, वहीं सरकार-आधारित हस्तक्षेपों से प्रति वर्ष 1.98 करोड़ रोजगार पैदा हुए हैं। सामान्यतया एक लोन पर औसतन 6.6 प्रत्यक्ष रोजगार पैदा हुए हैं। इस शोध अध्ययन में रोजगार व स्वरोजगार से संबंधित 12 केंद्रीय योजनाओं को शामिल किया गया है। इनमें मनरेगा, पीएमजीएसवाई, पीएमईजीपी, पीएमए-जी, पीएलआई, पीएमएवाई-यू, और पीएम स्वनिधि जैसी प्रमुख योजनाएं शामिल हैं। इस शोध अध्ययन के मुताबिक पिछले दस वर्षों में ऋण अंतराल यानी जीडीपी के अनुपात में कर्ज के अंतर में 12.1 प्रतिशत की गिरावट आई है। इस अध्ययन से ऋण अंतराल में कटौती, बहुआयामी गरीबी में कमी और एनएसडीपी में वृद्धि के बीच एक सकारात्मक संबंध भी प्रतिपादित हुआ है।

नए डिजिटल दौर में देश की नई हाई-स्किल्ड पीढ़ी के लिए देश ही नहीं, दुनियाभर में नए दौर की नौकरियों में अवसर बढ़ रहे हैं, ऐसे में देश के करोड़ों युवाओं को नए दौर की इन नौकरियों के लिए शिक्षित-प्रशिक्षित करने के लिए प्राथमिकता के साथ नई रणनीति बनानी होगी। विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट ‘भविष्य की नौकरियों’ में कहा कि वैश्विक स्तर पर वर्ष 2030 तक 17 करोड़ नई हाई-स्किल्ड नौकरियां पैदा होंगी, जबकि 9.2 करोड़ परम्परागत नौकरियां समाप्त होने का अनुमान है।

चूंकि कई विकसित और विकासशील देशों में तेजी से बूढ़ी होती आबादी के कारण उद्योग-कारोबार व सर्विस सेक्टर के विभिन्न कामों के लिए युवा हाथों की कमी हो गई तथा श्रम लागत बढ़ने से ये देश कार्यबल संबंधी परेशानियों से जूझ रहे हैं। ऐसे में भारत को इस मौके को भुनाते हुए तेजी से आगे बढ़ना होगा। सरकार ने अब तक भारतीय श्रमिक उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न करीब दो दर्जन देशों के साथ आव्रजन और रोजगार से जुड़े समझौते किए हैं। इन समझौतों के तहत भारत जापान, इस्राइल, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, फ्रांस, जर्मनी, रूस, मॉरिशस, यूके, यूएई, रोमानिया और इटली जैसे देशों में अपने स्किल्ड युवाओं को भेज रहा है। हाल ही में रूसी उद्योग मंडल यूराल चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री के प्रमुख आंद्रेई बेसेदिन ने कहा कि रूस अपने औद्योगिक क्षेत्रों में श्रमिकों की कमी को दूर करने के लिए भारत से इस साल के अंत तक करीब 10 लाख कुशल श्रमिकों को अपने यहां रोजगार देगा।

 लेखक अर्थशास्त्री हैं।

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