महिला सशक्तीकरण एवं पर्यावरण संरक्षण संबंधी जन-जागृति को नए आयाम देते हुए जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से एक सराहनीय पहल की गई है। ‘वन गर्ल चाइल्ड, वन प्लांट’ नामक कार्यक्रम के अंतर्गत किसी परिवार में बेटी के जन्म लेने पर, परिजनों को एक पौधा रोपित करने हेतु प्रेरित किया जाएगा। यह पौधा कृषि भूमि, घर अथवा बाग, कहीं भी लगाया जा सकता है।
कार्यक्रम क्रियान्वयन हेतु एक सुदृढ़ प्रारूप की संरचना की गई है। इस बारे प्रसूति मामलों के निकटतम जानकार, आशा व आंगनवाड़ी कार्यकर्ताअों से तादात्म्य स्थापित किया गया है। किसी भी परिवार में बेटी का जन्म होने पर वे संबंधित पंचायत को सूचित करेंगे। पंचायत सचिव द्वारा तत्संबंधी सूचना संबद्ध वन रक्षक तक पहुंचाई जाएगी, जो परिवार को पौधा उपलब्ध कराने सहित, रोपण संबंधी तकनीकी सहायता भी प्रदान करेगा। पौधे के क्रमिक विकास का पूर्ण विवरण रखना, रोगग्रस्त होने पर यथेष्ट उपचार, पौधा मरने की अवस्था में पारिस्थितिक संज्ञान आदि वन रक्षक के दायित्व के अंतर्गत ही आएंगे। परिवार, इच्छानुसार, एक से अधिक पौधे भी रोपित कर सकता है।
इस प्रेरक कार्यक्रम का प्रयोजन जहां पौधरोपण के माध्यम से हरीतिमा को बढ़ावा देकर बिगड़ती पर्यावरणीय परिस्थितियों को संतुलित करना है, वहीं मूल उद्देश्य महिलाओं तथा बेटियों के साथ हो रहे लिंग भेद को समाप्त करना है। गौरतलब है कि सरकारी प्रयासों व सामाजिक उत्थान के बावजूद जम्मू-कश्मीर संघीय प्रदेश में बेटियों व महिलाओं को वह सम्मानजनक दर्जा प्राप्त होना संभव नहीं हो पाया, जिसकी वे वास्तविक हकदार हैं। आज भी बड़ी संख्या में लोग बेटा-बेटी के जन्म को लेकर संकीर्ण मानसिकता के शिकार हैं। पुरुष प्रधान समाज में आज भी बेटियों को बोझ समझा जाता है। मुख्य कारण है नारी देह के प्रति विकारग्रस्त वर्ग के कुत्सित मनोभाव एवं समाज में बहुप्रचलित दहेज आदि कुप्रथाएं। विशेषत: आर्थिक रूप से विपन्न परिवारों में बेटी का जन्म एक समस्या के रूप में देखा जाता है। बेटी का गौरव संरक्षण व विवाह के लिए समुचित दहेज प्रबन्धन अभिभावकों के लिए महती चिंता के विषय हैं। इस कुप्रथा के चलते घाटी में 50 हजार से अधिक युवतियां विवाह योग्य आयु सीमा पार कर चुकी हैं। सांख्यिकी मंत्रालय के सर्वेक्षणानुसार निर्धनता, जाति-प्रथा तथा दहेज आदि के कारण घाटी में 29 प्रतिशत युवा विवाह योग्य आयु लांघ चुके हैं। आज भी जम्मू-कश्मीर में दहेज प्रताड़ना, घरेलू हिंसा तथा नारी मर्यादा हनन के आंकड़े बाहुल्य में हैं। विगत वर्षों में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों में 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। एनसीआरबी की सांख्यिकी के अनुसार, 2019 में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों की संख्या 3193 रही, जबकि वर्ष 2020 में यह संख्या बढ़कर 3,515 तक जा पहुंची।
‘वन गर्ल चाइल्ड, वन प्लांट’ कार्यक्रम जहां बेटी के पधारने पर स्वागत-सम्मान का प्रतीक है, वहीं यह जैव विविधता रक्षण प्रयास तथा पर्यावरण संरक्षण को संवर्धित करने का पर्याय भी बनेगा। आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार जम्मू-कश्मीर में प्रतिवर्ष जितनी बेटियां जन्म लेती हैं, उसी अनुपात में नए पौधे अस्तित्व में आ पाएंगे। दूसरे शब्दों में यह कार्यक्रम प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में ‘हरित जम्मू-कश्मीर मिशन’ को भी बल देगा।
चूंकि कार्यक्रम की संकल्पना का आधार विवाह योग्य बेटियों को आर्थिक संबल प्रदान करना भी है, इसलिए पौधरोपण में स्प्रूस, पाइंस, कॉटनवुड तथा फल देने वाली ऐसी प्रजातियां सम्मिलित की गई हैं, जिनका व्यापारिक मूल्य अधिक हो, ताकि कालान्तर में विकसित वृक्षों से प्राप्त फल-फूल तथा लकड़ी आदि की बिक्री से एकत्र पर्याप्त धनराशि एफडी के रूप में बेटियों के नाम कर दी जाए।
हालांकि अभी यह कार्यक्रम अपने प्रारम्भिक चरण में हैं किंतु प्रशासनिक जानकारी के अनुसार दक्षिण कश्मीर में यह कार्य युद्धस्तर पर आरम्भ हो चुका है। शीघ्र ही जम्मू-कश्मीर के 22 जिलों में इस प्रेरक पहल को गति मिलने की उम्मीद है।
निश्चय ही जम्मू-कश्मीर प्रशासन का यह प्रयास सार्थक सिद्ध होने के साथ देश के अन्य राज्यों के लिए प्रेरक पहल बन सकता है, बशर्ते योजना निर्धारण, नियमन तथा कार्यान्वयन, संरक्षण में पारस्परिक समन्वय को अनवरत अनिवार्य गति मिलती रहे। जितनी उत्साहपूर्वक योजनाओं व कार्यक्रमों की घोषणा की जाती है, उनके क्रियान्वयन के प्रति भी यदि वैसा ही उत्साहजनक, सजग व ईमानदार रवैया रखा जाए तो आशातीत सफलता मिलना सौ फीसदी तय है।
नि:संदेह, बेटियों के सम्मान को द्विगुणित करने वाली यह पहल पर्यावरण संरक्षक एवं जन हितकारी है। इस विषय में राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक चर्चा होना भी नितांत आवश्यक है। छोटी ही सही, एक प्रेरक पहल पूरे समाज की सोच को सकारात्मक दिशा में मोड़ सकती है। सृष्टि संचालन में नर-नारी समान रूप से सहभागी हैं तो दोनों के प्रति दृष्टिकोण में इतना अंतर क्यों? ‘आधी आबादी को पूरा सम्मान, प्राणवायु का आह्वान’- कदाचित यह सोच संकल्प बन जाए तो समूचे राष्ट्र की तस्वीर का रुख बदल सकता है।