अशोक गौतम
ज्यों ही मुर्गे के जागने से पहले, आंगन में अखबार के गिरने की आवाज सुन जागा तो आनन-फानन में हर रोज की तरह सबसे पहले अपनी राशि का आज का दिन देखा। आज मेरी नाम राशि के आगे लिखा था- सरकार की ओर से कोई शुभ सूचना मिलेगी। यह पढ़ मन बहुत कूल-कूल हुआ। सारी रात बिजली न होने पर पसीना-पसीना होने के बाद भी।
एकाएक अखबार के फ्रंट पेज पर यह शुभ सूचना आंखें तरेरती दिखी कि सरकार ने रात के बारह बजे से जनता के लिए पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दामों में गिरावट कर दी है। यह खबर दिमाग में चढ़ते ही मेरे शरीर की शिराओं में बचे रक्त के बदले खुशी की सिहरन दौड़ गई। जबसे महंगाई सुरसा हुई है तबसे घर में उतना इंतजार रिश्तेदारों के आने का नहीं रहता, जितना इंतजार सेल का रहता है। घर में जिस दिन उम्मीद से कम रेट में सब्जी आती है उस दिन उससे भी अधिक खुशी का माहौल होता है जैसा कभी रिश्तेदारों के आने पर हुआ करता था।
हालांकि, मेरे पास भी स्कूटर है, पर चलाने वाला नहीं, अपितु आसपास के पड़ोसियों को दिखाने वाला कि मैं भी व्हीकल वाला हूं। जबसे मैंने ये दूसरे हाथ स्कूटर लिया है तबसे मैं बहुधा ऑफिस को लिफ्ट लेकर ही आता-जाता हूं। जब ये स्कूटर नहीं था, तब शान से पैदल ही ऑफिस जाया-आया करता था। पहले न किसी से लिफ्ट लेता था, न किसी को लिफ्ट देता था। स्कूटर होने के बाद से घर से बाहर निकलते ही अब लिफ्ट का इंतजार करना मेरी नेचर में शुमार हो गया है। अब लिफ्ट के नाम पर गधा भी चला लेता हूं।
मेरा यह राजसी स्कूटर विशेष अवसरों पर ही डरते-डरते स्टार्ट किया जाता है। बड़े प्यार से लात मार-मार कर टांग थकाने के बाद भी जो ये स्टार्ट हो जाए तो मैं अपने को बड़ा खुशनसीब समझता हूं कि मेरे पास अभी भी स्टार्ट होने वाला स्कूटर है। अगर जिंदगी में दिखावे की प्रवृत्ति खत्म हो जाए तो हमारे घरों से नब्बे प्रतिशत चीजें गधे के सिर पर से सींग की तरह गायब हो जाएं। जिंदगी में हम उतना काम आने का नहीं रखते जितना दिखाने के लिए सहेज रखते हैं।
आजकल बाजार भी जिंदगी की तरह हो गया है, कभी हंसाने वाला तो कभी रुलाने वाला। जिस तरह जिंदगी में रोज उतार-चढ़ाव आते हैं अब उसी तरह पेट्रोल, डीजल के दामों में भी रोज उतार-चढ़ाव होने लगे हैं। गोया पेट्रोल-डीजल, पेट्रोल-डीजल न होकर हमारी जिंदगी हों। आह! कल तक जो हमारे लिए ज्वलनशील थे, आह! आज वे कितने संवेदनशील हो गए हैं!