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सैटेलाइट बेस्ड सर्विलांस से पूरे देश को सुरक्षा कवच

अंतरिक्ष से निगहबानी
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डॉ. शशांक द्विवेदी

पिछले दिनों अंतरिक्ष से भारत की निगरानी प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए, सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने अंतरिक्ष आधारित निगरानी के तीसरे चरण को मंजूरी दे दी है। इसके तहत पृथ्वी की निचली और भूस्थिर कक्षाओं में जासूसी उपग्रहों का एक बड़ा समूह लॉन्च किया जाएगा। प्रस्ताव में निगरानी के लिए लो अर्थ ऑर्बिट और भूस्थैतिक कक्षा में 52 उपग्रहों का प्रक्षेपण शामिल है। कुल 26,968 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना के तहत इसरो की ओर से 21 उपग्रहों का निर्माण व प्रक्षेपण होगा। बाकी 31 सैटेलाइट्स की जिम्मेदारी निजी कंपनियों के पास होगी।

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अंतरिक्ष आधारित निगरानी (सैटेलाइट बेस्ड सर्विलांस यानी एसबीएस) 1 की शुरुआत साल 2001 में वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में हुई थी। इसमें निगरानी के लिए 4 उपग्रहों (कार्टोसैट 2ए, कार्टोसैट 2बी, इरोस बी और रिसैट 2) का प्रक्षेपण शामिल था। एसबीएस 2 के तहत साल 2013 में 6 उपग्रहों (कार्टोसैट 2सी, कार्टोसैट 2डी, कार्टोसैट 3ए, कार्टोसैट 3बी, माइक्रोसैट 1 और रिसैट 2ए का लॉन्च शामिल था।

ऐसे समय में जब देश पाकिस्तान के साथ पश्चिमी सीमा, चीन के साथ उत्तरी सीमा पर सुरक्षा चिंताओं और हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी जासूसी जहाजों और पनडुब्बियों द्वारा बढ़ती समुद्री निगरानी का सामना कर रहा है, एसबीएस 3 के तहत अगले पांच साल में 52 उपग्रह लॉन्च करने का लक्ष्य रखा गया है। जो भारत में ‘आसमान से नजर रखने वाली आंखों’ की संख्या में वृद्धि करेंगे, जिससे भारत की भूमि और समुद्री सीमाओं की अंतरिक्ष-आधारित निगरानी प्रणाली को बल मिलेगा। तीनों सर्विसेज के पास अपने भूमि, समुद्र या वायु-आधारित मिशनों के लिए उपग्रह होंगे। उपग्रह मौसम या वायुमंडलीय स्थितियों से अप्रभावित होकर लगातार कार्य करेंगे, जिससे अंतरिक्ष में स्थितियों व वस्तुओं की निरंतर निगरानी होगी। नए उपग्रह अंतरिक्ष में उपग्रहों का अधिक सटीक रूप से पता लगाने और उन पर नजर रखने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करेंगे।

सैटेलाइट का नया बेड़ा कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित होगा, जो पृथ्वी पर ‘भू-खुफिया’ जानकारी एकत्र करने के लिए अंतरिक्ष में एक-दूसरे के साथ संपर्क में रहेगा। इससे हमारे उपग्रहों के बीच संचार होगा, ताकि अगर कोई उपग्रह 36,000 किमी की ऊंचाई पर जिओ (जियोसिंक्रोनस इक्वेटोरियल ऑर्बिट) में कुछ पता लगाता है, तो वह निचली कक्षा (400-600 किमी की ऊंचाई पर) में दूसरे उपग्रह से अधिक सावधानी से जांच करने और फिर हमें अधिक जानकारी देने के लिए कह सकता है। यह क्षमता निगरानी तंत्र को बहुत विशिष्ट बनाती है। वर्तमान में भारत में संचार सेवाओं के लिये 200 से अधिक ट्रांसपोंडरों का उपयोग हो रहा है। इन उपग्रहों के माध्यम से भारत में दूरसंचार, टेलीमेडिसिन, टेलीविज़न, ब्रॉडबैंड, रेडियो, आपदा प्रबंधन, खोज और बचाव अभियान जैसी सेवाएं प्रदान कर पाना संभव हुआ है। फिलहाल भारत का ध्यान उन क्षमताओं को हासिल करने पर है जो इंडो-पैसिफिक में दुश्मन की पनडुब्बियों का पता लगा सकें। साथ ही, सीमा से लगे जमीनी और समुद्री इलाकों में बुनियादी ढांचे के निर्माण को ट्रैक कर सकें। एसबीएस -3 मिशन को अमेरिका स्थित जनरल एटॉमिक्स से 31 प्रीडेटर ड्रोन के भारतीय अधिग्रहण में मदद मिलेगी। इस प्लेटफॉर्म में वेपन पैकेज के अलावा बहुत शक्तिशाली निगरानी क्षमताएं हैं। भारत ने 29 मार्च, 2019 को टेस्ट फायरिंग के जरिए अपनी एंटी-सैटेलाइट क्षमताओं का परीक्षण किया, जब भारतीय मिसाइल ने कक्षा में जीवित उपग्रह को नष्ट कर दिया था।

वर्तमान में वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग का आकार 350 बिलियन डॉलर है। इसके वर्ष 2025 तक बढ़कर 550 बिलियन डॉलर होने की संभावना है। इस प्रकार अंतरिक्ष एक महत्वपूर्ण बाज़ार के रूप में विकसित हो रहा है। इसरो ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं किंतु भारत का अंतरिक्ष उद्योग 7 बिलियन डॉलर के आसपास है, जो वैश्विक बाजार का केवल 2 प्रतिशत ही है। भारत के अंतरिक्ष उद्योग के इस आकार में ब्रॉडबैंड तथा डीटीएच सेवाओं का हिस्सा करीब दो-तिहाई है।

हाल के नीतिगत सुधारों के बावजूद, भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में अभी भी सरकारी संस्थाओं का ही प्रभुत्व बना हुआ है। हालांकि स्काईरूट एयरोस्पेस और अग्निकुल कॉसमॉस जैसे स्टार्टअप ने प्रगति की है, लेकिन उन्हें आगे बढ़ने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अंतरिक्ष क्षेत्र में शैक्षिक संस्थानों, उद्योग और सरकारी एजेंसियों के बीच तालमेल अभी भी अपर्याप्त है। यद्यपि विश्वविद्यालयों के साथ इसरो की संलग्नता बढ़ी है, फिर भी इसका दायरा एवं पैमाना अभी सीमित ही है। निजी भागीदारी को तेज़ी से बढ़ाने के लिये एक अंतरिक्ष क्षेत्र रूपांतरण कार्यक्रम क्रियान्वित किया जाना चाहिए। अंतरिक्ष से संबंधित लाइसेंसिंग और अनुमोदन के लिये एक वन-स्टॉप-शॉप की स्थापना की जाए। निवेश आकर्षित करने के लिये कर प्रोत्साहन और सरलीकृत विनियमनों के साथ अंतरिक्ष उद्यम क्षेत्रों का सृजन किया जाए। इसरो की सुविधाओं और विशेषज्ञता को निजी संस्थाओं के साथ साझा करने के लिये एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल का विकास किया जाना चाहिए।

बहरहाल, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने हालिया वर्षों में ऐसी कई उपलब्धियां हासिल की हैं, जिसने अंतरिक्ष विज्ञान में अग्रणी कहे जाने वाले अमेरिका और रूस जैसे देशों को भी चौंकाया है। कुल मिलाकर सैटेलाइट बेस्ड सर्विलांस से सशस्त्र बलों की प्रत्येक शाखा के पास अपने विशिष्ट संचालन के लिए समर्पित उपग्रह होंगे।

लेखक विज्ञान विषयों के जानकार हैं।

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