हेलीकॉप्टर हादसे में रईसी की मौत के बाकी सवाल
पुष्परंजन इसे तकनीकी भाषा में ‘हार्ड लैंडिंग’ बोलते हैं। लेकिन वास्तव में वह हेलीकॉप्टर क्रैश ही था, जिस पर ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी सवार थे। उनके साथ ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान, जुमे की नमाज़ अदायगी कराने वाले...
इसे तकनीकी भाषा में ‘हार्ड लैंडिंग’ बोलते हैं। लेकिन वास्तव में वह हेलीकॉप्टर क्रैश ही था, जिस पर ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी सवार थे। उनके साथ ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान, जुमे की नमाज़ अदायगी कराने वाले तबरीज के इमाम मोहम्मद अली आले-हशीम, पूर्वी अज़रबैजान के गवर्नर मालेक रहमति जैसे नौ ख़ास लोगों में से कोई भी ज़िंदा नहीं बच सका, जो 19 मई को पूर्वी अज़रबैजान में क़िज़ कलासी बांध के उद्घाटन के बाद वतन लौट रहे थे। बचाव दल ने माना है कि हेलीकॉप्टर में कोई नहीं बच सका। ईरान में राजकीय शोक की घोषणा कर दी गई है।
दुर्घटनाग्रस्त हेलीकॉप्टर को सबसे पहले तुर्की के ड्रोन ने ही लोकेट किया था। तुर्की के ड्रोन ने अज़रबैजान की सीमा से लगे ताविल गांव की पहाड़ियों में उसके मलबे के पाये जाने की पुष्टि की थी। कुल 18-20 परिवारों का छोटा-सा गांव ताविल, पूर्वी ईरान का हिस्सा है, जो वर्जाकन काउंटी में आता है। बकराबाद इसका मुख्यालय है। यहां पर रूसी और यूरोपीय संघ की खोजी टीमें ईरान की गोल्डन क्रीसेंट के साथ सहयोग के वास्ते आई थीं। अमेरिका की पूरी नज़र ‘सर्च एंड रेस्क्यू ऑपरेशन’ पर लगी हुई थी। अमेरिकी-इस्राइली मंशा को टटोलने वाले तेज़ी से कयास लगाने लगे कि इस दुर्घटना के पीछे कोई बड़ा खेल हुआ है। इब्राहिम रईसी को बूचर ऑफ तेहरान (तेहरान का कसाई) कहकर कोसने में अमेरिकी-इस्राइली मीडिया आगे रहा है। यहूदी मीडिया ने लगातार उन ज़ख्मों को ताज़ा किया था, जिसमें रईसी के आदेश से सैकड़ों राजनीतिक कैदी मार डाले गये थे।
इस हेलीकॉप्टर हादसे पर शक की वजहें भी हैं। 3 जनवरी, 2020 को मेजर जनरल क़ासिम सुलेमानी बगदाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर ड्रोन हमले में मारे गये थे। वीवीआईपी मूवमेंट के दौरान किस तरह की हिंसक कार्रवाई होती है, इससे ईरान जैसा देश अच्छी तरह से वाकिफ है। जनवरी, 2020 में ईरानी गुप्तचर सेवा को सीआईए के उस ‘विभीषण’ का पता लगाने का टास्क दिया गया था, जिसने कुद्स फोर्स के कमांडर मेजर जनरल क़ासिम सुलेमानी के मूवमेंट की सूचना साझा की थी। सीआईए या मोसाद जैसी एजेंसियां मिडिल ईस्ट से संबद्ध हर ईमेल, वेबसाइट्स, सोशल मीडिया मैसेजिंग को खंगालती रहती हैं, जो उनका टारगेट होता है। ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के मूवमेंट को गोपनीय क्यों नहीं रखा जा रहा था? यह भी एक बड़ा सवाल है।
पिछले महीने 24 अप्रैल को राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी पाकिस्तान आये थे। सबको उनके कार्यक्रम का पता था। पाक-ईरान सीमा पर दोनों तरफ़ से जो हमले माज़ी में हुए थे, उसका डैमेज कंट्रोल किया, और आठ ऐसे समझौते किये, जो ऊर्जा-कृषि से इतर ईरान के न्यूक्लियर-मिलिट्री प्रोग्राम को बूस्टर डोज़ देने वाले थे। इस समझौते को रूस और चीन ने पॉजिटिव माना था, मगर यह बात वाशिंगटन को कहीं न कहीं चुभ रही थी। ग़जा युद्ध में भी इब्राहिम रईसी की भूमिका सकारात्मक नहीं थी। ईरान लगातार उकसाने वाली कार्रवाई को अंजाम देता रहा।
रईसी 1988 में राजनीतिक कैदियों को फांसी की देखरेख करने वाली एक समिति का हिस्सा थे। पांच महीनों के क्रूर कालखंड में रईसी ने जिस तरह से राजनीतिक विरोधियों को मरवाया, उसने उन्हें ईरानी विपक्ष के बीच अलोकप्रिय बना दिया था। अमेरिका को उन पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। वर्ष 1989 में, ईरान के पहले सर्वोच्च नेता अयातुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी की मृत्यु के बाद रईसी को तेहरान का अभियोजक नियुक्त किया गया था। खुमैनी के बाद अयातुल्ला खामेनेई जब सर्वोच्च नेता बने, उनकी सरपरस्ती में रईसी लगातार आगे बढ़ते रहे। रईसी 7 मार्च, 2016 को सबसे बड़े धर्मादा ‘अस्तान कुद्स रजावी’ के अध्यक्ष बने, जिसने उनकी स्थिति को और मजबूत किया। 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में पराजय के बाद इब्राहिम रईसी ने जून, 2021 में 62 प्रतिशत वोट लेकर कामयाबी हासिल की थी। इब्राहिम रईसी की एक ख़ासियत यह थी कि वो ख़ुमैनी और ख़ामेनेई, दोनों खेमों का विश्वास हासिल करने में कामयाब रहे थे।
64 साल के इब्राहिम रईसी ने भले ही ईरान-चीन-रूस-सऊदी सहकार को मज़बूत किया, पाकिस्तान से आठ समझौते और भारत से चाबहार ट्रिटी कर अपनी विदेश नीति को बैलेंस किया, लेकिन ईरान की घरेलू सियासत में कठोरपंथ और क्रूरता के कॉकटेल का ही सहारा लिया था। वर्ष 2022 के अंत में, ईरान की मोरल पुलिस की हिरासत में महसा अमिनी की मौत क्रूरता का सबसे बड़ा उदाहरण बन गया था। हिजाब के विरुद्ध खड़ी 22 साल की महसा अमिनी की मौत से लोग सकते में थे। इस क्रूरता के विरुद्ध प्रतिरोध प्रदर्शनों ने ईरान को महीनों तक हिलाये रखा था। महिलाओं ने इस दमन के विरुद्ध अपने हिजाब उतार दिये, या जला दिये। कइयों ने अपने बाल काटकर सोशल मीडिया पर वीडियो साझा किये थे। रईसी शासन ने अशांति फैलाने के आरोप में सात लोगों को सार्वजनिक फांसी दी थी। विदेशी मानवाधिकार संगठनों ने माना कि 500 के आसपास लोगों को बड़ी गुपचुप ढंग से मरवाया, और ताबड़-तोड़ दमनात्मक कार्रवाई की, जिससे 2023 के मध्य तक रैलियां समाप्त हो गईं। लोकतंत्र और व्यक्तिगत आज़ादी को कुचलने वाले एक क्रूर राष्ट्रपति की मौत पर क्या समस्त ईरान शोक मना रहा है?
ईरानी क़ानून के अनुसार, राष्ट्रपति की मौत हो जाने की स्थिति में उपराष्ट्रपति को कार्यभार सौंपना होगा, और 50 दिनों के भीतर चुनाव कराना होगा। यों भी, 1 मार्च, 2024 को 290 सदस्यीय संसद (मजलिस) का चुनाव हो चुका है, और जून, 2025 तक राष्ट्रपति चुनाव की प्रतीक्षा लोग कर रहे थे। इस समय प्रथम उपराष्ट्रपति मोहम्मद मुखबिर ने कार्यभार संभाल लिया है। कार्यकारी राष्ट्रपति कार्यालय दुनियाभर से आये शोक संदेशों को रिसीव करने लगा है, जिसमें पीएम मोदी की तरफ़ से भेजा मैसेज भी है।
अजरबैजान 1991 में आज़ाद हुआ, तब से उसके इस्राइल के साथ प्रगाढ़ राजनयिक संबंध हैं, जो ईरान को कांटे की तरह चुभता रहा है। ईरान के नाभिकीय कार्यक्रमों पर नज़र रखने के लिए अजरबैजान का मोसाद ने जमकर इस्तेमाल किया है। इस्राइल-तुर्की- अजरबैजान की पार्टनरशिप को लेकर तेहरान कभी सहज नहीं हो सका। जनवरी, 2023 में तेहरान स्थित अज़रबैजान दूतावास पर हमला कर उसके सुरक्षा प्रमुख को मार डाला गया था, साथ में कई सुरक्षाकर्मी घायल भी हुए थे। मार्च, 2024 में बाकू में ओआईसी की पहल पर दोनों देश बातचीत की मेज़ पर बैठे, और संबंध नार्मल हुए। सोशल मीडिया पर ख़बरों की बाढ़ देखकर इस्राइल को आधिकारिक रूप से इसका खंडन करना पड़ा कि हेलीकॉप्टर हादसे से उसकी खुफिया एजेंसी मोसाद का कोई लेना-देना है। अमेरिका अब भी चुप है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।