पिछले शुक्रवार को जब लगभग एक दशक तक ऑटो चलाकर जीवनयापन करने वाले के. सरवनन तमिलनाडु के तंजावुर जनपद स्थित कुंभकोणम निगम के मेयर पद की शपथ लेने गये, तो वे समारोह में उसी ऑटो रिक्शा से पहुंचे, जो उनकी जीविका का साधन है। उन्होंने लोगों को यह संदेश भी देने की कोशिश की कि दुनिया में कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता। लोगों को बताया कि यही उनका जीवन यापन का जरिया भी रहा है। यही वजह है कि शपथ ग्रहण समारोह में ऑटो से जाने में उन्होंने कोई संकोच भी नहीं किया। दरअसल, कुंभकोणम नगरपालिका पहली बार नगर निगम बना है, जिसके पहले महापौर बनने का श्रेय के. सरवनन को मिला है। यह भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती कही जा सकती है कि किसी भी व्यवसाय को करने वाला कोई भी सामान्य व्यक्ति उच्च पद पर आसीन हो सकता है।
दरअसल, के. सरवनन का परिवार मेहनत व ईमानदारी से जीवन यापन करने में विश्वास करता रहा है। जब वे छोटे ही थे तो उनके सिर से माता-पिता का साया उठ गया। उसके बाद तो उनके दादा-दादी ने ही उनका भरण-पोषण किया। घर के हालात के चलते वे ज्यादा लिख-पढ़ भी नहीं पाये। भले ही के. सरवनन कुंभकोणम महापालिका के पहले निगम के पहले महापौर के रूप में चुने गये हों, लेकिन स्थानीय निकायों के जरिये सेवा करने का अनुभव उन्हें विरासत में मिला है। उनके दादा पहले नगरपालिका के सदस्य रह चुके हैं। वे पुराने कांग्रेसी थे। वैसे के. सरवनन भी कांग्रेस में लंबे समय से सक्रिय रहे हैं। दरअसल, हाल में हुए स्थानीय निकाय के चुनाव में 21 निगमों में से 20 के लिये डीएमके ने अपने मेयर नामित किये। जबकि कुंभकोणम महापालिका का पद सहयोगी राजनीतिक दल कांग्रेस के लिये छोड़ दिया। लेकिन इस बाबत कांग्रेस पार्टी की राज्य इकाई ने भी रचनात्मक पहल की। पार्टी के कई वरिष्ठ, धनाढ्य व प्रभावशाली नेता इस पद के लिये दावेदारी जता रहे थे। मगर पार्टी ने एक ऑटो रिक्शा चालक को इस पद के लिये मौका दिया। पार्टी के इस निर्णय को सुनकर के. सरवनन भी खासे अचंभित हुए। इस तरह सरवनन ने इतिहास रचा क्योंकि वे कुंभकोणम के इतिहास में पहले महापौर बन गये हैं, जिसे हाल ही में निगम का दर्जा दिया गया था।
दरअसल, के. सरवनन ने हाल ही में संपन्न नगर निगम चुनाव में कुंभकोणम के वार्ड नंबर 17 से चुनाव लड़ा था। उन्हें 2100 वोटों में से आधे के करीब 964 वोट मिले। उल्लेखनीय है कि 20 दिसंबर 2021 में कुंभकोणम नगर पालिका को नगर निगम का दर्जा दिया गया। इसके चलते कुंभकोणम शहर के 48 वार्डों में चुनाव हुए थे जिसमें 42 वार्डों में डीएमके ने जीत हासिल की थी।
बहरहाल, कमजोर आर्थिक वर्ग के के. सरवनन का जीतना इस बात का प्रमाण है कि राजनीति में मेहनकश, ईमानदार व आम लोगों की चुनाव लड़ने की गुंजाइश बनी हुई है। समाज के विभिन्न संगठनों व उनके राजनीतिक दल कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने के. सरवनन की सफलता पर बधाई दी है। यह इसलिये भी महत्वपूर्ण है कि वे ऑटो रिक्शा चालक होते हुए इस मुकाम पर पहुंचे हैं। भले ही उनके परिवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि रही है, लेकिन के. सरवनन ने अपनी जमीन खुद तैयार की है। वे पिछले कुछ सालों से शहर कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे हैं। वह बात अलग है कि वे दादा टी. कुमार सामी से प्रभावित होकर कांग्रेस में शामिल हुए थे जो वर्ष 1976 में कुंभकोणम नगरपालिका के सदस्य रह चुके थे। लेकिन लंबे समय तक लोक सेवा से जुड़े के. सरवनन ने सहजता, सरलता व लोकसेवा के चलते अपनी जमीन खुद तैयार की।
बहरहाल, दो दशक तक ऑटो चलाने वाले के. सरवनन अब एक शहर को चलाएंगे। पूरे शहर का प्रबंधन उनके हाथ में होगा। कभी के. सरवनन पुलिस में अधिकारी होने का सपना देखते थे, लेकिन पारिवारिक हालात के चलते ऐसा संभव नहीं हो पाया। शायद नियति ने महापौर का प्रतिष्ठित पद उनके नाम लिखा था। निस्संदेह यह लंबे समय तक कुंभकोणम शहर के सामाजिक व राजनीतिक जीवन में सक्रिय होने का परिणाम ही है। उन्होंने ऑटो चलाने के साथ-साथ अपने राजनीतिक जीवन को आकार दिया।
के. सरवनन आज भी अपनी पत्नी व तीन बच्चों के साथ एक किराये के मकान में रहते हैं। उनके पास महज साढ़े चार लाख की संपत्ति है। उनकी पत्नी के पास भी पच्चीस हजार रुपये की रकम है। बहरहाल सरवनन की कामयाबी बताती है यदि व्यक्ति में दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो वह अपने सपनों को हकीकत में जरूर बदल सकता है। यही वजह है कि इस उपलब्धि के बाद भी ऑटो रिक्शा से चलकर शपथ ग्रहण के लिये पहुंचने वाले सरवनन ने यह संदेश देना चाहा कि वे अभी आम लोगों जैसे ही हैं। उनका कहना है कि इस अवसर का उपयोग वे लोगों की सेवा के लिये करना चाहते हैं। निस्संदेह ऐसी कहानियां लाखों आम लोगों के सपनों में रंग भरती हैं। उनमें हौसला व उम्मीद जगाती हैं। ऐसे ही वर्ष 2018 में पुणे के ऑटो रिक्शा चालक राहुल जाधव भी भाजपा के बहुमत वाले पिंपरी चिंचवाड़ के मेयर बने थे।