आलोक पुराणिक
स्मार्ट विश्वविद्यालय ने टमाटर विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया था, इस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता निबंध इस प्रकार है :-
टमाटर का भारत में राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक महत्व है। टमाटर का चुनाव में सरकार को कोसने के लिए, रसोई में सब्जी बनाने के लिए और कवि सम्मेलन में चाटू टाइप के कवियों पर प्रहार के लिए इस्तेमाल संभव है। राजनीति में हालांकि प्याज भी काम आता है और प्याज के सामने तो टमाटर जूनियर टाइप का ठहरता है पर टमाटर का अपना जलवा है। प्याज ने हालांकि सरकारों को बनाया और गिराया है, पर टमाटर भी अपने हिसाब से राजनीति में उठापटक पैदा कर सकता है। सौ रुपये प्रति किलो के भाव पर पहुंचकर टमाटर ने अपनी हैसियत में जबरदस्त इजाफा किया है और अब यह पेट्रोल की संगत करने लगा है भावों के मामले में।
टमाटर किसी बंदे की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ने की हैसियत रखता है, सौ रुपये किलो के टमाटर के सामने अगर किसी बंदे की इच्छा आलू-टमाटर की सब्जी खाने की हो जाये, तो वह दिवालिया घोषित किया जा सकता है। आलू-टमाटर की सब्जी विलासिता लगे, यह हालात टमाटर के भाव पैदा कर सकते हैं। 100 रुपये किलो के भाव पर जब टमाटर पहुंच जाये, तो बंदा यह कह सकता है पुराने वक्तों में हम भी बहुत अमीर हुआ करते थे और हमने भी कई बार टमाटर की सब्जी खायी है।
सांस्कृतिक योगदान तो टमाटर का अप्रतिम है। कवि सम्मेलनों में सड़े टमाटरों को हथियारों के तौर पर इस्तेमाल करने का इतिहास रहा है। टमाटर सड़े हों, तो भी इन दिनों मिल नहीं रहे हैं। कई होटल रेस्टोरेंट सड़े टमाटरों से भी कामयाब सब्जी वैसे ही बना मारते हैं, जैसे बहुत घटिया बंदों से भी बड़े नेताओं का सृजन राजनीतिक दल कर लेते हैं।
टमाटर चर्चा में है और चर्चा में रहेंगे, टमाटर का साहित्यिक महत्व यह है कि यह व्यंग्यकारों के भी काम आ जाते हैं। टमाटर का बहुत बड़ा फायदा नेताओं को यह मिल जाता है कि टमाटर के चक्कर में दूसरी समस्याओं पर ध्यान न जा पाता है। जैसे कोरोना का नया वैरियंट आ गया है-ओमीक्रॉन, पर इस पर भी पर्याप्त हल्ला न हो पा रहा है, क्योंकि अभी विमर्श टमाटर पर चल रहा है।