भरत झुनझुनवाला
सरकार ने मंडियों के माध्यम से कृषि उत्पादों को बेचने की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है। अब बड़े उद्यमी सीधे किसानों से अनुबंध करके उनसे माल खरीद सकेंगे। इस लेनदेन में मंडी समितियों अथवा राज्य सरकारों की कोई भूमिका नहीं रह जायेगी। यह परिस्थिति मूल रूप से हमारी खुदरा बिक्री व्यवस्था के समानांतर है। जिस प्रकार ई-मार्केटिंग पोर्टल्स जैसे अमेजन, फ्लिपकार्ट और स्नैपडील के आने से किराना दुकानों को कुछ झटका लगा है लेकिन फिर भी वे अपने पैरों पर खड़े हुए हैं, इसी प्रकार यदि बड़ी कम्पनियां किसानों से अनुबंध कर लेंगी तो भी मंडियों की भूमिका बनी रहेगी।
मंडियों द्वारा एक महत्वपूर्ण सेवा दी जाती है। उनके द्वारा किसान द्वारा लाये जा रहे विभिन्न गुणवत्ता के माल को छांट कर उनको खरीदने वाले अलग-अलग खरीददारों तक पहुंचाया जाता है। यह कार्य बड़ी कम्पनियां नहीं कर सकतीं, इसलिए मंडियों का अस्तित्व बना रहेगा। बड़ी कम्पनियों के प्रवेश से हमारी मंडियां उसी प्रकार समाप्त नहीं होंगी, जिस प्रकार ई-पोर्टल के प्रवेश से किराना दुकानें समाप्त नहीं हुई हैं। बल्कि इस व्यवस्था से मंडियों की कार्यशैली में भी सुधार आ सकता है। सरकार ने दूसरा परिवर्तन आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से अनाज, दाल और खाद्य तेल इत्यादि को बाहर करने का किया है। इस अधिनियम के अंतर्गत इनके भंडारण पर प्रतिबन्ध था। निर्धारित सीमा से अधिक भंडारण करने की स्वीकृति किसी व्यापारी को नहीं थी। पूर्व में इस अधिनियम को लाने का उद्देश्य था कि बड़े व्यापारियों द्वारा माल को खरीद कर भण्डारण कर लिया जाता है, बाजार में कृत्रिम अनुपलब्धता पैदा की जाती है, दाम बढ़ाये जाते हैं और फिर उस माल को ऊंची कीमत पर बेचा जाता है। ऐसा करने से एक तरफ किसान को न्यून दाम मिलता है चूंकि बड़े व्यापारी किसान से दाम बढ़ने के पूर्व सस्ता माल खरीद कर भंडारण कर लेते हैं। बढ़े दाम का लाभ व्यापारी को मिलता है। अधिनियम से इन माल को बाहर करने का अर्थ है कि अब बड़े व्यापारी इन माल को खरीद कर इनका भंडारण करने और बाजार में दाम को मैनिपुलेट करने के लिए स्वतंत्र होंगे। यह लाभप्रद भी है और हानिप्रद भी। लाभ यह है कि बाजार में माल को खरीद कर उपभोक्ता तक पहुंचाने का कार्य ये बड़े व्यापारी फूड कार्पोरेशन की तुलना में कुशलतापूर्वक कर सकते हैं। फूड कार्पोरेशन को सरकार व्यापार करने के लिए भारी सब्सिडी देती है जबकि व्यापारी उसी कार्य को करके धन कमाते हैं। जो काम धन कमा कर किया जा सके, उसे सब्सिडी देकर करने का कोई औचित्य नहीं बनता है। इसलिए यह व्यवस्था ठीक है।
इसमें हानि यह है कि यदि बड़े व्यापारियों ने माल का भंडारण कर कृत्रिम शार्टेज बनाई तो इससे उपभोक्ता को हानि होगी। इसका उपाय यह है कि सरकार व्यवस्था करे कि व्यापारी अपनी खरीद की जानकारी सार्वजनिक करेगा, जिससे सरकार को ज्ञात हो जाये कि किस माल का कितना भण्डार है और सरकार के अधिकारी देख सकें कि आने वाले समय में इस भण्डार का दुरुपयोग मार्केट को मैन्युपुलेट करने के लिए किया जा सकता है या नहीं। इसके साथ -साथ सरकार फूड कारपोरेशन को आदेश दे कि वह भी माल को खरीदे और आयात करे। यदि सरकार को ज्ञात होता है कि बड़े व्यापारी प्याज का बड़ी मात्रा में भण्डारण कर रहे हैं तो सरकार फूड कारपोरेशन के माध्यम से प्याज का आयात कर सकती है। इसलिए आवश्यक वस्तु अधिनियम से इन माल को निकालना अपने में सही है बशर्ते कि साथ-साथ सरकार व्यवस्था बनाये, जिसमें कृषि उत्पादों के माल की अधिकता होने पर फूड कारपोरेशन इन्हें खरीद कर निर्यात करे और इनकी कमी होने पर फूड कारपोरेशन समय से पहले आयात करे और संतुलन बनाये रखे।
सरकार द्वारा निर्धारित उत्पादों का समर्थन मूल्य घोषित किया जाता है और इस मूल्य पर जितना भी माल किसान उपलब्ध कराएं, सरकार उसको खरीदने को वचनबद्ध होती है, जिसमें ऊंची कीमत की फसलों में प्रवेश करने का किसान को प्रोत्साहन नहीं है। किसान को ज्ञात है कि यदि वह धान और गेहूं का उत्पादन करेगा तो उसकी खरीद सरकार द्वारा कर ली जाएगी और उसे निर्धारित मूल्य मिल जाएगा। लेकिन जरूरी यह है कि हम ऊंची कीमत की फसलों का उत्पादन करें। जैसे फूल, आर्गेनिक सब्जियां अथवा विशेष आकार की डिजायनर सब्जी इत्यादि।
भारत में हर प्रकार का मौसम देश के किसी न किसी हिस्से में उपलब्ध रहता है। जैसे जाड़े के समय में गुलाब के फूल दक्षिण भारत में उत्पादित हो सकते हैं और गर्मी के समय इन्हें पहाड़ में उगाया जा सकता है। सरकार को चाहिए कि हर राज्य में जो फसलें ऊंचे दाम की उत्पादित हो सकती हैं, उनके ऊपर रिसर्च करे और किसानों द्वारा उनका उत्पादन कराए। इससे किसान ऊंची मूल्य की फसलें उत्पादित करके बेच सकेंगे। आज भी राज्य सरकारों द्वारा किसानों को बिजली पर भारी सब्सिडी दी जा रही है। जिसका परिणाम हो रहा है कि उनके द्वारा भूमिगत पानी का अति उपयोग किया जा रहा है। भूमिगत पानी का जलस्तर गिर रहा है। इसलिए सरकार को चाहिए कि किसानों को दी जाने वाली बिजली सब्सिडी को समाप्त करने की योजना के लिए राज्य सरकारों को प्रोत्साहन दे। साथ ही इससे किसानों पर बढ़ने वाले अतिरिक्त भार की भरपाई करने को न्यूनतम समर्थन मूल्य में उतनी ही वृद्धि कर दे। किसान को सब्सिडी के स्थान पर बढ़ी हुई कीमत दी जानी चाहिए।
सरकार के परिवर्तन मूलतः सही दिशा में हैं। आवश्यक वस्तु अधिनियम व्यवस्था में निर्धारित फसलों को बाहर करना ठीक है लेकिन साथ ही भंडारण की सूचना सार्वजनिक हो और फूड कारपोरेशन द्वारा समय रहते सभी फसलों के मूल्यों को नियंत्रण में रखने के लिए आयात-निर्यात किये जाएं।