प्रदीप कुमार सिंह
स्वतंत्रता प्राप्ति के 75 वर्ष बाद भी भारतीय समाज भ्रमित है, जातिवाद, संप्रदायवाद, भाषावाद व क्षेत्रीय अस्मिता के आधार पर टुकड़ों में बंटा हुआ है। कुछ युवा व बुद्धिजीवी भाषा की मर्यादाएं तोड़ रहे हैं, कुछ कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं। कुछ सुनियोजित अपराधों में लिप्त हैं। कुछ लोगों की रुचि सरकार को अस्थिर कर अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा बढ़ाने में है तो कुछ देश तोड़ने के अवसर की तलाश में हैं। कुछ करदाताओं से प्राप्त धन को खर्च कर सत्ता प्राप्त करना चाहते हैं तो कुछ मुफ्तखोरी को जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं। नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है।
भारतीय दर्शन के अनुसार शिक्षक (गुरु) शिष्य के लिए शैक्षिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक होता है, जिसके सहयोग, समर्थन और आशीर्वाद के बिना यथार्थ ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता। ‘गुरु’ शब्द में ही गुरु-महिमा का वर्णन है। ‘गु’ (अज्ञान रूपी) अन्धकार है व ‘रु’ (ज्ञान रूपी) प्रकाश है। इस प्रकार, निःसन्देह समाज से अज्ञान रूपी अंधकार दूर कर ज्ञान रूपी प्रकाश का विस्तार करने वाला ‘गुरु’ ही ब्रह्म है। अनेक ग्रंथ गुरु के महत्व का विस्तार से वर्णन करते हैं, जिसके आधार पर कुछ अत्यन्त लोकप्रिय अवधारणाएं इस प्रकार हैं :-
‘गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥’
गुरुस्तोत्रम् (श्री गुरुगीता)
‘सब धरती कागद करूं, लेखनी सब बनराय।
सात समुद्र की मसि करूं, गुरु गुण लिखा न जाय॥’
(कबीर दोहावली)
यह आवश्यक नहीं कि कोई भगवा वेषधारी या औपचारिक शिक्षा प्रदान करने वाला शिक्षक ही गुरु माना जाये और उसके समीप पहुंचकर ही ज्ञान प्राप्त किया जाये। मन में सच्ची लगन व श्रद्धा हो तो गुरु को किसी भी रूप में कहीं भी पाया जा सकता है। एकलव्य ने मिट्टी की प्रतिमा में ही गुरु का दर्शन पाया। दत्तात्रेय जी ने प्रकृति में चौबीस गुरुओं को खोजकर उनसे मार्गदर्शन प्राप्त किया। प्रायः माता-पिता और शिक्षक गुरु का उत्तरदायित्व निभाते हुए अपने ज्ञान, विवेक, अनुभव व परिस्थितियों के आधार पर मार्गदर्शन करते हैं। गुरु गोविन्द सिंह ने सन्तों की वाणी से परिपूर्ण पवित्र ग्रंथ को गुरु की संज्ञा दी। निश्चय ही उत्तम साहित्य पाठक का मार्गदर्शन कर गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
आधुनिक युग में दूरदर्शन, सूचना प्रौद्योगिकी व सोशल मीडिया के माध्यम से भी विभिन्न विषयों में शिक्षा प्राप्त की जा सकती है। विभिन्न विद्वान भी इन्हीं माध्यमों से निरंतर ज्ञान में वृद्धि करते रहते हैं। एक जिज्ञासु व जागरूक नागरिक अत्यंत चतुराई से किसी भी साधन से उचित मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है। भारतीय समुदाय ने गुरु को प्रतीक रूप में सम्मानित करने के लिए महर्षि वेदव्यास की स्मृति में एक पवित्र त्योहार ‘गुरु पूर्णिमा’ के रूप में मनाने की परम्परा डाली। महर्षि वेदव्यास ने चारों वेद संपादित किए। उन्होंने अठारह पुराण और कुछ अन्य पवित्र ग्रंथ भी लिखे। ये सभी ग्रंथ भारतीय संस्कृति के आधार हैं व मानव को देश-काल के अनुसार उचित-अनुचित, शुभ-अशुभ व धर्म-अधर्म का बोध कराते हुए कर्तव्य पथ को आलोकित करते हैं।
बढ़ती जनसंख्या, बदलती अर्थव्यवस्था और औद्योगीकरण के आधुनिक युग में औपचारिक शिक्षा का स्वरूप पूर्णरूपेण बदल चुका है। आज शिक्षा का मुख्य उद्देश्य इसे रोजगारपरक बनाकर बेरोजगारी दूर करना और युवाओं को अधिक से अधिक धन अर्जित करने योग्य बनाना है। साथ ही विज्ञान और तकनीकी विकास के नये-नये आयाम स्थापित कर देश को विकसित देशों की प्रतिस्पर्धा में रखना भी एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है। शिक्षा के उद्देश्य के अनुरूप शिक्षण पाठ्यक्रम भी बदल चुका है। नैतिक शिक्षा का महत्व समाप्तप्राय है। युवाओं में आत्मविश्वास घटता जा रहा है। अधिकांश युवा येन-केन-प्रकारेण अधिक से अधिक धन-सम्पत्ति, प्रभुत्व, सत्ता अर्जित करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं। परिणामस्वरूप समाज में भ्रष्टाचरण बढ़ रहा है। असुरक्षा व हताशा बढ़ती जा रही है। समाज में मानवीय गुणों– विनम्रता, कर्तव्य परायणता, सहनशीलता (धैर्य), श्रमशीलता, संवेदनशीलता, कृतज्ञता, सत्यनिष्ठा आदि की कमी व मनोविकारों- काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, स्वार्थपरता, अति-महत्वाकांक्षा आदि की निरंतर वृद्धि हो रही है। अत्यंत दुखद यह है कि समाज में, विशेषकर (तथाकथित) बुद्धिजीवी वर्ग में शुभ-अशुभ, अच्छाई-बुराई, उचित-अनुचित, गुण-दोष व धर्म-अधर्म की पहचान लगभग मिट चुकी है।
समय के साथ मानवीय गुणों में निरंतर कमी व मनोविकारों में वृद्धि एक सामान्य मानवीय प्रवृत्ति है, इसे विचारों का प्रदूषण भी कहा जा सकता है। वैचारिक प्रदूषण दूर करने के लिए समय-समय पर एक योग्य गुरु की शिक्षाओं से मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए अन्तःकरण को शुद्ध रखना अनिवार्य है। आशा है, गुरु-पूर्णिमा उत्सव बच्चों व युवाओं को भारतीय संस्कृति की पहचान करायेगा व समाज में एक नई चेतना का संचार करेगा।