हर्षदेव
स्कूली किशोरों में जोश-उमंग की जगह बम धमाकों की सुनियोजित वारदातें ले लें या वे योजना बनाकर बलात्कार के कृत्य को अंजाम देने लगें तो समाज को न केवल चिंतित हो जाना चाहिए वरन पड़ताल भी करनी चाहिए कि बच्चों की परवरिश में कौन-सा दोष है जिसने आने वाली पीढ़ियों का भविष्य हिंसा और अपराध की ओर मोड़ दिया है। स्थिति ज्यादा चिंताजनक इसलिए है कि इन घटनाओं में शामिल बच्चों का ताल्लुक तथाकथित सभ्य, रसूखदार और पढ़े-लिखे परिवारों से है।
इन दोनों कांडों का एक-दूसरे से कोई संबंध नहीं है। इनमें से एक मामला दक्षिण भारत के हैदराबाद का है और दूसरा उत्तर के प्रयागराज का। हैदराबाद में एक स्कूली छात्रा को योजना बना बलात्कार का शिकार बनाया गया। इस कांड में शामिल चार नाबालिगों में से एक विधायक का बेटा है जबकि बाकी भी सम्पन्न परिवारों से हैं। वहीं प्रयागराज में पुलिस ने स्कूली किशोरों की ऐसी चार टोलियों को पकड़ा है जो एक-दूसरे को नीचा दिखाने या रुतबा जमाने के लिए बम धमाके करते थे। अभी तक 35 गिरफ्तारियां की जा चुकी हैं, जिनमें 27 नाबालिग हैं। बम धमाकों का सिलसिला दो साल से चल रहा था। पुलिस को ऐसी आशंका कतई नहीं थी कि नामी-गिरामी स्कूलों के ये छात्र आतंक स्थापित करने को बम धमाकों जैसे अपराध में शामिल हो सकते हैं। टोलियों के नामों से इन नाबालिगों में छिपी हिंसक भावना का भी पता चलता है। उनकी टोलियों के नाम हैं- तांडव, माया, और जगुआर।
बलात्कार हो या बमबारी, दोनों के पीछे प्रेरक तत्व परपीड़ा या वर्चस्व की हिंसक प्रवृत्ति है। बच्चों में ऐसी मनोविकृति का अर्थ है व्यक्तित्व का अपराधोन्मुखी विचलन। सोचने की बात है कि वे कौन-सी परिस्थितियां हैं जो किशोरावस्था को इस प्रकार कुंठित करती हैं कि भविष्य का नागरिक आपराधिक कृत्यों की ओर ललचाई निगाह से देखने लगा है। मनोविश्लेषकों का कहना है कि इसके प्रमुख कारणों में मीडिया का प्रभाव, घरेलू वातावरण या बचपन में दुर्व्यवहार, अपने समुदाय और पास-पड़ोस के लोगों का आचरण, लालन-पालन में खामियां, दोस्तों से अस्वस्थ होड़, नशे का आकर्षण अथवा मानसिक बीमारी हो सकती है। यहां दो साल पहले दिल्ली की उस घटना को भी नहीं भूलना चाहिए जब एक नामी स्कूल के बच्चों ने व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर बलात्कार की योजना पर आपस में विचार किया था। चौंकाने वाली बात यह कि इस मामले में किशोरियों की भी भागीदारी थी। यहां हम 2012 के निर्भया कांड को भी एक बार याद कर लें। तब ऐसा महसूस हुआ था कि समाज यौन अपराधों के प्रति बहुत संवेदनशील और जागरूक हो गया है। कानून सख्त करके शासकों ने भी गंभीरता दिखाने की कोशिश की लेकिन ऐसे अपराध रुक नहीं रहे हैं।
भारतीय परिस्थितियों की दृष्टि से देखें तो बढ़ते यौन अपराधों का एक बड़ा कारण समाज में हिंसा की प्रवृत्ति में बढ़ोतरी और अदालती नाकामी भी है। समाजशास्त्री एक और वजह पितृसत्तात्मक संस्कार भी बताते हैं। ये संस्कार स्त्री के साथ दोयम दर्जे का बर्ताव करना सिखाते हैं। इससे बच्चों में स्त्री पर दमनात्मक शासन की भावना बैठ जाती है। संवेदनशील नागरिक के निर्माण के लिए आवश्यक है कि इनमें से जो कोई भी समस्या हो, उसका समय रहते पता लगाया जाए और समुचित समाधान किया जाए। किशोरों की आपराधिक प्रवृत्ति समाज व देश की तरक्की में बड़ी बाधा होती है। जरूरी है कि हमारी जीवन शैली बच्चों में स्वस्थ मानसिकता का विकास करे। यह तभी संभव है जब परिवार में तर्कसंगत सोच, मानवीय चेतना और संवेदनशीलता को समुचित अहमियत दी जाए।