संयुक्त राष्ट्र में भारत के बारे में अवांछित बात सुनकर एक बात अब समझ आ गयी है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को उनकी भाषा में ही भारत को ज़वाब देना चाहिए। यदि इससे भारत बचता है तो डिप्लोमेसी को चैलेंज किया जाता रहेगा।
संयुक्त राष्ट्र में 80वीं महासभा पूरी दिलचस्प बन गयी है। ट्रंप द्वारा टेलीप्राम्टर और स्टेयर को लेकर की गयी टिप्पणी सोशल मीडिया में चर्चा के केंद्र में आई। संयुक्त राष्ट्र को दोषारोपण करते हुए ट्रंप ने यह कभी नहीं सोचा कि मेज़बानी करने वाले देश की जिम्मेदारी ज्यादा होती है। वह बोलते हैं तो बोल ही जाते हैं चाहे अपने ही देश की निंदा उसमें क्यों न शामिल हो। विश्वभर से आए 193 देशों के राष्ट्राध्यक्ष या नामित लोगों ने इस महासभा को संबोधित किया, जिसकी अध्यक्षता युवा नेत्री ऐनालेना बेयरबॉक कर रही थीं। इस महासभा में शिरकत कर रहे संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों के ये नेता, युद्धों, निर्धनता, मानवाधिकार उल्लंघन, जलवायु परिवर्तन आदि अनेक मुद्दों पर अपनी बात दुनिया के साथ साझा करके उस हल को ढूंढ़ने की कोशिश करते रहे, जिससे स्थायी शांति की ओर बढ़ा जाए।
ऐतिहासिक महासभा में ऐतिहासिक अभिभाषण के साथ एस. जयशंकर ने भारत का जैसे पक्ष रखा है, वह बहुत ही सुर्ख़ियों में है, खासकर सेवा के कार्य की प्रशंसा हो रही है। भारत विश्व में शांति, विकास और मैत्री का पक्षधर रहा है। सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना की गयी है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा में एस. जयशंकर ने भारत की मंशा को अब दुनिया को बता दिया है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद विश्व के विभिन्न देशों में भारतीय शिष्टमंडल द्वारा रखे गए पक्ष की भी चर्चा यदि एस. जयशंकर महासभा में रखते तो बात कुछ और होती। लेकिन फिर भी जितना उन्होंने कहा उतना भी ठीक है। भारत अंततः विकास और शांति चाहता है। भारत मैत्रीपूर्ण संबंध चाहता है। भारत धर्म के नाम पर कट्टरपंथी ताकतों से बहुत लंबे समय से लड़ता रहा है, इसके खिलाफ आगे भी उसकी लड़ाई जारी रहेगी। महासभा की अध्यक्ष ऐनालेना बेयरबॉक का नारा है बेटर टुगेदर, यह बात तो भारतीय शास्त्रों में बहुत पहले ऋग्वेद में कही गयी है-संगच्छध्वं संवदध्वं, जिसका अर्थ है हम सब एक साथ चलें, एक साथ बोलें और हमारे मन एक हों।
महासभा में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के एक-एक बयान झूठ व तिलिस्म से भरे दिखे। झूठ महासभा में यदि पाकिस्तान बोल रहा है तो एक तो वह अपने देश के साथ अहित कर रहा है, दूसरी ओर पूरी दुनिया के सामने अपनी छवि ख़राब कर रहा है। हाल ही में भारत-पाक अंतर्संघर्ष के बारे में उसके द्वारा कही गयी बातों से पाकिस्तान ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह झूठ की पोटली वाला देश है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद युद्धविराम सुनिश्चित करने में मदद के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की प्रशंसा करके शरीफ ने यह बताया कि वह अमेरिका के पिछलग्गू हैं और कुछ भी नहीं। वह यह भी कहते रहे कि ट्रंप नोबेल पीस अवार्ड के हक़दार हैं। शरीफ़ ने कश्मीर के मसले को भी पुनः महासभा में उठाकर अपने भीतर भरे भारत के प्रति कलुषता को भी स्पष्ट कर दिया। उन्होंने कश्मीर और जल संसाधनों पर विवाद का रोना भी रोया।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के बारे में अवांछित बात सुनकर एक बात अब समझ आ गयी है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को उनकी भाषा में ही भारत को ज़वाब देना चाहिए। यदि इससे भारत बचता है तो डिप्लोमेसी को चैलेंज किया जाता रहेगा। ऐसा लगता है कि भारत की उदारता ही भारत के लिए अब भारी पड़ने लगी है। यद्यपि जयशंकर ने पहलगाम की बात उठाई और कहा कि हम अपने लोगों की रक्षा करने और देश-विदेश में उनके हितों की रक्षा करने के लिए दृढ़ हैं। इसका अर्थ है आतंकवाद के प्रति शून्य बर्दाश्त, अपनी सीमाओं की मज़बूत सुरक्षा, सीमाओं से परे साझेदारी बनाना और विदेशों में अपने समुदाय की सहायता करना उनकी प्राथमिकता है। थोड़ी तल्ख़ भाषा अंतर्राष्ट्रीय मंच पर होती तो और अच्छा होता।
वैसे भारत की ओर से वैश्विक दक्षिण के 78 देशों में, भारत के वित्त योगदान के साथ जो साझेदारी में चल रही और 600 से अधिक विकास परियोजनाओं को भारत संचालित कर रहा है, यह भारत की वैश्विक छवि है। वर्ष 2024 में अफ़ग़ानिस्तान में आए भूकम्प के दौरान भारत की आपात सहायता, म्यांमार में आए भूकम्प में मदद, गोलान पहाड़ियों से लेकर पश्चिमी सहारा और सोमालिया तक के क्षेत्रों में यूएन शान्तिरक्षक के रूप में सेवाओं, अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने में विश्वास और वैश्विक दक्षिण की आवाज़ बनने की बातों ने दुनिया के दिलों में जगह बना ली हैं, यह भारत की छवि है। सबसे मुख्य बात जो जयशंकर ने की कि संयुक्त राष्ट्र का नौवां दशक नेतृत्व और आशा का होना चाहिए। इस आशा और विश्वास के कारण भारत की प्रशंसा वैश्विक स्तर पर हो रही है और पाकिस्तान के नकारात्मक व चापलूसी भरे शब्द निंदा के पात्र बन चुके हैं।
लेखक केंद्रीय विश्वविद्यालय पंजाब में चेयर प्रोफेसर, अहिंसा आयोग हैं।