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छात्र आंदोलन और अमेरिकी सख्ती पर सवाल

पुष्परंजन अमेरिका में चुनाव तक गज़ा का सवाल विश्वविद्यालयों में गूंजता रहेगा। इसकी गूंज फ्रांस के शिक्षा केंद्रों में भी होने लगी है। क्या भारत में इसका ‘वायरस’ फैलने वाला है? यह सवाल देश के कई कैंपसों से मिलना बाक़ी...

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पुष्परंजन

अमेरिका में चुनाव तक गज़ा का सवाल विश्वविद्यालयों में गूंजता रहेगा। इसकी गूंज फ्रांस के शिक्षा केंद्रों में भी होने लगी है। क्या भारत में इसका ‘वायरस’ फैलने वाला है? यह सवाल देश के कई कैंपसों से मिलना बाक़ी है। पिछले हफ्ते पेरिस के एक शीर्ष विश्वविद्यालय ‘साइंसेज-पो’ में अमेरिका की देखादेखी फलस्तीनी समर्थक प्रदर्शन शुरू हुआ। इमैनुएल मैक्रों इस प्रदर्शन से इतने नाराज़ हुए कि ‘साइंसेज-पो’ की फंडिंग ही निलंबित कर दी। ‘साइंसेज-पो’ में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और उनके प्रधानमंत्री गाब्रिएल अट्टल पढ़ाई कर चुके हैं। लेकिन ऐसा फैसला लेते समय मैक्रों ने इसका लिहाज़ नहीं किया। गज़ा में जारी युद्ध, फ्रांस के लिए संवेदनशील मुद्दा है। फ्रांस पश्चिमी यूरोप के यहूदियों और प्रवासी मुसलमानों के लिए घर जैसा है, इसलिए दोनों तरफ़ से टकराव की स्थिति बनी रहती है।

फ्रांस के धुर वामपंथी एलएफआई (ला फ्रांस इंसोमाइज) के सांसदों ने छात्रों द्वारा विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया है। मई दिवस के दिन ज्यों लुक मेलेन्कोल ने रूढ़िवादियों और मैक्रों सरकार के अवसरवादी व्यवहार की आलोचना की है। फ्रांसीसी प्रधानमंत्री गाब्रिएल अट्टल ने कहा कि बहस की गुंजाइश हमेशा रहती है, लेकिन ‘साइंसेज-पो’ के शैक्षिक माहौल को अवरुद्ध करने वाले अल्पसंख्यक छात्र, बहुसंख्यकों पर अपने विचार थोप रहे थे। ऐसी विचारधारा को हम ‘अटलांटिक पार से आयातित’ कह सकते हैं।

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लेकिन इस समय ज़ेरे बहस जो बाइडेन हैं, जिनके चुनाव के समय अमेरिकी विश्वविद्यालयों में जोरदार प्रदर्शन हो रहे हैं। 1 मई तक अमेरिका के 30 से अधिक कैंपसों में हुए प्रदर्शनों में 1400 से अधिक प्रदर्शनकारी गिरफ्तार किये गये हैं। गज़ा में नरसंहार रोकने के सवाल पर लगातार हुए प्रदर्शन को रोकने के वास्ते, और यहूदी विरोधी भावना से निपटने के लिए अमेरिकी कांग्रेस में बुधवार को एक विधेयक पास हुआ।

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इसके पक्ष में 320 सांसद थे, और विरोध में 91. इक्कीस रिपब्लिकन और 70 डेमोक्रेट्स ने इसके खिलाफ मतदान किया था। बहुसंख्यक अमेरिकी जनता युद्धविराम के पक्ष में है, बावजूद इसके जो बाइडेन की ज़िद कहिए कि अमेरिका इस्राइल का समर्थन कर रहा है। इस समय न्यूयार्क स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में तनाव की स्थिति है। बुधवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में इस्राइल के राजदूत गिलाद एर्दान ने छात्र प्रदर्शनकारियों की निंदा की। गिलाद एर्दान ने कहा, ‘हम हमेशा से जानते थे कि हमास स्कूलों में छिपा है... हमें यह अहसास ही नहीं हुआ कि यह सिर्फ गाजा के स्कूलों में नहीं है, बल्कि अमेरिका में हार्वर्ड, कोलंबिया जैसे कुलीन विश्वविद्यालय भी इनके केंद्र हैं।’

व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने मंगलवार को संवाददाताओं से कहा कि राष्ट्रपति जो बाइडेन का मानना है कि छात्रों द्वारा एक शैक्षणिक भवन पर कब्जा करना बिल्कुल गलत है। इसे शांतिपूर्ण विरोध हम कतई नहीं कह सकते। डेमोक्रेट जमाल बोमन, जो कोलंबिया विश्वविद्यालय के पास न्यूयॉर्क जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं, ने इसे रोकने का आह्वान किया। बोमन ने एक बयान में कहा, ‘कॉलेज परिसरों का सैन्यीकरण, पुलिस की व्यापक उपस्थिति और सैकड़ों छात्रों की गिरफ्तारी, हमारे लोकतंत्र की बुनियाद के बरअकस है। विरोध प्रदर्शनों से निपटने के तरीके को लेकर कोलंबिया की अध्यक्ष मिनोचे शफीक ने हिंसा की निंदा की और कहा कि कैंपस में शैक्षणिक स्वतंत्रता सुनिश्चित होनी चाहिए। कोलंबिया यूनिवर्सिटी में जब टैंट गाड़कर प्रदर्शनकारी अड़ गये, और पुलिस ने उसे ख़ाली कराने के लिए जिस तरह से बल प्रयोग किया, उसे कोई भी अमन पसंद व्यक्ति सराह नहीं सकता।

अमेरिका में प्रदर्शनकारियों को दोनों हाथों को पीछे कर हथकड़ी लगाकर ले जाने वाले विज़ुअल्स पूरी दुनिया देख रही है। वह किसी भी लोकतंत्रकामी को रास नहीं आ सकता। वही अमेरिका भारत को लोकतंत्र की नसीहत देता है। अफ़सोस, अमेरिका की बर्बर और बेहिस पुलिस पर सवाल करने की मनाही है। वर्ष 2005 में पेंटागन से वाशिंगटन डीसी के बाल्टीमोर तक मेट्रो के सफ़र को भूला नहीं हूं, जब बर्गर खा रहे एक स्कूली छात्र को पुलिस हथकड़ी लगाकर ले गई। अमेरिका में छोटी-छोटी बातों पर पुलिस द्वारा पिस्तौल तान देना, पटककर पीछे से हथकड़ी लगा देना सामान्य-सी बात है।

भारत में जघन्य आपराधिक मामलों वाले अभियुक्त को ही हथकड़ी लगाने का कोर्ट आदेश मिलता है। 80 के दशक में साधारण अपराध मामले में हथकड़ी पर रोक लगा दी गई थी। उमर ख़ालिद को हथकड़ी लगाने के आवेदन को रद्द करते हुए दिल्ली की अदालत ने टिप्पणी की थी कि उमर कोई गैंगस्टर नहीं है। तो क्या लोकतंत्र का चौधरी बने अमेरिका को भारत से नसीहत लेने की ज़रूरत है? गज़ा के दमन चक्र के सवाल पर अमेरिकी कैंपस कुछ हफ्तों से छिटपुट प्रदर्शनों की चपेट में थे। लेकिन 22 अप्रैल, 2024 को यह प्रदर्शन फैल गया, जब न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय, येल विश्वविद्यालय, एमर्सन कॉलेज, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) और टफ्ट्स विश्वविद्यालय सहित पूर्वी तट के कई परिसरों पर छात्रों ने टैंट लगाकर कब्जा करना शुरू कर दिया। 40 से अधिक कैंपसों में ‘प्रोटेस्ट कैंप’ लगा देखकर सरकार के हाथ-पांव फुल चुके थे। प्रदर्शन स्थल पर टेंट गाड़ देने से जो बाइडेन प्रशासन की भृकुटि तन चुकी थी। कोलंबिया विश्वविद्यालय में तीन समूहों ने पिछले बुधवार को ‘टेंट सिटी’ स्थापित की। ये समूह हैं स्टूडेंट फॉर जस्टिस इन फलस्तीन (एसजेपी), जेविश वॉयस फॉर पीस (जेवीपी) और विदीन ऑवर लाइफटाइम। छात्रों ने यूनिवर्सिटी प्रशासन से अपील की थी कि वह उन कंपनियों के साथ काम करना बंद करे, जो गज़ा में युद्ध का समर्थन कर रही हैं।

25 अप्रैल, 2024 को एमर्सन कॉलेज, दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और टेक्सास विश्वविद्यालय में बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुईं। प्रदर्शन यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में फैल गए। गत 27 अप्रैल को जारी कार्रवाई के कारण वाशिंगटन डीसी, एरिजोना और इंडियाना विश्वविद्यालयों में लगभग 275 गिरफ्तारियां हुईं। एमोरी विश्वविद्यालय में हिरासत में लिए गए लोगों में कई प्रोफेसर भी शामिल थे। वाशिंगटन विश्वविद्यालय में कर्मचारियों तक को गिरफ्तार किया गया था। लेकिन यह सब कुछ एकतरफा नहीं था। 28 अप्रैल को एमआईटी, पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स के यूसीएलए में जवाबी विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए। प्रोटेस्ट के जवाब में काउंटर प्रोटेस्ट। कौन करा रहा था, ये सब?

चूंकि अमेरिका में यह चुनाव का वक्त है, वहां सबसे पॉवरफुल इस्राइल समर्थक लॉबी ‘अमेरिकन इस्राइल पब्लिक अफेयर्स कमेटी’ (एआईपीएसी) जो बाइडेन के समर्थन में माहौल बनाने में लगी थी। उसके प्रयासों पर पानी फिर गया लगता है। एआईपीएसी के बरक्स यहूदी अरबपति जार्ज सोरोस खड़े हैं, जो इस्राइल के विरुद्ध प्रदर्शनों के लिए मोटी फंडिंग कर रहे हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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