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त्याग में अपना ही नहीं, अपनों का भी भला

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस

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तंबाकू से बचाव केवल हमारे और हमारे प्रियजनों के वर्तमान की ही नहीं, बल्कि भविष्य की भी रक्षा है—और इस बचाव का कोई विकल्प नहीं है।

कृष्ण प्रताप सिंह

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यह तथ्य अब सुविदित है कि तंबाकूजन्य नशे हर साल दुनिया भर में अस्सी लाख से अधिक लोगों की जान ले लेते हैं। भारतीय होने के नाते यह और भी अधिक चिंता का विषय है कि इनमें से 13 लाख से ज्यादा मृतक भारतीय होते हैं।

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यह डरावना आंकड़ा न केवल चिंता उत्पन्न करता है, बल्कि यह भी इंगित करता है कि विविध प्रकार के तंबाकूजन्य नशों का या तो पूरी तरह उन्मूलन किया जाना चाहिए या कम से कम उन्हें न्यूनतम स्तर तक सीमित किया जाना आवश्यक है।

इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु वर्ष 1988 से हर वर्ष आज के दिन विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाया जाता है। इस संदर्भ में यह जानना भी प्रासंगिक है कि तंबाकूजन्य मौतों की बढ़ती संख्या को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1987 में इस दिवस को मनाने की परंपरा शुरू की थी। प्रारंभ में इसे 7 अप्रैल को मनाया गया, लेकिन उसी वर्ष 31 मई को संगठन द्वारा एक प्रस्ताव पारित कर इसे स्थायी रूप से 31 मई को मनाने का निर्णय लिया गया।

प्रत्येक वर्ष इस दिवस की एक थीम निर्धारित की जाती है, जिसके माध्यम से लोगों को तंबाकू सेवन के दुष्परिणामों के प्रति जागरूक किया जाता है और उन्हें इससे दूर रहने के लिए प्रेरित किया जाता है। यह भी बताया जाता है कि तंबाकू का सेवन केवल उपभोक्ता के लिए ही नहीं, बल्कि उनके आसपास रहने वाले लोगों के लिए भी घातक है।

विडंबना यह है कि इन प्रयासों के बावजूद विश्वभर में बड़ी संख्या में लोग किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन कर रहे हैं और वे इसकी लत से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं।

यदि हम भारत की बात करें तो यहां तंबाकू उत्पादों के पैकेटों पर वैधानिक चेतावनियां प्रमुखता से अंकित की जाती हैं और अवयस्कों को इनकी बिक्री पर कानूनी रोक भी है। फिर भी, लगभग हर आयु वर्ग और लिंग के लोग इस लत के शिकार हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि नशा खत्म तो दूर, अपेक्षित रूप से घटता भी नहीं दिख रहा।

विशेषज्ञों द्वारा बार-बार यह बताया जाता है कि तंबाकू का सेवन फेफड़े, यकृत, मुंह और गर्भाशय के कैंसर के अलावा अनेक यौन और हृदय रोगों का प्रमुख कारण बन सकता है, पर इसका अपेक्षित असर होता नहीं दिखता।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में 15 वर्ष से अधिक आयु के 38 प्रतिशत से अधिक पुरुष तंबाकू का सेवन करते हैं। महिलाओं में यह आंकड़ा लगभग 9 प्रतिशत है। 15 से 49 वर्ष की आयु की 1 प्रतिशत महिलाएं और 19 प्रतिशत पुरुष शराब का सेवन करते हैं। स्पष्ट है कि समस्या केवल तंबाकू तक सीमित नहीं, बल्कि शराब की लत भी चिंताजनक स्तर पर मौजूद है।

यह निष्कर्ष देश के 28 राज्यों और आठ केंद्रशासित प्रदेशों के 707 जिलों में 6.37 लाख परिवारों के सर्वेक्षण पर आधारित है। यह बताता है कि नशे की समस्या को रोकने या सीमित करने हेतु एक दीर्घकालिक और कारगर रणनीति की आवश्यकता है, जिसका एक सिरा शिक्षा से भी जुड़ता है। क्योंकि आंकड़ों के अनुसार, भले ही तंबाकू सेवन हर वर्ग में पाया जाता है, लेकिन अशिक्षितों में इसकी प्रवृत्ति कहीं अधिक गंभीर है। स्कूल न जाने वाले या पांचवीं कक्षा से कम शिक्षा प्राप्त पुरुषों में लगभग 58 प्रतिशत और महिलाओं में 15 प्रतिशत इस लत के शिकार हैं।

ग्रामीण भारत में यह समस्या और भी गहरी होती जा रही है। विशेष रूप से वंचित समुदाय इसके सबसे बड़े शिकार हैं। पूर्वोत्तर, उत्तर और पूर्वी भारत के कई राज्यों में तंबाकू और अन्य नशों का प्रयोग अत्यधिक है। पश्चिम भारत के कुछ क्षेत्रों में भी स्थिति चिंताजनक है।

यह भी समझना जरूरी है कि तंबाकू का प्रभाव केवल उपभोक्ता पर नहीं पड़ता, बल्कि उसके आसपास रहने वालों के लिए भी यह अत्यंत हानिकारक है। तंबाकूजन्य बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति को मृत्यु से पूर्व अनेक गंभीर पीड़ाओं और भारी चिकित्सा खर्चों का सामना करना पड़ता है।

स्पष्ट है कि विश्व तंबाकू निषेध दिवस तभी सार्थक सिद्ध होगा जब देश में नशे के विरुद्ध एक सुसंगत राष्ट्रीय नीति बनाई जाए और उसे लागू करने के लिए सरकारें पर्याप्त साहस और राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाएं। साथ ही, विश्व स्वास्थ्य संगठन को वैश्विक स्तर पर जनस्वास्थ्य की रक्षा हेतु दीर्घकालिक और प्रभावशाली नीतियों का निर्माण कर उन्हें लागू करना चाहिए।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया भर के 1.3 अरब तंबाकू उपयोगकर्ताओं में से लगभग 80 प्रतिशत निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं, जहां तंबाकूजन्य बीमारियों और मृत्यु दर की स्थिति सबसे खराब है। यह लत लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी जरूरतों पर खर्च करने की बजाय तंबाकू उत्पादों पर खर्च करने को विवश कर देती है, जिससे गरीबी को भी बढ़ावा मिलता है।

एक अनुमान के अनुसार, विश्व स्तर पर तंबाकू सेवन से हर साल लगभग 105.4 लाख करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष नुकसान होता है, जबकि अप्रत्यक्ष हानि इससे कई गुना अधिक हो सकती है।

तंबाकू से बचाव केवल हमारे और हमारे प्रियजनों के वर्तमान की ही नहीं, बल्कि भविष्य की भी रक्षा है—और इस बचाव का कोई विकल्प नहीं है।

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