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बड़े धार्मिक आयोजनों का वैज्ञानिक प्रबंधन जरूरी

रथयात्रा हादसा
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दरअसल, सरकार और स्थानीय प्रशासन को श्रद्धालुओं की भीड़ का आकलन करके आयोजन की तैयारी करनी चाहिए। साथ ही वैकल्पिक मार्गों और राहत-बचाव को लेकर व्यापक प्लान बनाना चाहिए।

प्रमोद भार्गव

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प्रयागराज कुंभ मेले में और इसी साल जून माह में बेंगलुरु में आईपीएल मैच में मची भगदड़ की स्मृतियां विलोपित भी नहीं हो पाई थीं कि पुरी में चल रहे भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में भगदड़ मचने से तीन श्रद्धालुओं की मौत हो गई और 50 से ज्यादा घायल हो गए। मंदिर में प्रवेश का रास्ता केवल एक था, बाहर जाने का मार्ग बंद कर दिया था, क्योंकि वहां से वीआईपी लोग दर्शन के लिए जा रहे थे। आम भक्तों के लिए बाहर आने का दूसरा कोई मार्ग नहीं था। इसी समय मंदिर में दो ट्रक लकड़ी और अनुष्ठान सामग्री से भरे इसी संकीर्ण मार्ग से भीतर भेज दिए गए। ट्रकों के कारण भीड़ में अफरा-तफरी मच गई और हादसा घट गया।

साफ है, प्रशासनिक प्रबंधन की घोर लापरवाही के चलते श्रद्धालु हादसे के शिकार हो गए। मुख्यमंत्री ने सुरक्षा की चूक के लिए क्षमा मांगते हुए पुरी के कलेक्टर का अविलंब स्थानांतरण कर दिया। स्थानांतरण कोई सजा नहीं होती। वास्तव में कुंभ मेले में और आईपीएल क्रिकेट मैच में हुए हादसों से प्रशासन को सबक लेने की जरूरत थी, जिससे रथयात्रा में भगदड़ से बचा जाए।

भारत में पिछले डेढ़ दशक के दौरान मंदिरों और अन्य धार्मिक आयोजनों में उम्मीद से कई गुना ज्यादा भीड़ उमड़ रही है। जिसके चलते दर्शन-लाभ की जल्दबाजी व कुप्रबंधन से उपजने वाली भगदड़ व आगजनी का सिलसिला हर साल इस तरह के धार्मिक मेलों में देखने में आ रहा है।

धर्म स्थल इस बात के लिए प्रेरित करते हैं कि हम शालीनता और आत्मानुशासन का परिचय दें। किंतु इस बात की परवाह आयोजकों और प्रशासनिक अधिकारियों को नहीं होती। लिहाजा राजनीतिक और प्रशासनिक तंत्र उस अनियंत्रित स्थिति को काबू करने की कोशिश में लगा रहता है, जिसे वह समय पर नियंत्रित करने की कोशिश करता तो हालात कमोबेश बेकाबू ही नहीं हुए होते? आयोजन को सफल बनाने में जुटे अधिकारी भीड़ के मनोविज्ञान का आकलन करने में चूकते दिखाई देते हैं।

रथयात्रा की तैयारियों के लिए कई हजार करोड़ की धनराशि खर्च की जाती है। जरूरत से ज्यादा प्रचार करके लोगों को यात्रा के लिए प्रेरित किया जाता है। फलतः जनसैलाब इतनी बड़ी संख्या में उमड़ गया कि सारे रास्ते पैदल भीड़ से जाम हो गए। इसी बीच लापरवाही यह रही कि बाहर जाने के रास्ते को नेता और नौकरशाहों के लिए आरक्षित कर दिया गया और दो ट्रक आम रास्ते से मंदिर की ओर भेज दिए। इस चूक ने घटना को अंजाम दे दिया। जो भी प्रबंधन के लिए आधुनिक तकनीकी उपाय किए गए थे, वे सब व्यर्थ साबित हुए।

दरअसल, रथयात्रा के दौरान उमड़ी भीड़ के आवागमन के सुचारु प्रबंधन के लिए जिस प्रबंध कौशल की आवश्यकता थी, उसके प्रति पूर्व से ही सतर्कता बरतना आवश्यक था। दुर्भाग्यवश, इस दिशा में प्रबंधन ने अदूरदर्शिता दिखाई। मेलों के प्रबंधन के लिए हम प्रायः विदेशी साहित्य और प्रशिक्षण पर निर्भर रहते हैं, जो भारतीय मेलों की विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों के अनुरूप नहीं होते और इस कारण प्रासंगिक भी नहीं रह जाते।

दुनिया के किसी अन्य देश में किसी एक दिन और विशेष मुहूर्त के समय लाखों-करोड़ों की भीड़ जुटने की उम्मीद ही नहीं की जाती? बावजूद हमारे नौकरशाह भीड़ प्रबंधन का प्रशिक्षण लेने खासतौर से यूरोपीय देशों में जाते हैं। प्रबंधन के ऐसे प्रशिक्षण विदेशी सैर-सपाटे के बहाने हैं, इनका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं होता। ऐसे प्रबंधनों के पाठ हमें खुद अपने देशज ज्ञान और अनुभव से लिखने होंगे।

प्रशासन के साथ हमारे राजनेता, उद्योगपति, फिल्मी सितारे और आला अधिकारी भी धार्मिक लाभ लेने की होड़ में व्यवस्था को भंग करने का काम करते हैं। इनकी वीआईपी व्यवस्था और यज्ञ कुण्ड अथवा मंदिरों में मूर्तिस्थल तक ही हर हाल में पहुंचने की रूढ़ मनोदशा, मौजूदा प्रबंधन को लाचार बनाने का काम करती है। आम श्रद्धालुओं के बाहर जाने का रास्ता कथित वीआईपी लोगों के लिए सुरक्षित कर दिया जाता है। नतीजतन भीड़ अनियंत्रित स्थिति में आ जाती है और दुर्घटना घट जाती है।

दरअसल मीडिया, राजनेता और बुद्धिजीवियों का काम लोगों को जागरूक बनाने का है कि तीर्थस्थलों में लोग कैसे अनुशासित व्यवहार करें। सामान्य जीवन व्यवहार और तीर्थस्थलों की सीमित जगह में बड़ी भीड़ के बीच मानवीय व्यवहार का फर्क तय किया जाना चाहिए। इस चेतना के अभाव में ही पिछले दो दशकों में हजारों लोग कुंभ, मेलों और मंदिर हादसों में मारे जा चुके हैं।

दरअसल, सरकार और स्थानीय प्रशासन को श्रद्धालुओं की भीड़ का आकलन करके आयोजन की तैयारी करनी चाहिए। साथ ही वैकल्पिक मार्गों और राहत बचाव को लेकर व्यापक प्लान बनाना चाहिए। निश्चित रूप से अब समय आ गया है कि इस दिशा में वैज्ञानिक प्रबंधन पर ध्यान दें।

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