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खामोशी से सुधरे भारत-अरब देशों के रिश्ते

जी. पार्थसारथी भारत के प्रमुख अरब देशों के साथ संबंध हमेशा से मजबूत रहे हैं। पिछले दशक में, और भी प्रगाढ़ और बहुआयामी हो गए हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और अन्य पश्चिमी देशों के साथ भारत के व्यापारिक...
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जी. पार्थसारथी

भारत के प्रमुख अरब देशों के साथ संबंध हमेशा से मजबूत रहे हैं। पिछले दशक में, और भी प्रगाढ़ और बहुआयामी हो गए हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और अन्य पश्चिमी देशों के साथ भारत के व्यापारिक और आर्थिक संबंधों पर काफी ध्यान दिया जाता है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन जिस ओर उतना ध्यान नहीं दिया जाता, पर दिया जाना चाहिए, वह है खाड़ी क्षेत्र के देशों के साथ भारत के बढ़ते रिश्ते। भारत के पास पहले से ही ‘पड़ोसी पहले’ नीति है, लेकिन ‘पड़ोसी’ मुल्क की परिभाषा क्या हो, इस पर अभी भी अनिश्चितता और यहां तक कि विवाद भी है। कुछ लोग अक्सर इसकी विवेचना खैबर दर्रा और बंगाल की खाड़ी के बीच के क्षेत्र के रूप में करके संतुष्ट हो जाते हैं! अब समय आ गया है कि अरब सागर और फारस की खाड़ी के पार छह अरब देशों- संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), सऊदी अरब, ओमान, कुवैत, कतर और बहरीन- को भारत के विस्तृत पड़ोस के हिस्से के रूप में शामिल किया जाए। यह छहों अरब देश खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के माध्यम से राजनीतिक, कूटनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। यह 1981 में गठित जीसीसी क्षेत्रीय निकाय है, जिसका मकसद अपने छह सदस्य देशों के बीच आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य सहयोग को बढ़ावा देना है।

जीजीसी मुल्कों के साथ भारत के मजबूत संबंध सदियों से रहे हैं जिनका स्वरूप भौगोलिक निकटता, ऐतिहासिक व्यापार संबंध, ऊर्जा सुरक्षा और एक बड़े भारतीय प्रवासी समुदाय की उपस्थिति से बनता है। लगभग 89 लाख से अधिक भारतीय जीसीसी देशों में रहते और काम करते हैं, जो इसको इस इलाके में सबसे बड़े प्रवासी समूहों में एक बनाता है। सबसे अधिक संख्या में भारतीय नागरिक संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में रहते हैं, जिनकी कुल संख्या 35 लाख है। सऊदी अरब में 26 लाख और कुवैत 11 लाख से अधिक भारतीय नागरिकों के साथ तीसरे स्थान पर है। अन्य जीसीसी देशों में ओमान (7,79,000), कतर (7,45,000) और बहरीन (3,23,000) शामिल हैं। यह विशाल और संपन्न प्रवासी आबादी भारत के लिए विदेशी मुद्रा पाने का एक प्रमुख स्रोत है। वित्त वर्ष 2023-24 में, भारत को कुल मिलाकर 123 बिलियन डॉलर मुद्रा प्राप्त हुई थी, जिसमें खाड़ी के अरब देशों का हिस्सा काफी बड़ा रहा। विशेष रूप से, अकेले यूएई से भारत को सकल विदेशी मुद्रा का 18 फीसदी प्राप्त हुआ, जिससे यह देश संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद विदेशी मुद्रा पाने का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत बना।

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भारत की कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की ज़रूरतों का बहुत बड़ा अंश खाड़ी मुल्कों से आता है, जीसीसी भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है (यहां तक कि यूरोपीय संघ से भी बड़ा) और हमारी ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। छह अरब खाड़ी देशों के भारी महत्व को देखते हुए, भारत को आने वाले वर्षों में जीसीसी के सभी सदस्यों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाना होगा, जिसमें यूएई और सऊदी अरब पर विशेष ध्यान दिया जाए। अरब की खाड़ी के देशों का सदियों से भारत के पश्चिमी तटों पर स्थित बंदरगाह, विशेष रूप से केरल के साथ, दोतरफा व्यापार संबंध रहा है। संयोगवश, अब भी संकेत मिल रहे हैं कि यूएई और सऊदी अरब बड़ी संख्या में भारतीय कामगारों के वास्ते नई आवास सुविधाओं की व्यवस्था करने की प्रक्रिया में हैं, जिनके वहां काम करने के लिए पंहुचने की आशा है।

जीजीसी मुल्कों के साथ भारत संयुक्त अभ्यास और सुरक्षा वार्ता के माध्यम से भी अपने सैन्य संबंध बढ़ा रहा है। वैसे, खाड़ी देशों की प्रवृति्त पश्चिमी शक्तियों पर भरोसा करने की रही है। उल्लेखनीय है, कतर और फारस की खाड़ी क्षेत्र के अन्य अरबी देशों ने अमेरिकी सेना को भूमि और अन्य सुविधाएं प्रदान कर रखी हैं। बहरीन के मनामा में अमेरिका के पांचवें बेड़े का केंद्रीय कमान मुख्यालय है, साथ ही रॉयल ऑस्ट्रेलियाई नौसेना भी समुद्री सुरक्षा प्रदान कर रही है।

भारत भी अरब की खाड़ी क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने में भूमिका निभा सकता है। भारतीय नौसेना के पास कई तरह के जहाज हैं जिन्हें वह इस उद्देश्य के लिए तैनात कर सकता है। भारत के पास अब 2 विमानवाहक पोत, 8 टैंक लैंडिंग जहाज, 11 विध्वंसक और 12 फ्रिगेट हैं, इसके अलावा 16 हमलावर पनडुब्बियां हैं जिनका वह ज़रूरत पड़ने पर इस्तेमाल कर सकता है। लाल सागर में समुद्री जहाज़ों पर हुत्थी लड़ाकों द्वारा बढ़ते हमलों के बाद, भारतीय नौसेना ने अरब सागर और लाल सागर के पूर्वी इलाकों में कम से कम एक दर्जन युद्धपोत तैनात किए हैं, जो इस क्षेत्र में उसकी सबसे बड़ी तैनाती है। इसके अलावा, भारत ने अब दो परमाणु पनडुब्बियां (आईएनएस अरिहंत और आईएनएस अरिघात) का निर्माण और कमीशन भी किया है, जिन्हें ज़रूरत पड़ने और अनुरोध करने पर इस क्षेत्र में मित्र देशों की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए तैनात किया जा सकता है।

शेष सब के अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खाड़ी क्षेत्रों पर विशेष ध्यान है- और कुछ मामलों में क्षेत्र के कुछ देशों के नेताओं के साथ मजबूत व्यक्तिगत समीकरणों के चलते भी- इससे संबंधों में नए आयाम जोड़ने में सहायता मिलती है। प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभालने के बाद मोदी ने रिकॉर्ड सात बार यूएई का दौरा किया है। उन्होंने सऊदी अरब और कतर का दो बार दौरा किया है। इस क्षेत्र से हमें रिकॉर्ड विदेशी मुद्रा और निवेश देने में यूएई सबसे ऊपर है। अरबी मुल्कों में यूएई भारत का सबसे बड़ा निवेशक है, वहां से 2023-24 में लगभग 3 बिलियन डॉलर आए हैं। यह 2023-24 में छठा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा स्रोत और 2000 के बाद कुल मिलाकर सातवां सबसे बड़ा स्रोत है।

भारत और खाड़ी देशों को शामिल करते हुए, एक और महत्वाकांक्षी नई वैश्विक पहल की शुरुआत सितंबर, 2023 में नई दिल्ली में आयोजित जी-20 बैठक के दौरान एक नया व्यापारिक मार्ग बनाने की घोषणा से हुई थी। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारत, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के नेताओं के साथ मिलकर, इस व्यापारिक मार्ग परियोजना का अनावरण किया, जो रेलवे और बंदरगाहों के माध्यम से भारत को मध्य पूर्व और यूरोप से जोड़ेगा। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह चीन की बेल्ट एंड रोड पहल नामक परियोजना का एक विकल्प होगा, भले ही सीधा प्रतिद्वंद्वी न भी हो। इस परियोजना में अरब देशों के अलावा यूरोपीय संघ, फ्रांस, इटली और जर्मनी भी शामिल हैं। इसमें दो अलग-अलग मार्ग हैं- एक पूर्वी गलियारा जो भारत को खाड़ी के अरब देशों से जोड़ेगा और एक है उत्तरी गलियारा, जो खाड़ी देशों को यूरोप से जोड़ेगा।

प्रधानमंत्री की खाड़ी देशों के प्रति पहल को इस संस्थागत तंत्र की स्थापना से और बल मिला है। रणनीतिक वार्ता के लिए पहली भारत-जीसीसी संयुक्त मंत्रिस्तरीय बैठक सितंबर की शुरुआत में हुई थी। वर्ष 2024-2028 के लिए एक संयुक्त कार्य योजना अपनाई गई, जिसमें व्यापार और निवेश, ऊर्जा, स्वास्थ्य, परिवहन, स्वास्थ्य, कृषि और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया। बैठक में रक्षा सहयोग और आतंकवाद विरोधी प्रयासों के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया। जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य और यूक्रेन और गाज़ा में बिगड़ते संघर्षों के अलावा ईरान और इस्राइल से जुड़े तनावों से उत्पन्न चुनौतियों को देखते हुए, क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा बनाए रखने में सबके हित साझा हैं। स्पष्टतः, खाड़ी सहयोग परिषद के देशों के साथ हमारे बहुआयामी संबंध पहले से ही हैं और आगे भी बने रहेंगे, वे वैश्विक क्षेत्र में भारत की बढ़ती आर्थिक और राजनीतिक शक्ति का अभिन्न अंग हैं।

लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।

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