रघुवीर चारण
कोरोना महामारी के उपरांत ग्लोबल स्तर पर हमें यही सीख मिली कि स्वास्थ्य ढांचे को सुदृढ़ बनाना चाहिए। इस महामारी काल में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों की स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली खुलकर सामने आई।
हम अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य दिवस की 72वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं। हर साल दुनियाभर में इस दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं में विस्तार व सामाजिक स्तर पर जागरूकता लाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करवाए जाते हैं। वर्ष 2022 विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम ‘हमारा ग्रह हमारा स्वास्थ्य’ रखी है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, किसी व्यक्ति का शारीरिक, सामाजिक व मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होना स्वास्थ्य कहलाता है। कोविड के दौरान शारीरिक के साथ मानसिक रोगों में वृद्धि देखने को मिली।
देश में त्रि-स्तरीय स्वास्थ्य प्रणाली है, सर्वप्रथम ग्रामीण स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, शहरी क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र व डिस्ट्रिक्ट लेवल पर जिला अस्पताल होता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण कड़ी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है क्योंकि देश की 70 प्रतिशत आबादी गांवों में बसती है। इन केंद्रों पर संपूर्ण स्वास्थ्य सुविधाओं का आज भी अभाव है। अधिकतम स्वास्थ्य केंद्र नर्सिंग कर्मियों के भरोसे चल रहे हैं। वहीं सीएचसी पर विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी के चलते आम जनता को परेशानियां होती हैं।
नागरिकों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए चिकित्सा सिद्धांतों में बदलाव लाना होगा। हम क्यूरेटिव हेल्थ पर जोर देते हैं यानी रोग का शमन करना है प्रिवेंटिव हेल्थ और प्रमोटिव हेल्थ को इग्नोर कर देते हैं। प्रिवेंटिव हेल्थ अर्थात् रोगों से बचाव के उपाय करना। इसमें सबसे मुख्य प्रमोटिव हेल्थ है यानी स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और आरोग्य को बढ़ावा देना तथा आदर्श जीवनशैली का पालन करना। आयुर्वेद का सिद्धांत भी यही है। आज भारत स्वास्थ्य क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। देश में कुल 13 लाख पंजीकृत एलोपैथी डॉक्टर हैं, जिसमें 80 प्रतिशत प्रैक्टिस कर रहे हैं। इसके अलावा करीब साढ़े पांच लाख आयुष डॉक्टर भी हैं।
नीति आयोग द्वारा ‘विजन 2035 : भारत में जन स्वास्थ्य निगरानी’ नाम से एक श्वेत पत्र जारी किया गया है जो त्रिस्तरीय जनस्वास्थ्य व्यवस्था को आयुष्मान भारत की परिकल्पना में शामिल करते हुए जन स्वास्थ्य निगरानी के लिए भारत के विजन 2035 को पेश करता है। यह विस्तारित रेफरल नेटवर्क और प्रयोगशाला-क्षमता बढ़ाने की जरूरत भी बताता है।
देश के हेल्थ इंडेक्स में दक्षिण भारतीय राज्यों का दबदबा कायम रहा। इसमें केरल प्रथम पायदान पर, उसके बाद तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश सर्वोत्तम स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में आगे रहे। सर्वे में उत्तर प्रदेश निचले पायदान पर रहा जहां स्वास्थ्य ढांचे में विस्तार की जरूरत है। भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र को सुदृढ़ बनाने के लिए वित्तीय वर्ष 2022 में 86 हजार करोड़ का बजट आवंटित किया गया यानी बीते वर्ष की तुलना में 16 फीसदी अधिक।
इसके साथ ही मेंटल हेल्थकेयर को बढ़ावा देने के लिए नेशनल टेलीमेडिसिन प्रोग्राम की घोषणा की गई जिसके तहत सभी नागरिकों के लिए यूनीक हेल्थ कार्ड बनाएं जायेंगे। इसके अलावा स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा नेशनल हेल्थ मिशन (एनएचएम), राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनआरएचएम), आयुष्मान भारत योजना सहित स्वास्थ्य व्यवस्था की प्रगति के लिए कई कार्यक्रम जारी हैं। आयुष्मान भारत योजना में कमजोर वर्ग के लोगों को हेल्थ इंश्योरेंस की सुविधा मिलती है। इसके तहत देश के 10 करोड़ परिवारों को सालाना 5 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा मिल रहा है।
आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत के लिए प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना प्रारम्भ की गई जिसका उद्देश्य समग्र स्वास्थ्य धरातल स्तर तक पहुंचाना है। इसके साथ आयुष मंत्रालय द्वारा वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों का विस्तार किया जा रहा है।